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मत भूलो कि आप भगवान के आश्रय में हैं

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- मुरारी बापू के प्रवचनों से

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आप भगवान के आश्रय में ही हैं, लेकिन भूल गए हैं। सामने वाला दृश्य खराब नहीं है, तुम्हारी आंखें कमजोर हो गई हैं। दृश्य मलीन नहीं है, आंख मलीन है।

गले में खराश हो जाए तो तुम्हारा स्वर और शब्द ठीक से नहीं निकल सकता। खराश हो जाए तो तुम्हारा स्वर और शब्द ठीक से नहीं निकल सकता। खराश मिटते ही पुनः शब्द अपने रूप में निकल जाएगा। इसी तरह ब्रह्म सदैव परोक्ष रूप से सभी के आस-पास खड़ा है। प्रत्यक्ष रूप से तो कभी-कभी राम और कृष्ण बनकर आते हैं।

आप शांति से सोचिए कि श्वास कौन ले रहा है? तुम कैसे मना कर सकते हो कि ईश्वर नहीं है। श्वास लेना तुम्हारा काम है? तुम तो रात में सो जाते हो। सब क्रिया तुम्हारी बंद हो जाती है। फिर कौन श्वास लेता है?

कहीं से शब्द आया तो आपके कान में बैठकर कौन सुनता है। तुम सुनते हो? कोई दृश्य तुम्हारे सामने आया तो तुम्हारी आंखों से कौन देखता है? वो ही तो देखता है। किसी को आपने स्पर्श किया तो स्वर्श को वो ही ..। चारों और इस संसार में।

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यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम्‌।

परमात्मा सबमें व्याप्त है। कोई अपनी बुद्धि से, गले में खराश हो और शब्द ठीक से नहीं निकले, आंखें मलीन हो और ठीक से दिखाई न दे तो। हम एक शेर अक्सर कहा करते हैं कि-

काबू में अपना मन नहीं तो ध्यान क्या करें।
तेरी आंखें न करे दीदार तो उसमें भगवान क्या करें।

तेरी आंख न देख पाए तो इसमें भगवान का क्या दोष। कहीं न कहीं आश्रय तो लेना ही होता है। उनके आश्रय के बिना जीवन चल ही नहीं सकता। कहने का मतलब यह है कि भक्ति जहां भी आई वहां द्वेष नहीं, दुख तो रहेगा ही। रोना पड़ेगा। इसलिए सोच समझकर इस मार्ग में आना। यह मार्ग आंसुओं का है।

तो भक्ति व्याधि का शास्त्र है। पीड़ा और कसक का शास्त्र है। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति कभी रोए ही नहीं, वो तंदुरुस्त नहीं माना जाता।

बालक पैदा होते ही नहीं रोता है तो उसके लिए डॉक्टर सोचते हैं कि या तो कोई विशिष्ट होगा या तो पागल होगा। बालक को रोना ही चाहिए। इसीलिए मां कौशल्या ने राम को रुलाया। मनुष्य जीवन का धर्म कहता है कि रो..रो..रो..।

कबीरा हंसना छोड़ दे रोने से कर प्रीत।
बिनु रोये कित पाइये प्रेम प्यारे मीत।

तो भरतजी को, श्री उद्धवजी को देखो। नन्दबाबा को देखो। जिन-जिन लोगों ने भक्ति की है, वो कभी रोए हैं। ज्ञान में निरुपाधिस्थिति, कर्म में उपाधिस्थिति, योग में समाधिस्थिति और भक्ति में व्याधिस्थिति होती है। वैसे कुछ फर्क है भी नहीं, और कुछ फर्क है भी।

बहनें पुरुष से ज्यादा भक्ति कर सकती हैं। केवल शरीर के माध्यम से देखो तो भी। क्योंकि बहनें ज्यादा रो सकती है, पुरुष ज्यादा नहीं रो सकता। तो ज्ञान और भक्ति का ये अंतर थोड़ा सा आप समझें। दूसरी बात ज्ञान तो कठिन ही है।

ज्ञान कठिन है। भक्ति कठिन भी है, और सरल भी है। ये एक और ज्ञान भक्ति में अंतर है। ज्ञान तो सर्वकाल, सभी युग में, सर्वदेश में कठिन ही है। भगवान रामजी ने भी कहा कि ज्ञान में कई प्रत्यूह हैं। ज्ञान का साधन कठिन है। और मन में स्थिर करके, बहुत पुरुषार्थ करके कठिन मार्ग से भक्ति पाना है तो वो वहीं से ही जाएं।

जो यह नहीं कर सकता, जो असमर्थ है, वो सरलता से भी भक्ति प्राप्त कर सकता है।

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