सावधानी से करें शब्दों का चयन

हमेशा सोच-समझ कर बोले

Webdunia
- मुनि ललितप्रभा सागरजी
 
हर बात सोचने की तो होती है, पर हर बात कहने की नहीं होती। इसलिए व्यवहार को प्रभावी बनाने के लिए शब्दों का चयन हमेशा सावधानी से करें। बुद्धिमान सोचकर बोलता है और बुद्धू बोलकर सोचता है और इससे अधिक फर्क नहीं है, बुद्धिमान और बुद्धू में। इसलिए बोलने में अपने शब्दों का चयन सावधानी से करें। सतर्कतापूर्वक करें और सोच-समझ कर बोले।
 
जीभ तो आपकी अपनी है और इस पर नियंत्रण भी आपको ही रखना पड़ेगा। हमारी एक जीभ की रक्षा बत्तीस पहरेदार करते हैं, लेकिन जीभ का अगर गलत उपयोग कर लिया तो बत्तीस पहरेदार (दांत) भी संकट में पड़ जाएंगे।
 
यह अकेली बत्तीसी को तुड़वा सकती है। इसलिए गलत टिप्पणी न करें और न ही व्यंग्य में अपनी बात को पेश करें। किसी को आप खाने में चार मिठाई भले ही न खिला सकें, लेकिन आपके चार मीठे बोल खाने को जायकेदार बना देंगे।
 
एक समय की बात है। एक किसान ने अपने पड़ोसी की खूब निंदा की, अनर्गल बातें उसके बारे में बोली। बोलने के बाद उसे लगा कि उसने कुछ ज्यादा ही कह दिया, गलत कर दिया। वह पादरी के पास गया और बोला- 'मैंने अपने पड़ोसी की निंदा में बहुत उल्टी-सीधी बातें कर दी हैं, अब उन बातों को कैसे वापस लूं?'
 
पादरी ने वहां बिखरे हुए पक्षियों के पंख इकट्ठा करके दिए और कहा कि शहर के चौराहे पर डालकर आ जाओ। जब वापस आ गया तो पादरी ने कहा, 'अब जाओ और इन पंखों को वापस इकट्ठा करके ले आओ।'
 
किसान गया, लेकिन चौराहे पर एक भी पंख नहीं मिला। सब हवा में तितर-बितर हो चुके थे। किसान खाली हाथ पादरी के पास लौट आया।
 
पादरी ने कहा- 'यही जीवन का विज्ञान है कि जैसे पंखों को इकट्ठा करना मुश्किल है, वैसे ही बोली हुई वाणी को लौटाना हमारे हाथ में नहीं है। जिस प्रकार एक बार कमान से निकला तीर वापस कमान में नहीं लौटता, ठीक उसी प्रकार एक बार मुंह से निकले हुए शब्द कभी वापस नहीं लौटाए जा सकते।'

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