एनी बेसेंट : स्वतंत्रता सेनानी

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प्रख्यात समाज सुधारक एवं भारत-प्रेमी एनी बेसेंट

जन्म : 1 अक्टूबर 1847 
मृत्यु : 20 सितंबर, 1933 

1 अक्टूबर 1847 को लंदन में जन्मी एनी बेसेंट पर अपने माता-पिता के धार्मिक विचारों का असर था। बाल्यावस्था में पिता का निधन हो गया। प्रख्यात समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी एनी बेसेंट ने भले ही विदेशी महिला थीं लेकिन उन्होंने भारत को एक सभ्यता के रूप में स्वीकार किया और यहां राष्ट्रवाद को गले से लगाया। दरअसल वह सभ्यता और राष्ट्रीयता को सहचर मानती थीं।

अल्पायु में उन्होंने फ्रांस और जर्मनी की यात्रा की और वहां की भाषाएं सीखी। युवावस्था में उनका परिचय युवा पादरी रेवरेंड फ्रैंक से हुआ और उनसे उनकी शादी हो गई, लेकिन यह शादी टिक नहीं पाई और दोनों में तलाक हो गया।
 
सन् 1878 में उन्होंने पहली बार भारत के बारे में अपने विचार प्रकट किए। उनके विचारों ने भारतीयों के मन में उनके प्रति गहरा स्नेह उत्पन्न कर दिया। वे भारतीयों के बीच कार्य करने के लिए दिन-रात सोचने लगीं। सन् 1883 में वह समाजवादी विचारधारा के प्रति आकर्षित हुईं। उन्होंने लंदन में मजदूरों के पक्ष में सोशलिस्ट डिफेंस संगठन नामक संस्था बनाई। 
 
एनी बेसेंट 1889 में थियोसोफी के विचारों से प्रभावित हुई। वह 21 मई, 1889 को थियोसोफिकल सोसायटी से जुड़ गईं। शीघ्र ही उन्होंने थियोसोफिकल सोसायटी की वक्ता के रूप में महत्वपूर्ण स्थान बनाया। उनका 1893 में भारत आगमन हुआ। वर्ष 1907 में वह थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं। उन्होंने पाश्चात्य भौतिकवादी सभ्यता की कड़ी आलोचना करते हुए प्राचीन हिंदू सभ्यता को श्रेष्ठ सिद्ध किया।
 
एनी बेसेंट की धर्म में उनकी गहरी दिलचस्पी थी। उस काल में बाल गंगाधर तिलक के अलावा उन्होंने भी गीता का अनुवाद किया। वह भूत-प्रेत जैसी रहस्यमयी चीजों में भी विश्वास करती थीं।
 
वह 1913 से लेकर 1919 तक भारत के राजनीतिक जीवन की अग्रणी विभूतियों में एक थीं। कांग्रेस ने उन्हें काफी महत्व दिया और उन्हें अपने एक अधिवेशन की अध्यक्ष भी निर्वाचित किया। उन्होंने अपने होमरूल आंदोलन से लोगों में चेतना का संचार किया। उन्होंने बाल गंगाधर तिलक के साथ मिलकर होमरूल लीग (स्वराज संघ) की स्थापना की और स्वराज के आदर्श को लोकप्रिय बनाने में जुट गई। हालांकि बाद में तिलक से उनका विवाद हो गया। जब गांधीजी ने सत्याग्रह आंदोलन प्रारंभ किया तो वह भारतीय राजनीति की मुख्यधारा से अलग हो गईं।
 
एनी बेसेंट ने निर्धनों की सेवा में आदर्श समाजवाद देखा। वह विधवा विवाह एवं अंतर-जातीय विवाह के पक्ष में थीं, लेकिन बहुविवाह को नारी गौरव का अपमान एवं समाज के लिए अभिशाप मानती थीं। उन्होंने 20 सितंबर, 1933 को इस दुनिया को अलविदा कहा। 
 
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