इंदिरा गांधी : विश्व राजनीति की लौह महिला

बचपन में अंधेरे से लगता था डर

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इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद में आनंद भवन में हुआ था। अपने दृढ निश्चय, साहस और निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता के कारण इंदिरा गांधी को विश्व राजनीति में लौह महिला के रूप में जाना जाता है, लेकिन कम लोगों को मालूम होगा कि बचपन में उन्हें आम बच्चों की तरह अंधेरे से काफी डर लगता था।

इंदिरा गांधी ने अपने संस्मरण ‘बचपन के दिन’ में इसका उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा, ‘मुझे अंधेरे से डर लगता था, जैसा कि शायद प्रत्येक छोटे बच्चे को लगता है। रोज शाम को अकेले ही निचली मंजिल के खाने के कमरे से उपरी मंजिल के शयनकक्ष तक की यात्रा मुझे बहुत भयभीत करती थी। लम्बे, फैले हुए बरामदे को पार करना, चरमराती हुई लकड़ी की सीढ़ियों पर चढ़ना और एक स्टूल पर चढ़कर दरवाजे के हैंडिल और बत्ती के स्विच तक पहुंचना।’

उन्होंने लिखा, ‘अगर मैंने अपने इस डर की बात किसी से कही होती तब मुझे पूरा विश्वास है कि कोई न कोई मेरे साथ ऊपर आ जाता या देख लेता कि बत्ती जल रही है या नहीं। लेकिन उस उम्र में भी साहस का ऐसा महत्व था कि मैंने निश्चय किया कि मुझे इस अकेलेपन के भय से अपने ही छुटकारा पाना था।’

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पूर्व विदेश मंत्री एवं वरिष्ठ नेता नटवर सिंह ने कहा कि माता की खराब सेहत और पिता की व्यस्तता के कारण उनका बचपन सामान्य बच्चों की तरह नहीं बीता लेकिन पिता जवाहर लाल नेहरू का उन पर गहरा प्रभाव था। नेहरू ने भी अपनी पुत्री का हर पथ पर मार्गदर्शन किया। पिता का पत्र पुत्री के नाम इसका जीवंत उदाहरण है।

इंदिरा ने भी इसे स्वीकार किया है। उन्होंने लिखा, ‘मेरे दादा परिवार के मुखिया थे, इसलिए नहीं कि वह उम्र में सबसे बड़े थे बल्कि इसलिए क्योंकि उनका व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली था। लेकिन मेरी छोटी सी दुनिया के केन्द्र बिन्दु में मेरे पिता थे। मैं उनको प्यार, उनकी प्रशांसा और सम्मान करती थी। वही एकमात्र व्यक्ति थे जिनके पास मेरे अन्तहीन प्रश्नों को गंभीरता से सुनने का समय होता था। उन्होंने ने ही आसपास की चीजों के प्रति मेरी रूचि जागृत कर मेरी विचारधारा को दिशा दी।’

इंदिरा को खिलौनों का ज्यादा शौक नहीं था। ‘शुरू में मेरा मनपसंद खिलौना एक भालू था जो उस पुरानी कहावत को याद दिलाता है कि दया से कोई मर भी सकता है क्योंकि प्यार के कारण ही मैंने उसे नहलाया था और अपनी आंटी की चहेरे पर लगाने वाली नई और महंगी फ्रेंच क्रीम को उस पर थोप दिया था। अपनी रूआंसी हो आई आंटी से डांट खाने के अलावा मेरे सुन्दर भालू के बाल हमेशा के लिए खराब हो गए।’ गुलाम भारत की चिंतनीय स्थिति को इंदिरा गांधी ने बचपन में ही भांप लिया था, उनको समझ में आ गया था कि स्वतंत्रता कितनी जरूरी है।

सिंह ने बताया कि इंदिरा ने बालपन में हम उम्र बच्चों और मित्रों के सहयोग से ‘वानर सेना’ का गठन किया था। उन्हें राजनीति की समझ विरासत में मिली जिसकी वजह से जल्द ही उनका प्रवेश राजनीति में हो गया। पंडित नेहरू भी कई बार उनसे मश्वरा करते थे। उनकी दृढ़ निश्चय की क्षमता का उदाहरण देश का पहला परमाणु परीक्षण करने का निर्णय था।

इंदिरा ने बचपन के दिनों को याद करते हुए लिखा, ‘गर्मी का लाभ यह था कि हम तारों से चमकते आकाश के नीचे सोते और इससे तारों के बारे में ढेर सारी जानकारी मिलती थी और दूसरा लाभ था आम, जो उन दिनों हम एक या दो नहीं बल्कि टोकरी भर कर खाते थे। मैं कम ही खाती थी क्योंकि खाने और सोने को निरर्थक बर्बादी मानती थी।’ (भाषा)

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