सचेतक संत रविदास

उच्च कोटि के संत

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संत रविदासजी का जन्म माघ पूर्णिमा के दिन माडुर में हुआ था। ऐसा पूर्ण संत अभी तक पैदा नहीं हुआ। उनका जन्म संपूर्ण मानव समाज के लिए गौरव की बात है।

रविदास की शादी लोनादेवी के साथ कम उम्र में ही हो गई थी। संत रविदासजी के कारण मोची समाज को रहनुमाई मिली। आपको बाल्यकाल से ही आध्यात्मिकता का अनुभव था। वे अपनी माताजी के साथ महात्माओं के प्रवचन सुनने जाया करते थे। आपके गुरु रामानंद थे।

संत रविदासजी उच्च कोटि के संत थे। उन्होंने ईश्वर का साक्षात्कार कर निम्न वर्ग के लोगों में आत्मबल और सम्मान का संचार किया था। सभी मानव निर्मित भेदभाव झूठे और स्वार्थपूर्ण हैं। वे घास की झोपड़ी में रहकर भी खुश थे। उन्होंने झोप़ड़ी में रहकर जूते बनाना व मरम्मत का कार्य करते हुए समस्त भारत में ख्याति प्राप्त की थी।

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चित्तौ़ड़ की रानी झाला एवं मीराबाई ने संत रविदासजी को अपना गुरु बनाया। रविदासजी जातिवाद में विश्वास नहीं करते थे। उन्होंने ईश्वर को भी चेतावनी दी इसलिए उन्हें सचेतक संत भी कहते हैं। उन्होंने ईश्वर से कहा है 'या तो रहो आप मेरे दिल में अपने घर की तरह, वरना आप इस दिल में घर न करें।'

संत श्री गुरु रविदास का स्वर्गवास सन 1527 चित्तौड़गढ़, राजस्थान में हुआ था। चित्तौड़गढ़ के किले में आज भी उनकी समाधि मौजूद है, जहां उनके चरण चिह्न बने हैं। सतगुरु कबीर के स्वर्गवास के समय आपने कहा था- 'निर्गुण का गुण देखो भई देह सहित कबीर सिधाई।'

- डॉ. जगन्नाथ खांडेगर

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