bhilar the book village of india: आज जब हर हाथ में मोबाइल है और डिजिटल दुनिया ने किताबों की जगह ले ली है, तब भी महाराष्ट्र के सतारा जिले में एक ऐसा अनोखा गांव है जहां किताबों का सम्मान आज भी बरकरार है। यह है भिलार गांव, जिसे 'पुस्तकांचे गाव' यानी 'किताबों का गांव' के नाम से भी जाना जाता है। यह गांव डिजिटल युग में भी किताबों के महत्व को दर्शाता एक प्रेरणादायक उदाहरण है।
भिलार गांव की अनोखी पहल
भिलार गांव महाराष्ट्र सरकार की एक अनूठी पहल का परिणाम है। 2017 में, महाराष्ट्र सरकार ने यूनाइटेड किंगडम के हे-ऑन-वे (Hay-on-Wye) मॉडल से प्रेरित होकर भिलार को भारत का पहला 'किताबों का गांव' घोषित किया। इस पहल का मुख्य उद्देश्य पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा देना, पर्यटन को आकर्षित करना और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करना था।
हर घर में है एक लाइब्रेरी
भिलार की सबसे खास बात यह है कि यहां हर घर में, सार्वजनिक स्थानों पर और यहां तक कि स्थानीय भोजनालयों में भी छोटी-बड़ी लाइब्रेरियां स्थापित की गई हैं। इन लाइब्रेरियों में मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे कविता, उपन्यास, नाटक, आत्मकथाएं, लोक कथाएं और बच्चों की किताबें उपलब्ध हैं। इन किताबों को इस तरह से व्यवस्थित किया गया है कि कोई भी पाठक आसानी से अपनी पसंद की किताब ढूंढ सके और उसे पढ़ सके। इन किताबों को पढ़ने के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता है, बस आपको एक शांत जगह पर बैठकर पढ़ने का आनंद लेना है।
क्यों है यह इतना खास?
• पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा: भिलार गांव ने न केवल स्थानीय लोगों में बल्कि पर्यटकों में भी पढ़ने की आदतों को फिर से जीवंत किया है। यहां आने वाले लोग मोबाइल छोड़कर किताबों की दुनिया में खो जाते हैं।
• पर्यटन को बढ़ावा: यह अनोखा विचार देश भर से और विदेशों से भी साहित्य प्रेमियों और पर्यटकों को आकर्षित करता है, जिससे गांव की अर्थव्यवस्था को लाभ होता है।
• साहित्य और संस्कृति का संरक्षण: यह गांव मराठी साहित्य और संस्कृति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
• ग्रामीण विकास का मॉडल: भिलार एक ऐसे मॉडल के रूप में उभरा है जहां संस्कृति और शिक्षा को ग्रामीण विकास से जोड़ा जा सकता है।
मोबाइल से हटकर किताबों की दुनिया में
आज के समय में जब बच्चे और बड़े सभी मोबाइल और सोशल मीडिया में डूबे रहते हैं, भिलार गांव एक ताजी हवा का झोंका है। यहां आकर आप शहरी जीवन की भागदौड़ और डिजिटल दुनिया के शोर से दूर, प्रकृति की गोद में किताबों के साथ शांतिपूर्ण समय बिता सकते हैं। गांव के सुंदर प्राकृतिक दृश्य, स्ट्रॉबेरी के खेत और शांत वातावरण पढ़ने के अनुभव को और भी सुखद बनाते हैं।
कैसे पहुंचें भिलार?
भिलार गांव पुणे से लगभग 100 किलोमीटर और मुंबई से लगभग 250 किलोमीटर दूर महाबलेश्वर के पास स्थित है। सड़क मार्ग से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। भिलार गांव केवल किताबों का गांव नहीं है, यह एक विचारधारा है जो हमें सिखाती है कि डिजिटल क्रांति के इस दौर में भी किताबों का महत्व कम नहीं हुआ है। यह गांव एक प्रेरणा है कि कैसे एक छोटा सा विचार बड़े बदलाव ला सकता है और कैसे हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए आधुनिकता के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकते हैं। अगर आप किताबों के शौकीन हैं या बस कुछ समय के लिए डिजिटल दुनिया से दूर जाना चाहते हैं, तो भिलार गांव निश्चित रूप से आपकी सूची में होना चाहिए। यहां आकर आप न केवल किताबों का आनंद लेंगे, बल्कि एक अनोखे ग्रामीण अनुभव का भी लाभ उठा पाएंगे।