अहिल्याबाई : प्रेम और धर्म से किया राज

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- ज्योत्स्ना भोंडवे
 
'ईश्वर ने मुझ पर जो जिम्मेदारी सौंपी है, मुझे उसे निभाना है। प्रजा को सुखी रखने व उनकी रक्षा का भार मुझ पर है। सामर्थ्य व सत्ता के बल पर मैं जो कुछ भी यहाँ कर रही हूँ, उस हर कार्य के लिए मैं जिम्मेदार हूँ, जिसका जवाब मुझे ईश्वर के समक्ष देना होगा।
 
यहाँ मेरा अपना कुछ भी नहीं, जिसका है मैं उसी को अर्पित करती हूँ। जो कुछ है वह उसका मुझ पर कर्ज है, पता नहीं उसे मैं कैसे चुका पाऊँगी' यह कहना था उस नारी शासिका का, जिसे दुनिया प्रातःस्मरणीया देवी अहिल्याबाई होलकर के नाम से जानती व मानती है।
 
इतिहास के उस दौर में जब नारी शक्ति का स्थान समाज में गौण था। शासन की बागडोर उपासक व धर्मनिष्ठ महिला को सौंपना इतिहास का अनूठा प्रयोग था। जिसने दुनिया को दिखा दिया कि शस्त्रबल से सिर्फ दुनिया जीती जाती होगी, लेकिन लोगों के दिलों पर तो प्रेम और धर्म से ही राज किया जाता है, जिसकी मिसाल हैं देवी अहिल्याबाई होलकर।
 
अपनी निजी जिंदगी में बेहद दयालु व क्षमाशील होने के बावजूद आप न्याय व्यवस्था के पालन में बेहद सख्त एवं निष्पक्ष थीं। उसकी मर्यादा भंग करने वालों व प्रजा का अहित चाहने वालों पर आपने कभी दया नहीं दिखाई। वे अपराधी को बतौर अपराधी ही देखती थीं। फिर चाहे वह राजपरिवार का सदस्य या सामान्य नागरिक ही क्यों न हो।
 
शासन व्यवस्था पर आपकी पकड़ जबर्दस्त थी। उनके आदेश का अनादर करने का दुःसाहस किसी में भी न था और अपनी प्रशंसा या चाटुकारिता से उन्हें सख्त चिढ़ थी। यही वह गुण था जिसकी वजह से वे इतना कुशल शासन और जनकल्याण कर सकीं।
 
राज्य की आंतरिक व्यवस्था एवं बाह्य सुरक्षा के लिए वे सेना की अहमियत से अच्छी तरह वाकिफ थीं। तमाम जिंदगी धर्माचरण में व्यतीत करने के बावजूद आपने सेना की उपेक्षा नहीं की। सेना को अस्त्र-शस्त्र से सज्जित करने व उसके प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दिया।
 
प्रशासकीय व कूटनीतिक गतिविधियों के साथ आपका आर्थिक नजरिया भी गौरतलब है। जिस होलकर राज्य की वार्षिक आमदनी सूबेदार मल्हारराव होलकर के समय में 75 लाख रुपए थी, वह देवी अहिल्याबाई के समय के अंतिम वर्षों में सवा करोड़ रुपए तक पहुँच चुकी थी। उस दौरान जब संचार एवं यातायात के साधनों का अभाव रहा, आपने परराज्यों में द्वारका से जगन्नाथपुरी व बद्रीनाथ से रामेश्वर तक जनकल्याणकारी कार्यों से अपनी रचनाधर्मिता का परिचय दिया, जो आपकी स्थितप्रज्ञ भूमिका से परोपकारी कार्यों को करने की प्रबल इच्छाशक्ति का प्रतीक है।
 
यही वजह है कि अलौकिक धर्माचरण व असीम दान, धर्म और मंदिर निर्माण का जिक्र आते ही आपका नाम सबसे पहले श्रद्धा के साथ लिया जाता है। जिंदगी के सारे कार्य करते आपका चिंतन-मनन निरतंर जारी रहा। प्रसिद्ध इतिहासकार बाबा साहब पुरंदरे (जाणता राजा) के मुताबिक उनसे बड़ा दुःखी कौन होगा, जिसे अपने ही परिवार के 27 प्रियजनों का बिछोह सहन करना पड़ा। बावजूद इसके अपनी प्रजा व शासन व्यवस्था पर दुःखों को आपने कभी हावी नहीं होने दिया। आदर्श शासिका के नजरिए से आपका योगदान निश्चित ही असाधारण है।

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