राजनीतिक विश्लेषक और राष्ट्रवादी विचारों के लिए पहचाने जाने वाले पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ रविवार को भारतीय पत्रकारिता महोत्सव में शामिल हुए। पत्रकारिता महोत्सव का यह सत्र 'सर्कुलेशन टीआरपी और लाइक्स का फेर' विषय पर आयोजित किया गया।
पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ के साथ ही इस महोत्सव में विकास दवे, संजय लुणावत, पत्रकार नीरज गुप्ता, यशवंत देशमुख, गिरीश वानखेड़े, सुभाष सिरके, आशीष सिंह उपस्थित थे। पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने कहा, आज हम खबरों की चिंता कर रहे हैं, लेकिन सच यह है कि अब हम इसके लिए कुछ नहीं कर सकते हैं।
चुनाव आते ही विज्ञापन और खबरों को मेनुपलेट करने का काम शुरू हो जाता है। अभी हम काम करने जाएंगे टीवी में तो हमें भी यही सब करना पड़ेगा। अगर अखबार और टीवी कुछ लिखते हैं तो आप उसे वेरिफाई कहां से और कैसे करेंगे? इसलिए ओरिजनल सोर्स पर जाइए सीधे।
इस देश में सेक्यूलर के नाम पर मेजोरिटी हिंदुओं को कन्फ्यूज कर दिया गया है। संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द नहीं लिखा है, वहां पंथ निरपेक्ष लिखा है, उन्होंने धर्म और पंथ को एकसाथ कर दिया। मजहब पैदा होते हैं, मजहब मरते हैं, लेकिन धर्म पैदा नहीं होता। वो तो है, सनातन है। धर्म सनातन है। एक धर्म अकबर ने भी बनाया था, आज कहां है वो धर्म?
उन्होंने कहा कि कहा गया था कि 15 अगस्त को देश आजाद हुआ था, यह हर साल न्यूज़ चैनल चलाते हैं, लेकिन क्या इसका कोई डॉक्यूमेंट है? न ब्रिटिश आर्काइव में है, न भारत में कोई दस्तावेज है। नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री थे, क्या इसका कोई प्रमाण है? आज भी यही होता है, जब अखबार की मीटिंग में मार्केटिंग वालों को बुलाकर पूछा जाता है कि आज का मुद्दा क्या है?
क्या देश का टीआरपी सिस्टम निष्पक्ष है?
सुभाष सिरके ने कहा, देश में 30 हजार करोड़ का कारोबार है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या देश में टीआरपी सिस्टम निष्पक्ष है? 44 हजार टीआरपी मीटर भारत के घरों में लगा है।इस मीटर से रिजल्ट आता है कि कौनसा चैनल कितना देखा जाता है।
टीआरपी के इस पूरे खेल में धांधली होती है, क्योंकि विज्ञापन एजेंसियां टीआरपी के आधार पर ही चैनल को विज्ञापन देती हैं। ऐसे में टीआरपी पाने या बढ़ाने के लिए चैनल बड़ा धन खर्च करते हैं। कोई सिर्फ ज्योतिष दिखाता है। कोई सिर्फ एंटरटेनमेंट दिखाता है। कोई सिर्फ एलियन की खबरें दिखाते हैं। कुछ सिर्फ थर्ड वर्ल्ड वॉर की खबरें दिखाता है, जबकि खुद को ये चैनल समाचार चैनल कहते हैं। ऐसे में आम सरोकार की खबरें गायब हैं।
दिल्ली से आए आशीष सिंह (एबीपी) ने कहा कि एक जमाने में अच्छी स्टोरी करके अच्छी टीआरपी की जा सकती थी, लेकिन आज तमाम हथकंडों के बावजूद टीआरपी नहीं बढ़ा पा रहे हैं। इसलिए हमें डिस्ट्रीब्यूशन की तरफ ध्यान दिया जाना चाहिए।
चैनल का भी चालान कटना चाहिए : नीरज गुप्ता ने कहा कि टीआरपी के लिए चैनल गलत खबरें दिखा रहे हैं, इनका भी चालान कटना चाहिए। पिछले दिनों कई चैनल ने भ्रामक खबरें चलाईं, लेकिन उन पर कोई प्रतिबंध नहीं लगता।
घट रही है विजिबैलिटी : मुंबई के एंटरटेनमेंट पत्रकार गिरीश वानखेड़े ने ओटीटी प्लेटफार्म, सर्कुलेशन, एडवरटाइजमेंट और डिजिटल कंज्यूम के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि डिजिटल प्लेटफार्म ने देश के दूसरे मीडिया माध्यम की विजिबैलिटी को घटा दिया है।
लोगों को कंज्यूमर बनाने का खेल है टीआरपी : यशवंत देशमुख ने कहा कि जब टीवी नहीं था, तब भी अखबारों और पत्रिकाओं की रेटिंग होती थी। उस समय भी सर्कुलेशन के आधार पर विज्ञापन मिलते थे।उस जमाने में सबसे ज्यादा मनोहर कहानियां चलती थीं।
आज जो यह रोना रोते हैं कि पत्रकारिता डूब गई है, उन्हीं लोगों ने काल, कपाल, महाकाल, और सास बहू साजिश, इच्छाधारी नागिन नाम के प्रोग्राम चलाए।टीआरपी का खेल इस देश को बाजार बनाने के लिए रचा गया है। लोगों को कंज्यूमर बनाने का खेल है।