प्रजापिता ब्रह्मा : दादा लेखराज कृपलानी

दिव्य परिवर्तन के अग्रदूत

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वर्तमान परिवेश में यदि किसी को कहा जाए क्रोध से नहीं, सदा प्रेम और शांति से कार्य करो और कराओ तो संभव है कि यह उसे अव्यावहारिक और किताबों की शोभा बढ़ाने वाला सिद्धांत मात्र लगे, लेकिन पिता श्री प्रजापिता ब्रह्मा ऐसी ही दिव्य विभूति थे, जिन्होंने स्वयं अपने जीवन में ऐसा करके दिखाया।

एक संसारी मनुष्य, जो हीरे-जवाहरातों का सम्पन्न व्यापारी था, ने एक क्षण में अपनी सारी चल-अचल संपत्ति माताओं व बहनों का एक ट्रस्ट बनाकर उन्हें मानव सेवा हेतु सौंप दी और सूट-बुट और टाई पहनने वाला इंसान साधारण धोती-कुर्ता पहनने लगा। जिन हीरों को बेचकर जो कल तक धन कमाने में रमा था, उसे वे हीरे कौड़ी लगने लगे। जो कल तक गीता प्रेस द्वारा मुद्रित गीता पढ़ता था, उसके मुखारविंद से अब स्वतः ही आध्यात्मिक ज्ञान प्रस्फुटित होने लगा। यह सबकुछ अद्भुत था।

आश्चर्य तो यह है कि जिसके अंदर ही ये सारे परिवर्तन घटित हो रहे थे, वह स्वयं इन सब बातों से अनभिज्ञ था। इस तरह एक-एक करके करीब चार सौ माताओं-बहनों व भाईयों का एक प्रभु दीवाना संगठन बन गया, जो ओम मण्डली के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

यह घटना सन्‌ 1936-37 की है, जब परमात्मा ने हीरे जवाहरात के प्रख्यात व्यापारी दादा लेखराज कृपलानी के 60 वर्षीय वृद्ध तन में परकाया प्रवेश द्वारा दिव्य अवतरण लिया। उस समय दादा लेखराज अविभाजित भारत के सिंध हैदराबाद के निवासी थे। इस तरह ओम मण्डली में आने वाले प्रभु दीवानों को परमात्मा ने स्वयं के संस्कारों के दिव्यीकरण का लक्ष्य दिया। ब्रह्मा बाबा ने ओम मण्डली के सभी सदस्यों को यही प्रेरणा दी कि वे सदा सभी के शुभ चिंतक बन सबके कल्याण का ही चिंतन करें और किसी भी परिस्थिति में उनके प्रति बैर-भाव न पनपने दें।

भारत-पाकिस्तान विभाजन के उपरांत ब्रह्मा बाबा सभी सहयोगियों के साथ माउण्ट आबू आ गए। कालान्तर में एक नए रूप में परीक्षा आई आर्थाभाव की। लेकिन ब्रह्मा बाबा के चेहरे में जरा भी शिकन नहीं थी। उन्हें शिव परमात्मा पर अटूट भरोसा था। उनका यह निश्चय सत्य साबित हुआ। ऐन वक्त पर कहीं न कहीं से मनीआर्डर द्वारा धन का सहयोग आ जाता, कहीं से अनाज आ जाता, तो कहीं से सब्जी।

इस तरह प्रजापिता ब्रह्मा के अटूट परमात्मा निश्चय, सभी के प्रति निश्छल प्रेम, दिव्य पालना और गहन तपस्या के बल पर काफिला बढ़ता गया और आज वह छोटा-सा संगठन विश्व के 133 देशों में अपनी 10 हजार शाखाओं के माध्यम से वट वृक्ष की तरह फैल चुका है।

इस सशक्त रूहानी सेना के सेनापति पिताश्री ब्रह्मा, अपनी रचना को योग्य बनाकर 18 जनवरी सन्‌ 1969 को सूक्ष्म लोक की ओर रोहण कर गए। उनके 43वें पुण्य स्मृति दिवस पर उनके दिखाए गए मार्ग पर चलने का संकल्प ही उनके प्रति आस्था और श्रद्धा का अर्पण है। ऐसे दिव्य ‍परिवर्तन के अग्रदूत प्रजापिता ब्रह्मा का पुण्य स्मृति दिवस 18 जनवरी को मनाया जाता है।

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