श्री वल्‍लभ और पुष्ठि मार्ग

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श्रीमद् वल्लभाचार्य महाप्रभु भारत वर्ष के माननीय आचार्यों में अन्यतम हैं। 15वीं शताब्दी में आचार्य भगवंत ने रुद्र संप्रदाय की पुनः प्रतिष्ठा की है। रुद्र संप्रदाय के आद्याचार्य श्री विष्णु स्वामीजी महाराज हैं, आपकी स्थिति महाभारत काल के पूर्व में मानी जाती है। आचार्य वल्लभ महाप्रभु ने शुद्धाद्वैत पुष्टि मार्ग की स्थापना की है।

आचार्य प्रवर का प्राकट्य छत्तीसगढ़ में रायपुर के समीप 'चम्पारण्य' में हुआ था। आपश्री का जन्मदिन वैशाख कृ. 11 सम्वत्‌ 1535 रविवार है।

मात्र ग्यारह वर्ष की अवस्था में आचार्यश्री ने पदयात्रा आरंभ की थी, भारत देश की प्राचीनतम सप्तपुरियों में तिलाहीक्य उज्जयिनी में महाप्रभु विक्रम सम्वत्‌ 1546 चैत्र शुक्ल एक को पधारे थे।

उज्जैन में वैष्णव धर्म की पुनर्स्थापना स्थानीय पवित्र पीपल आरोपित किया था जो पाँच शताब्दी बाद आज भी विद्यमान है। भगवान कृष्ण की यह शिक्षा स्थली अति पवित्र है, इस क्षेत्र को पुरुषोत्तम क्षेत्र भी कहा जाता है।

उज्जैन बैठक का वर्तनाम स्वरूप, नवनिर्माण, महाप्रभु की 84 बैठकों की चित्रमय झाँकी बलराम, श्रीकृष्ण और सुदामा को श्री विग्रह विराजित मंदिर, गोमतीकुंड अत्यंत दर्शनीय है। नि.ली. महाराज श्री गोविंदलालजी तिलकामत श्री यहाँ के अधिपति थे, वर्तमान में अधिपति तिलकामत श्री. राकेशजी महाराज श्री हैं।

श्री गोवर्धनीचरण धीर प्रभु श्रीनाथजी वल्लभ और वल्लभियों के सर्वस्व हैं। राजस्थान के मेवाड़ में श्री नाथद्वारा में प्रभु विराजित हैं। नाथद्वारा तीर्थ वैष्णवों और संपूर्ण धर्मावलंबियों के लिए पूर्ण रुप से खुला हुआ है

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