विचित्र किस्म के जीव और मानव, जानिए प्राचीन रहस्य

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संकलन : ए. जोशी 'एस'
भारत रहस्यों से भरा देश रहा है। शोधानुसार लगभग 35 से 40 हजार वर्षों से भारत में एक समृद्ध सामाजिक परंपरा रही है। इन वर्षों में भारत ने कई उतार-चढ़ाव देखे। प्राचीनकाल में सुर, असुर, देव, दानव, दैत्य, रक्ष, यक्ष, दक्ष, किन्नर, निषाद, वानर, गंधर्व, नाग और मानव आदि जातियां होती थीं। प्राचीन भारत में कुछ इस तरह के मानव और जीव हुए हैं जिनके बारे में आज भी शोध जारी है। हालांकि इनमें से कुछ के रहस्यों पर से अब पर्दा उठ गया है।
यूरोप में 35 हजार से डेढ़ लाख साल पहले के आदिमानव के जीवाश्म मिले हैं। वैज्ञानिकों अनुसार मानवों का अस्तित्व 60 हजार से एक लाख 20 हजार साल पहले मौजूद था। यूरोप में मिले इन अवशेषों को निएंडरथल कहते हैं, जबकि एशिया में रह रहे आदिम इंसानों को डेनिसोवांस कहते थे। एक प्रजाति इंडोनेशिया में मिले आदिम इंसानों की भी है, जिसे हॉबिट कहते हैं। इनके अलावा एक रहस्यमय चौथा समूह भी था, जो यूरोप और एशिया में रहते थे। यह समूह डेनिसोवांस का संकर समूह माना जाता था। लेकिन ताजा मामले में चीन में पिछले दिनों विचित्र किस्म का जीवाश्म मिला, जो अब तक मालूम मानव प्रजाति के जीवाश्म से मेल नहीं खाता। इस जीवाश्म का पता पहली बार 1976 में शूजियाओ के गुफाओं में मिला। जीवाश्म में आधुनिक और आदिम अवशेष हैं. यह हाइब्रिड जैसा है। इससे सिद्ध होता है कि प्राचीन काल में मानवों की विचित्र किस्म की प्रजातियां भी होती थी। खैर...
 
वैज्ञानिक अब पक्षियों की भाषा समझने में सक्षम हो रहे हैं, तो यह तो कहा ही जा सकता है कि पक्षी आज भी बोलते हैं। जेनेटिक इंजीनियर अब मानव और पशुओं के जीन से संकर प्रजाति बनाने में सक्षम होने लगे हैं। वैज्ञानिकों द्वारा कृत्रिम मानव गुणसूत्र से बनाए गए चूहे इसका एक उदाहरण हैं। यह इस बात का सबूत है कि प्राचीनकाल में दो भिन्न-भिन्न प्रजातियों के मेल से विचित्र किस्म के जीव-जंतुओं और मानवों का जन्म हुआ होगा।
 
रामायणकाल और महाभारत काल में जहां विचित्र तरह के मानव और पशु-पक्षी होते थे, वहीं उस काल में तरह-तरह के सुर और असुरों का साम्राज्य और आतंक था। हालांकि बहुत कम ही लोग होंगे, जो इस बात से सहमत हैं कि दुनिया में विचित्र प्राणी होते हैं? सबसे अधिक डरावने और विचित्र प्राणियों के धरती पर अस्तित्व को लेकर हमेशा वैज्ञानिकों में मतभेद ही रहा है। हालांकि फिर भी इन प्राणियों पर कई फिल्में, डॉक्यूमेंट्री और किताबें लिखी गई हैं। सवाल उठते रहे हैं कि क्या ऐसे डरावने जीवों का अस्तित्व पृथ्वी पर कभी रहा है या यह महज एक कल्पना है? तो आइए, जानें ऐसे ही कुछ विचित्र प्राणियों से जुड़ी बातों के बारे में...।
 
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कबंध : सीता की खोज में लगे राम-लक्ष्मण को दंडक वन में अचानक एक विचित्र दानव दिखा जिसका मस्तक और गला नहीं थे। उसके मस्तक पर केवल एक आंख ही नजर आ रही थी। वह विशालकाय और भयानक था। उस विचित्र दैत्य का नाम कबंध था। 
 
रामायणकाल में संपूर्ण दक्षिण भारत और दंडकारण्य क्षेत्र (मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़) पर राक्षसों का आतंक था। दंड नामक राक्षस के कारण ही इस क्षेत्र का नाम दंडकारण्य पड़ा था।
 
