इंदौर, संस्कृति मंत्रालय की उर्दू अकादमी के प्रतिष्ठित उर्दू ड्रामा फ़ेस्टिवल में पहली बार इंदौर के कलाकारों का ड्रामा मंचित हुआ। राष्ट्रीय एकता और भाईचारे सन्देश देते इस नाटक- 'राम इमाम -ए -हिन्द, नाज़ -ए -हिन्द राम' को लिखा एवं निर्देशित किया था आलोक बाजपेयी ने, जबकि इसमें हिन्दी और उर्दू के प्रतिष्ठित वरिष्ठ कलाकारों सुशील जौहरी, बद्र वास्ति सहित अनेक मंजे हुए कलाकार अभिनय कर रहे थे।
यह इंदौर का ही पहला उर्दू ड्रामा प्रोडक्शन था। विषय वस्तु के अति रोचक, विशिष्ट और आज के दौर के अनुरूप होने से ये नाटक उर्दू ड्रामा फ़ेस्टिवल में ज़बरदस्त आकर्षण का केंद्र बना और पूरे देश में इस नाटक के प्रति जिज्ञासा देखी गई और चर्चा हुई।
कलाकारों के सधे हुए अभिनय और नवीनता लिए हुए प्रस्तुतिकरण से ये नाटक उर्दू ड्रामा फ़ेस्टिवल में ज़बरदस्त आकर्षण का केंद्र बना तथा उसे दर्शकों, समीक्षकों और उर्दू के कद्रदानों की खूब तारीफ़ मिली।
ज्ञातव्य है कि इंदौर में समृद्ध रंगमंच परम्परा के बावजूद इंदौर में पूर्व में उर्दू नाटक का प्रोडक्शन नहीं हुआ था। बहुविध संस्कृतिकर्मी आलोक बाजपेयी ने वर्तमान दौर में राष्ट्रीय एकता और आपसी भाईचारे के संदेश को उर्दू अदब में राम पर लिखी गईं किताबों और नज़्मों के माध्यम से प्रस्तुत करने के लिए विशेष रूप से 'इमाम -ए -राम, नाज़ - ए - हिन्द राम ' नाटक लिखा।
नाटक की थीम से प्रभावित होकर हिन्दू और उर्दू दोनों ही भाषाओं के दिग्गज और नई पीढ़ी के कलाकार दोनों ही इससे जुड़ गए। महत्वपूर्ण भूमिकाओं में वरिष्ठ रंगकर्मी एवं जाने -माने टीवी फिल्म कलाकार सुशील जौहरी, उर्दू अदब और नाट्य जगत का बहुत बड़ा नाम जनाब बद्र वास्ति तथा शहर के वरिष्ठ रंगकर्मी प्रांजल क्षोत्रिय, रवि वर्मा, गुलरेज़ खान, तनवीर फारूकी, डॉ. जावेद अहमद शाह अल- हिन्दी और नई पीढ़ी के दिग्दीप सिंह, कबीर वर्मा, जय गिरवाल आदि नज़र आये और सभी ने अपनी सशक्त प्रस्तुति से छाप छोड़ी।
वहीं अक्षय गाठिया, यश रोकड़े, हर्ष मेहता, अशोक गेहलोत, उज्जवल परसाई आदि ने भी इसमें सशक्त उपस्थिति दर्ज़ करवाई। नाटक में मंच सज्जा और प्रकाश आकल्पन का दायित्व युवा सक्षम टेक्निकल एक्सपर्ट प्रगल्भ क्षोत्रिय ने बक़माल ढ़ंग से संभाला तो अपने ज़बरदस्त मेकअप के जरिये अनुभवी आर्टिस्ट सतीश क्षोत्रिय ने अनेक कालखंडों के उर्दू शोअरा को जीवंत कर दिया।
नाटक के लिए गीत डॉ. जावेद अहमद शाह अल हिन्दी ने लिखे थे जो आलोक बाजपेयी के संगीत निर्देशन में सहज कर्णप्रिय बन पड़े और सहज ही ज़ुबां पर चढ़ गए।
मालवी कलाकारों के लिए उर्दू अनुवाद कर कलाकारों के तलफ़्फ़ुज़ ठीक करने का कार्य भी डॉ. जावेद अहमद शाह 'अल हिन्दी' और तनवीर फारुकी ने बख़ूबी किया।
वाद्य वृंद में भरत चौहान, हर्ष मेहता, उज्जवल परसाई, सजल तायवाड़े, संक्षेप पांचाल आदि ने समुचित वातावरण निर्मित किया। वस्त्र विन्यास में दिग्दीप सिंह, रंगभूषा ने भी दर्शकों को खूब लुभाया।
