बाधाओं से पार पाने वाला ही भक्त

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आचार्य चंद्रमोहन जी ने कहा कि परमात्मा निर्गुण निराकार से संपूर्ण ब्रह्माण्ड में रमा हुआ है। वही सगुण साकार बनकर मानव रूप से लीला करता हुआ मनुष्य धर्म का वास्तविक मार्गदर्शन कराता है। भगवान श्रीराम ने जीवन में जितने भी कठोर कष्ट सहन करते हुए अपनी लीलाओं को किया उससे लोगों को कठिन से कठिन समय में धर्म, धैर्य और मर्यादा को नहीं त्यागने की प्रेरणा प्रदान की।

इस संसार में मनुष्य की पग-पग पर परीक्षा होती है जो मनुष्य प्रत्येक परीक्षाओं की बाधा को सकुशल पार करता है वस्तुतः वही श्रीराम भक्त कहा जा सकता है। मनुष्य की प्रवृत्ति यह है कि वह छोटी-छोटी बातों पर तनावग्रस्त हो जाता है साथ ही अपने छोटे दुःखों को पहाड़ जैसे एवं दूसरों के पहाड़ जैसे दुःखों को कुछ अहमियत नहीं देता वस्तुतः उसके दुःख का मुख्य कारण यही है।

उन्होंने कहा होना तो यह चाहिए कि अपने दुःखों की अपेक्षा दुसरों के दुःखों को दूर करने की चिंता होना चाहिए। ऐसी स्थिति में मानव अपने छोटे-मोटे दुःखों को भूल जाता है। यह मूलतः परोपकार भी है।

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भगवान वेद व्यास ने भी समस्त पुराणों की रचना करने के बाद यही कहा कि दूसरों को दुःख देने से बड़ा कोई पाप नहीं तथा दूसरों का उपकार करने से बड़ा कोई पुण्य कार्य नहीं है। हमारे शास्त्रों में हर चरण में यही बात कही गई है कि जो हमें अच्छा लगता है वैसा ही व्यवहार दूसरों के प्रति करें।

विडंबना है कि आज का मानव अपनी सुविधा अनुसार शास्त्र के वाक्यों को तोड़-मोड़कर बदलने में लगा हुआ है इसी कारण वास्तविक सुख-शांति से दूर होता जा रहा है। साश्वत्‌ शांति खोजने के लिए कहीं भटकना नहीं पड़ता वह तो प्रत्येक मनुष्य के अंतःकरण में स्थित है आवश्यकता है उस विधि को खोजने की जिससे मन मंदिर में ही शांति की प्रतिष्ठा हो सके।

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