धर्म में वाणी का महत्व

सोच-समझकर करें वाणी का प्रयोग

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- आचार्य किरीट भाई
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परिवर्तन प्रकृति का नियम है। यह सूर्य, यह फूल, यह बालक आदि सभी प्रतिफल परिवर्तित होते रहते हैं। सुख नहीं रहता तो दुख कैसे रहेगा? तुम प्रकृति के अधीन हो। प्रकृति जो देती है वह ग्रहण करो। सुख सुविधा पाप नहीं है केवल इनमें आसक्ति का होना बुरा है।

ऐसा कहा जाता है कि लक्ष्मी और सरस्वती साथ नहीं रहती। कुछ समय हमारी भी यही मान्यता थी। यह मान्यता सही नहीं है। कवि कालिदास ने रघुवंश में सुनंदा से कहलवाया है कि जैसे जल के तीनों रूप जल, वाष्प (अत्याधिक ताप से बना) और बर्फ भिन्न नहीं है वैसे महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली एक ही हैं।

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नाम अलग हैं और काम अलग हैं परंतु हैं एक ही। ये साथ रह सकती हैं। सरस्वती और काली जोड़ने वाली हैं तो तोड़ने वाली भी।

सरस्वती वाणी की देवी है। वाणी का महत्व है। वाणी का प्रयोग समझदारी से करो। तुम मनचाहा बोलोगे तो तुम्हें वह सुनना भी पड़ेगा जो तुम नहीं चाहते। तुम्हारी वाणी सूत्रात्मक, स्नेहात्मक और शास्त्रात्मक हो।

कर्म वाणी की एकता होने से वाणी में ताकत आती है। मां सरस्वती वाणी की देवी है। इनकी कृपा हो तो अनेक मुसीबत में फंसे जीव में भी विवेक आता है। वैसे मुसीबतों से कोई नहीं बच सकता। ये दुर्वृत्तियां इतनी असभ्य नहीं हैं, मानव ही असभ्य हो गया है।

काम और क्रोध आने पर जीव अंधा, बहरा, उन्मत्त हो जाता है। यदि मां की कृपा रहे तो काम भी देन बन जाता है। मां की कृपा से इन दुर्गुणों से कैसे व्यवहार करना है, यह विवेक आता है।

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