कबंध ने राम-लक्ष्मण को एकसाथ पकड़ लिया। राम और लक्ष्मण ने कबंध की दोनों भुजाएं काट डालीं। कबंध ने भूमि पर गिरकर पूछा- आप कौन वीर हैं? परिचय जानकर कबंध बोला- यह मेरा भाग्य है कि आपने मुझे बंधन मुक्त कर दिया। कबंध ने कहा- मैं दनु का पुत्र कबंध बहुत पराक्रमी तथा सुंदर था। राक्षसों जैसी भीषण आकृति बनाकर मैं ऋषियों को डराया करता था इसीलिए मेरा यह हाल हो गया था।
 
वैज्ञानिक सत्यता : कुछ समय पूर्व छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के एक सरकारी अस्पताल में एक विचित्र मानव का जन्म हुआ जिसकी दो नहीं एक आंख थी और वह भी मस्तक पर। अथक प्रयासों के बाद भी डॉक्टर उसकी जान नहीं बचा पाए। जिले के सिहावा निवासी रितु पटेल पति उमेश को नगर के शासकीय अस्पताल में भर्ती कराया गया। कुछ ही देर में रितु ने एक बच्चे को जन्म दिया जिसे देखकर डॉक्टर भी दंग रह गए। बच्चे के चेहरे पर एक ही आंख थी। उसकी आंख माथे पर सामान्य से बड़ी थी। उसके सिर का आकार काफी छोटा था। जन्म से महज डेढ़ घंटे बाद ही उसकी मौत हो गई। 
 
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रीछ मानव : क्या इंसानों के समान कोई पशु हो सकता है? जैसे रीछ प्रजाति। रामायण में जामवंत को एक रीछ मानव की तरह दर्शाया गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह अर्सिडी कुल का मांसाहारी, स्तनी, झबरे बालों वाला बड़ा जानवर है। यह लगभग पूरी दुनिया में कई प्रजातियों में पाया जाता है। मुख्‍यतया इसकी 5 प्रजातियां हैं- काला, श्वेत, ध्रुवीय, भूरा और स्लोथ भालू। 
 
जामवन्त आज भी जिंदा हैं, जानिए उनके जीवन का रहस्य...
 
अमेरिका और रशिया में आज भी भालू मानव के किस्से प्रचलित हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि कभी इस तरह की प्रजाति जरूर अस्तित्व में रही होगी। कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि भूरे रंग का एक विशेष प्रकार का भालू है जिसे नेपाल में 'येति' कहते हैं। एक ब्रिटिश वैज्ञानिक शोध में पता चला है कि हिमालय के मिथकीय हिममानव 'येति' भूरे भालुओं की ही एक उपप्रजाति हो सकती है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ब्रायन स्काइज द्वारा किए गए बालों के डीएनए परीक्षणों से पता चला है कि ये ध्रुवीय भालुओं से काफी कुछ मिलते-जुलते हैं। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भूरे भालुओं की उप-प्रजातियां हो सकती हैं।
 
संस्कृत में भालू को 'ऋक्ष' कहते हैं। अग्नि पुत्र जामवन्त को ऋक्षपति कहा जाता है। यह ऋक्ष बिगड़कर रीछ हो गया जिसका अर्थ होता है भालू अर्थात भालू के राजा। लेकिन क्या वे सचमुच भालू मानव थे? रामायण आदि ग्रंथों में तो उनका चित्रण ऐसा ही किया गया है। ऋक्ष शब्द संस्कृत के अंतरिक्ष शब्द से निकला है। जामवंतजी को अजर अमर होने का वरदान प्राप्त है। 
 
प्राचीनकाल में इंद्र पुत्र, सूर्य पुत्र, चंद्र पुत्र, पवन पुत्र, वरुण पुत्र, ‍अग्नि पुत्र आदि देवताओं के पुत्रों का अधिक वर्णन मिलता है। उक्त देवताओं को स्वर्ग का निवासी कहा गया है। एक ओर जहां हनुमानजी और भीम को पवनपुत्र माना गया है, वहीं जामवन्तजी को अग्नि पुत्र कहा गया है। जामवन्त की माता एक गंधर्व कन्या थी। जब पिता देव और माता गंधर्व थीं तो वे कैसे रीछ मानव हो सकते हैं? 
 
