भक्ति का भाव निष्काम होना चाहिए

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संसार में सुख और दुख जीवन के क्रम है। जिस तरह आँधी-तूफान, वर्षा और सूरज की तपिश का आकाश पर कोई असर नहीं होता, वैसे ही सुख और दुख हमें टीवी सीरियल की तरह लेना चाहिए। यह भगवान की व्यवस्था है।

जब तक निस्वार्थ और निष्काम सेवा भाव के साथ हम भक्ति नहीं करेंगे, हमारे कर्मों का फल भी अनुकूल नहीं मिलेगा। अध्यात्म के अभाव को दूर कर हम इंद्रियों पर नियंत्रण रखना सीख लेंगे तभी हमारा सेवा-धर्म फलीभूत हो सकेगा। उक्त प्रेरक विचार संत हरिराम शास्त्री ने व्यक्त किए।

मन आत्मा का आवरण : हम मन को सुधार लेंगे तो वह हमें शबरी बना देगा और बिगाड़ लेंगे तो शूर्पणखा बना देगा। मन, बुद्घि, चित्त और अहंकार मन के चार भेद हैं। मन कोई अंग नहीं, आत्मा का आवरण है और वही परमात्मा है। हम मन को नहीं, मन में घुस बैठे अहम को मार लेंगे और काम-क्रोध, लोभ-मोह जैसे विकारों को नष्ट कर लेंगे तो जीवन सँवर जाएगा।

भागवत ज्ञान का मार्ग : भागवत कथा सुनने से धर्म एवं ज्ञान का मार्ग प्रशस्त होता है और मानव जीवन के पाप-दोषों का निवारण करता है। जिस प्रकार गंगा सभी बगैर भेद भाव के मोक्ष देती है, उसी प्रकार भागवत महापुराण भी सभी को श्रवण करने का कल्याणकारी उपाय है। भागवत पुराण धर्म ग्रंथों का महासमुद्र है जिसमें सद्ज्ञान का अमृतरूपी अथाह ज्ञान भरा हुआ है। यही ज्ञान हमें हमारे पापों से दूर करके मोक्ष के मार्ग की ओर ले जाएगा।

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