एकला चलो रे...

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- रवीन्द्रनाथ ठाकु र

ND
यदि तोर डाक शुने केऊ न आसे
तबे एकला चलो रे।

एकला चल ो, एकला चल ो, एकला चलो रे!
यदि केऊ कथा ना को य, ओर े, ओर े, ओ अभाग ा,
यदि सबाई थाके मुख फिरा य, सबाई करे भय-
तबे परान खुले
ओ, तुई मुख फूटे तोर मनेर कथा एकला बोलो रे!

यदि सबाई फिरे जा य, ओर े, ओर े, ओ अभाग ा,
यदि गहन पथे जाबार काले केऊ फिरे न जाय-
तबे पथेर काँटा
ओ, तुई रक्तमाला चरन तले एकला दलो रे!

यदि आलो ना घर े, ओर े, ओर े, ओ अभागा-
यदि झड़ बादले आधार राते दुयार देय धरे-
तबे वज्रानले
आपुन बुकेर पांजर जालियेनिये एकला जलो रे!

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