अंतिम वक्तव्य जे. कृष्णमूर्ति

(जन्म: 1895- मृत्यु: 1986)

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
जे. कृष्णमूर्ति से धर्म और दर्शन का अंत होता है। दुनिया को बेहतर बनाने के लिए जरूरी है यथार्थवादी और स्पष्ट मार्ग पर चलना। आपके भीतर कुछ भी नहीं होना चाहिए तब आप एक साफ और सुस्पष्ट आकाश होने के लिए तैयार हो। धरती का हिस्सा नहीं, आप स्वयं आकाश हैं। जे. कृष्णमूर्ति का कहना है कि यदि आप कुछ भी है तो फिर आप कुछ नहीं।

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कृष्णमूर्ति की शिक्षा जो उनके गहरे ध्यान, सही ज्ञान और श्रेष्ठ व्यवहार की उपज है ने दुनिया के तमाम दार्शनिकों, धार्मिकों और मनोवैज्ञानिकों को प्रभावित किया। उनका कहना था कि आपने जो कुछ भी परम्परा, देश और काल से जाना है उससे मुक्त होकर ही आप सच्चे अर्थों में मानव बन पाएँगे। जीवन का परिवर्तन सिर्फ इसी बोध में निहित है कि आप स्वतंत्र रूप से सोचते हैं कि नहीं और आप अपनी सोच पर ध्यान देते हैं कि नहीं।

कृष्णमूर्ति के विचारों के जन्म को उसी तरह माना जाता है जिस तरह की एटम बम का अविष्कार के होने को। कृष्णमूर्ति अनेकों बुद्धिजीवियों के लिए रहस्यमय व्यक्ति तो थे ही साथ ही उनके कारण विश्व में जो बौद्धिक विस्फोट हुआ है उसने अनेकों विचारकों, साहित्यकारों और राजनीतिज्ञों को अपनी जद में ले लिया। उनके बाद विचारों का अंत होता है। उनके बाद सिर्फ विस्तार की ही बातें हैं।

जन्म :
अपने माता-पिता की आठवीं संतान के रूप में उनका जन्म हुआ था इसीलिए उनका नाम कृष्णमूर्ति रखा गया। कृष्ण भी वासुदेव की आठवीं संताने थे। कृष्णमूर्ति का जन्म 1895 में आंध्रप्रदेश के मदनापाली में मध्‍यवर्ग ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पिता थियोसौफिस्ट थे। उन्होंने कृष्णमूर्ति और उनके छोटे भाई नितिया को थियोसौफिकल सोसाइटी की अध्यक्ष डॉ. एनी बेसेन्ट को सौंप दिया था।

सच तो एक अंजान पथ :
एनी बेसेन्ट के एक सहयोगी डब्ल्यू लीडबीटर ने, जो दिव्य ‍दृष्टि वाले व्यक्ति थे, देखा की कृष्णमूर्ति में कुछ बात है ‍जो उन्हें सबसे अलग करती है तब कृष्णमूर्ति 13 वर्ष के थे। थियोसॉफिकल सोसाइटी के सिद्धों ने अपने शिष्यों को निर्देश दे रखा था कि वह हर बच्चे पर अपनी दृष्टि रखें क्योंकि उन्हें पूर्वाभास हुआ था कि दुनिया में कोई महापुरुष अवतरित होगा।

सभी को लगने लगा की कृष्णमूर्ति ही वह बालक है और एनी बेसेंट ने उन्हें 'मुक्तिदाता' के रूप में चुना। यहाँ तक ही उन्होंने उनके लिए 'आर्डर ऑफ दि स्टार' की स्थापना भी कर दी। एनी चाहती थी कि कृष्णमूर्ति में वे संभावनाएँ है जिससे बुद्ध की चेतना उन में उतर कर कार्य करें, लेकिन 'आर्डर ऑफ दि स्टार' के हॉलेंड स्थित एक कैम्प में जहाँ दुनिया भर के लोग एकत्रित हुए थे वहाँ भरी सभा में कृष्णमूर्ति ने यह कहकर सभी को चौंका दिया कि 'सच तो एक अंजान पथ है। कोई भी संस्था, कोई भी मत सच तक रहनुमाई नहीं कर सकता।'

एक अलग मार्ग :
उन्होंने 'आर्डर ऑफ दि स्टार' को भंग करते हुए कहा कि 'अब से कृपा करके याद रखें कि मेरा कोई शिष्य नहीं हैं, क्योंकि गुरु तो सच को दबाते हैं। सच तो स्वयं तुम्हारे भीतर है।..सच को ढूँढने के लिए मनुष्य को सभी बंधनों से स्वतंत्र होना आवश्यक है।'

कृष्णमूर्ति ने बड़ी ही फुर्ती और जीवटता से लगातार दुनिया के अनेकों भागों में भ्रमण किया और लोगों को शिक्षा दी और लोगों से शिक्षा ली। उन्होंने पूरा जीवन एक शिक्षक और छात्र की तरह बिताया। मनुष्य के सर्व प्रथम मनुष्य होने से ही मुक्ति की शुरुआत होती है। किंतु आज का मानव हिंदू, बौद्ध, ईसाई, मुसलमान, अमेरिकी, अरबी या चाइनी है।

उन्होंने कहा था कि संसार विनाश की राह पर आ चुका है और इसका हल तथाकथित धार्मिकों और राजनीतिज्ञों के पास नहीं है। उन्होंने 91 वर्ष की आयु में 1986 को अमेरिका में देह छोड़ दी। लेकिन आज भी दुनियाभर की लाइब्रेरी में कृ‍ष्णमूर्ति उपलब्ध हैं।

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