लोभ और ममता दु:ख का कारण

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दुःख की जड़ ममता है और सुख की जड़ समता है। मेरा और तेरा ही झगड़े की जड़ है। ममता का वास सभी स्थानों पर है। जहाँ तक हमारी इंद्रियाँ और मन की गति है, वह सब ममता का ही क्षेत्र है। मरते समय भी यदि किसी वस्तु या व्यक्ति में हमारा मन फँस गया, ममता रह गई तो हमारा मरण भी बिगड़ जाएगा।

हम ट्रस्टी बनें, मालिक न बनें। जो मालिक बनते हैं, उन्हें सब भार उठाना पड़ता है। किसी नदी में जब व्यक्ति डुबकी लगाता है, तब उसके ऊपर अपार पानी रहता है। किंतु उसका भार नहीं लगता है। उसमें से यदि हम एक मटका या बरतन भरकर लाएँ तो हमारा हाथ दुखने लग जाता है, क्योंकि मटके के पानी में हमारी ममता जुड़ गई।

तुलसीदास जी कहते हैं कि यदि व्यक्ति को ममता ही करनी है तो ईश्वर तथा संत से करे, जिससे उसका उद्धार हो जाएगा। गोपियाँ कोई साधारण नहीं हैं। ये सब देव की रिचा, पूर्व जन्म की नागकन्या एवं पूर्वावतारों के प्रेमी विरक्त संत ही गोपी बनकर आए हैं। उन्होंने कहा कि आत्माराम वही है, जो आत्मा में रमन करे। मनुष्य को जीवन में सही रास्ते पर चलकर ही अपना मार्ग ढूँढ़ना चाहिए। जीव है गोपी और कृष्ण हैं परमात्मा। जब जीव व परमात्मा के बीच में काम और अहंकार आता है तो परमात्मा उसे छोड़कर दूर चले जाते हैं और फिर जीव अपने अहंकार को छोड़ देता है तो भगवान उसे दोबारा मिल जाते हैं।

मनुष्य को हमेशा धर्म के मार्ग पर ही चलना चाहिए। धर्म के मार्ग पर चलने वाले लोग कभी भी असफल नहीं होते। कंस के अत्याचारों को मिटाने के लिए भगवान कृष्‍ण मथुरा पहुँचे। ममता, लोभ, लालच में फँसे कंस को जीतने के लिए भगवान ने रासलीला रची और कंस का अंत कर उसके अत्याचारों से मुक्ति दिला दी।

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