Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
  • तिथि- कार्तिक शुक्ल सप्तमी
  • शुभ समय- 7:30 से 10:45, 12:20 से 2:00 तक
  • व्रत/मुहूर्त-छठ पारणा, सहस्रार्जुन जयंती
  • राहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

स्वामी स्वरूपानंद जी को दी जाएगी आज विशेष समाधि, जानिए समाधि के नियम और खास बातें

हमें फॉलो करें Bhoomi Samadhi
, सोमवार, 12 सितम्बर 2022 (12:35 IST)
क्रांतिकारी साधु' के रूप में मशहूर द्वारका पीठ के ‘जगतगुरु शंकराचार्य’ स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का रविवार को मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले स्थित उनके आश्रम झोतेश्वर में हृदय गति रुक जाने से निधन हो गया। वे 99 साल के थे। नरसिंहपुर के गोटेगांव स्थित उनकी तपोस्थली परमहंसी गंगा आश्रम झोतेश्वर में 12 सितंबर को अपराह्न करीब 3-4 बजे भू समाधि दी गई। आओ जानते हैं कि क्या है भू समाधि देने के नियम और खास बातें।
 
1. समाधि का अर्थ : समाधि शब्द का किसी के निधन और उसके अंतिम संस्कार से कोई संबंध नहीं है लेकिन साधुओं के अंतिम संस्कार को समाधि कहने का प्रचलन है, लेकिन असल में किसी को अग्निदाग, किसी को जलदाग और किसी को भूदाग देते हैं। भूदाग देने वालों को प्रचलित भाषा में भू-समाधि कहते हैं। गृहस्थों का अग्नि संस्कार होता है और संन्यासियों का जल या भू समाधि देते हैं।
 
2. अंतिम क्रिया के नियम : सनातन हिन्दू धर्म में बच्चे को दाफनाया और साधुओं को समाधि दी जाती है जबकि सामान्यजनों का दाह संस्कार किया जाता है।  शास्त्रों के अनुसार 5 वर्ष के लड़के तथा 7 वर्ष की लड़की का दाहकर्म नहीं होता बल्कि उन्हें भूमि में शवासन की अवस्था में दफनाया जाता है। हालांकि कई वैष्णव, स्मार्त और कई अन्य बड़े संप्रदाय के संतों का भी अग्नि संस्कार होता है।
 
3. क्यों दी जाती है भू-समाधि : साधु और बच्चों का मन और तन निर्मल रहता है। साधु और बच्चों में आसक्ति नहीं होती है। साधु को समाधि इसलिए भी दी जाती है क्योंकि ध्यान और साधना से उनका शरीर एक विशेष उर्जा और ओरा लिए हुए होता है इसलिए उसकी शारीरिक ऊर्जा को प्राकृतिक रूप से विसरित होने दिया जाता है। साधुजन ही जल समाधि भी लेते हैं। जबकि आम व्यक्ति को इसलिए दाह किया जाता है क्योंकि यदि उसकी अपने शरीर के प्रति आसक्ति बची हो तो वह छूट जाए और दूसरा यह कि दाह संस्कार करने से यदि किसी भी प्रकार का रोग या संक्रमण हो तो वह नष्ट हो जाए।
webdunia
4. भू-समाधि देने के नियम : शैव, नाथ, दशनामी, अघोर और शाक्त परंपरा के साधु-संतों को भू समाधि देते हैं। भू समाधि में पद्मासन या सिद्धिसन की मुद्रा में बिठाकर भूमि में दफनाया जाता है। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंदजी की समाधि भी इसी तरह होगी। अक्सर गुरु की समाधि के बगल में ही शिष्य को भू समाधि देते हैं। अक्सर यह समाधि मठ में ही होती है या विशेष स्थान पर दी जाती है।
 
5. जीवित समाधि : कालांतर में कई सिद्ध संतों ने जीवित समाधि भी ली है। जीवित अर्थात जिंदा रहते ही योग क्रिया के द्वारा प्राण को ब्रह्मरंध में स्थापित करके भू समाधि ले लेना। उदाहरणार्थ राजस्थान के संत रामसा पीर ने जीवित समाधि ले ली थी।
 
6. जल समाधि : प्राचीनकाल में ऋषि और मुनि जल समाधि ले लेते थे। कई ऋषि तो हमेशा के लिए जल समाधि ले लेते थे तो कई ऋषि कुछ दिन या माह के लिए जल में तपस्या करने के लिए समाधि लगाकर बैठ जाते थे। भगवान श्रीराम ने सभी कार्यों से मुक्त होने के बाद हमेशा के लिए सरयु के जल में समाधि ले ली थी।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

हर नारी में नवदुर्गा : नवरात्रि में महसूस कीजिए स्त्री के स्वरूप को...