मंच पार्श्व की व्यस्वस्थाएं सौरभ अनंत और उनके विहान ड्रामा वर्क्स, भोपाल के रंगकर्मियों ने बेहद समर्पित भाव से निबाह कर इंदौर के कलाकारों को अपना क़ायल कर दिया। अभ्युदय सांस्कृतिक मंच की इस प्रस्तुति के लेखक और निर्देशक आलोक बाजपेयी हैं।
'राम इमाम -ए -हिन्द, नाज़ -ए -हिन्द राम' नाटक को कई अन्य उपलब्धियां भी हासिल हुईं। इस मंचन से इंदौर के कई दिग्गज कलाकारों की मंच पर नई पारी प्रारम्भ हुई। शहर में रंगकर्म की जड़ें सींचने वाले सुशील जौहरी लगभग एक दशक के बाद स्टेज पर उतरे तो तनवीर फ़ारूक़ी लगभग तीन दशक बाद। इसी तरह रवि वर्मा, डॉ. जावेद अहमद शाह 'अल हिन्दी" भी बरसों के बाद रंगमंच पर लौटे।
इस तरह एक ओर पुरानी टीम की वापसी हो रही है, वहीं कई नए अच्छे कलाकार भी इस नाटक से शहर को मिले। उर्दू भाषा में पहला नाटक प्रोडक्शन होने से हिन्दी और उर्दू भाषाओं के क़रीब आने का सिलसिला भी इससे बना।
इंदौर और भोपाल के कलाकारों के एक जाजम पर आने से भी दोनों शहर के कलाकारों के बीच समन्वय और आपसी प्रेम बढ़ा है। इस नाटक में गुज़रे दौर की कई भूली बिसरी दास्तानों को भी ड्रामा में पिरोकर याद किया गया और 'इन्फो ड्रामा' का एक नया वर्गीकरण अस्तित्व में आया।
अभिनव कला समाज और कैनरीज़ फ़ाईन आर्ट्स गैलरी में नाटक की रिहर्सल के दौरान शहर की संस्थाओं का नाटक के प्रति सद्भाव भी ज़ाहिर हुआ। शहर के पुराने रंगकर्मियों के पुनः सक्रिय होने और उनके साथ नई पीढ़ी के साथ ने शहर में रंगकर्म के लिए अच्छे दिन पुनः लौटने की ज़मीन तैयार की है। प्रतिष्ठित उर्दू ड्रामा फ़ेस्टिवल में शहर के नाटक का मंचन भी अच्छी शुरुआत है।
क़ौमी एकता, राष्ट्रीय एकता को समर्पित एवं भाषाओं - संस्कृतियों की दूरियां पाटते इस नाटक के लिए संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर एवं उर्दू अकादमी की निदेशक नुसरत मेहदी ने विशेष रूचि ली।
मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक विकास दवे ने भी अपने शोध और विस्तृत ज्ञान का लाभ दिया। संस्कृति मंत्रालय के प्रमुख सचिव शिव शेखर शुक्ला, संचालक अदिति कुमार त्रिपाठी एवं उर्दू एकेडमी के मुमताज़ खान, जो कि जाने माने फैशन डिजाइनर और नाट्य विधा के जानकार भी हैं, ने भी लीक से हटकर इस नाटक के लिए खूब सहयोग दिया।
नुसरत मेहदी ने उर्दू नाटक में पहली बार हिस्सा ले रहे कलाकारों का खूब हौसला बढ़ाने के साथ उन्हें भाषा सीखने और उससे प्रेम बढ़ाने के लिए प्रेरित कर उर्दू के संवर्धन के अपनी एकेडमी के लक्ष्य के प्रति अपना समर्पण दिखाया।
इस नाटक से जो संदेश गया और दर्शकों ने क़ौमी एकता की देश की जड़ों और परम्पराओं को जिस तीव्र अनुभूति से अनुभूत कराने में नाटक सफल हुआ, वह नाटक और लेखक-निर्देशक तथा कलाकारों की सफलता है।
मंचन के दौरान ही दर्शक दीर्घा से स्वर सुनाई दे रहे थे कि 'राम इमाम -ए -हिन्द, नाज़ -ए -हिन्द राम' नाटक के कई शोज़ होने चाहिए देश भर में। ये देश की आज की आवश्यकता के सर्वथा अनुरूप है।