वल्लभाचार्य ने भवत्सेवा में नियामक तत्व स्नेह के आधार पर विशिष्ट सेवा क्रम अपना कर जीवों को एक नया आयाम दिया, जिसमें जीवंत जीवन की कला भरपूर एवं संपूर्ण रूप से विद्यमान रहती है। ऐसा आचार्य वल्लभ का प्रेमात्मक स्वरूप था।
वल्लभाचार्य की पत्नी का नाम महालक्ष्मी था। गोपीनाथ और श्रीविट्ठलनाथ उनके दो पुत्र थे। रुद्र संप्रदाय के विल्वमंगलाचार्यजी द्वारा इन्हें अष्टादशाक्षर गोपालमंत्र की दीक्षा दी गई और त्रिदंड संन्यास की दीक्षा स्वामी नारायणेन्द्रतीर्थ से प्राप्त हुई।