वाल्मीकि जी कौन थे, जानिए उनके बारे में 5 रोचक बातें

WD Feature Desk
गुरुवार, 17 अक्टूबर 2024 (10:07 IST)
Maharishi Valmiki : वर्ष 2024 में 17 अक्टूबर, दिन गुरुवार को महर्षि वाल्मीकि की जयंती मनाई जा रही है। प्रचलित पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वाल्मीकि का जन्म हुआ आश्विन मास में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। मान्यता के मुताबिक शरद पूर्णिमा के दिन उनका प्रगट दिवस मनाया जाता है। आइए जानते हैं 5 अनसुनी बातें...
 
Highlights
1. वैसे महर्षि वाल्मीकि के जन्म से जुड़ी ज्यादा जानकारी तो नहीं है, लेकिन कहा जाता है कि महर्षि कश्यप और अदिति के नवम पुत्र वरुण (आदित्य) से इनका जन्म हुआ। इनकी माता चर्षणी और भाई भृगु थे। वरुण का एक नाम प्रचेत भी है, इसलिए इन्हें प्राचेतस् नाम से उल्लेखित किया जाता है। उपनिषद के विवरण के अनुसार यह भी अपने भाई भृगु की भांति परम ज्ञानी थे। एक बार ध्यान में बैठे हुए वरुण-पुत्र के शरीर को दीमकों ने अपना घर बनाकर ढंक लिया था। साधना पूरी करके जब यह दीमकों के घर, जिसे वाल्मीकि कहते हैं, से बाहर निकले तो लोग इन्हें वाल्मीकि कहने लगे।
 
2. धार्मिक शास्त्रों के अनुसार महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित पवित्र ग्रंथ रामायण में प्रेम, त्याग, तप व यश की भावनाओं को अधिक महत्व दिया गया है। वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना करके हर मनुष्य को सद्‍मार्ग पर चलने की राह दिखाई। अत: उन्हें प्राचीन वैदिक काल के महान ऋषियों कि श्रेणी में प्रमुख स्थान प्राप्त है। वह संस्कृत भाषा के आदि कवि और हिन्दुओं के आदि काव्य 'रामायण' के रचयिता के रूप में प्रसिद्ध हैं। 
 
3. धार्मिक शास्त्रों के अनुसार इस अवसर पर भारतभर में वाल्मीकि मंदिर में पूजा-अर्चना की जाती है। महर्षि वाल्मीकि की जयंती पूरी श्रद्धा-उल्लास के साथ मनाई जाती है तथा इस दिन शोभायात्राओं का आयोजन किया जाता है। महर्षि वाल्मीकि जयंती महोत्सव के दौरान शोभायात्रा मार्ग में आने वाले जगह-जगह के लोग बड़े उत्साह के साथ इस आयोजन में भाग लेते हैं तथा उन्हें याद करते हुए उनके जीवन पर आधारित झांकियां निकाली जाती हैं तथा राम नाम के भजन गाये जाते है। साथ ही उत्साही युवक झांकियों के आगे झूम-झूम कर महर्षि वाल्मीकि के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। 
 
4. एक कथा के अनुसार महर्षि बनने से पूर्व वाल्मीकि रत्नाकर के नाम से जाने जाते थे तथा परिवार के पालन हेतु लोगों को लूटा करते थे। एक बार उन्हें निर्जन वन में नारद मुनि मिले, तो रत्नाकर ने उन्हें लूटने का प्रयास किया। तब नारद जी ने पूछा कि- तुम यह निम्न कार्य किसलिए करते हो, इस पर उन्होंने जवाब दिया कि अपने परिवार को पालने के लिए।

इस पर नारद ने प्रश्न किया- तुम जो भी अपराध करते हो और जिस परिवार के पालन के लिए तुम इतने अपराध करते हो, क्या वह तुम्हारे पापों का भागीदार बनने को तैयार होंगे। इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए- रत्नाकर, नारद जी को पेड़ से बांधकर अपने घर गए। वहां जाकर वह यह जानकर स्तब्ध रह गए कि परिवार का कोई भी व्यक्ति उसके पाप का भागीदार बनने को तैयार नहीं है। लौट कर उन्होंने नारद के चरण पकड़ लिए। तब नारद मुनि ने कहा कि- हे रत्नाकर, यदि तुम्हारे परिवार वाले इस कार्य में तुम्हारे भागीदार नहीं बनना चाहते तो फिर क्यों उनके लिए यह पाप करते हो।

इस तरह नारद जी ने उन्हें सत्य के ज्ञान से परिचित करवाया और उन्हें राम-नाम के जप का उपदेश भी दिया था, परंतु वह 'राम' नाम का उच्चारण नहीं कर पाते थे। तब नारद जी ने विचार करके उनसे मरा-मरा जपने के लिए कहा और मरा रटते-रटते यही 'राम' हो गया और निरंतर जप करते-करते हुए वह ऋषि वाल्मीकि बन गए।
 
5. उनके जीवन के रोचक प्रसंग के अनुसार एक बार महर्षि वाल्मीकि नदी के किनारे क्रौंच पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे, वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन था। तभी एक व्याध ने क्रौंच पक्षी के एक जोड़े में से एक को मार दिया। नर पक्षी की मृत्यु से व्यथित मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके इस विलाप को सुन कर वाल्मीकि के मुख से स्वत: ही- 
'मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। 
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्।। 
नामक यह श्लोक फूट पड़ा और यही महाकाव्य रामायण का आधार बना। इस तरह के 'रामायण' के रचयिता बन गए। 

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