एक दूसरी मान्यता के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने एक ऐसा रीछ मानव बनाया था, जो दो पैरों से चल सकता था और जो मानवों से संवाद कर सकता था। पुराणों के अनुसार वानर और मानवों की तुलना में अधिक विकसित रीछ जनजाति का उल्लेख मिलता है। वानर और किंपुरुष के बीच की यह जनजाति अधिक विकसित थी। हालांक‍ि इस संबंध में अधिक शोध किए जाने की आवश्यकता है।
 
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वानर मानव : क्या हनुमानजी बंदर प्रजाति के थे? हनुमान का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। नए शोधानुसार प्रभु श्रीराम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था अर्थात आज से लगभग 7129 वर्ष पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था। शोधकर्ता कहते हैं कि आज से 9 लाख वर्ष पूर्व एक ऐसी विलक्षण वानर जाति भारतवर्ष में विद्यमान थी, जो आज से 15 से 12 हजार वर्ष पूर्व लुप्त होने लगी थी और अंतत: लुप्त हो गई। इस जाति का नाम कपि था।
 
हनुमानजी के संबंध में यह प्रश्न प्राय: सर्वत्र उठता है कि 'क्या हनुमानजी बंदर थे?' इसके लिए कुछ लोग रामायणादि ग्रंथों में लिखे हनुमानजी और उनके सजातीय बांधव सुग्रीव अंगदादि के नाम के साथ 'वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम' आदि विशेषण पढ़कर उनके बंदर प्रजाति का होने का उदाहरण देते हैं। वे यह भी कहते हैं कि उनकी पुच्छ, लांगूल, बाल्धी और लाम से लंकादहन का प्रत्यक्ष चमत्कार इसका प्रमाण है। यह ‍भी कि उनकी सभी जगह सपुच्छ प्रतिमाएं देखकर उनके पशु या बंदर जैसा होना सिद्ध होता है। रामायण में वाल्मीकिजी ने जहां उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर-शिरोमणि प्रकट किया है, वहीं उनको लोमेश ओर पुच्छधारी भी शतश: प्रमाणों में व्यक्त किया है।
 
दरअसल, आज से 9 लाख वर्ष पूर्व मानवों की एक ऐसी जाति थी, जो मुख और पूंछ से वानर समान नजर आती थी, लेकिन उस जाति की बुद्धिमत्ता और शक्ति मानवों से कहीं ज्यादा थी। अब वह जाति भारत में तो दुर्भाग्यवश विनष्ट हो गई, परंतु बाली द्वीप में अब भी पुच्छधारी जंगली मनुष्यों का अस्तित्व विद्यमान है जिनकी पूंछ प्राय: 6 इंच के लगभग अवशिष्ट रह गई है। ये सभी पुरातत्ववेत्ता अनुसंधायक एकमत से स्वीकार करते हैं कि पुराकालीन बहुत से प्राणियों की नस्ल अब सर्वथा समाप्त हो चुकी है।
 
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दस फन वाला सांप : सभी जीव-जंतुओं में गाय के बाद सांप ही एक ऐसा जीव है जिसका हिन्दू धर्म में ऊंचा स्थान है। सांप एक रहस्यमय प्राणी है। देशभर के गांवों में आज भी लोगों के शरीर में नाग देवता की सवारी आती है।
शेषनाग के बारे में सभी जानते हैं जिसके ऊपर भगवान विष्णु को लेटे हुए बताया जाता है। कश्यप-कद्रू के बेटों में सबसे पराक्रमी शेषनाग था। उसके भाई का नाम वासुकि और कर्कोटक था। शेषनाग को ही अनंत कहते थे। भारत में नागों की पूजा के प्रचलन के पीछे कई रहस्य छिपे हुए हैं। माना जाता है कि नागों की एक सिद्ध और चमत्कारिक प्रजाति हुआ करती थी जो मानवों की सभी मनोकामना पूर्ण कर देते थे। उल्लेखनीय है कि नाग और सर्प में फर्क है। सभी नाग कद्रू के पुत्र थे जबकि सर्प क्रोधवशा के।
 
पौराणिक कथाओं अनुसार पाताललोक में कहीं एक जगह नागलोक था जहां मानव आकृति में नाग रहते थे। कहते हैं कि सात तरह के पाताल में से एक महातल में ही नागलोक बसा था जहां कश्यप की पत्नी कद्रू और क्रोधवशा से उत्पन्न हुए अनेक सिरों वाले नाग और सर्पों का एक समुदाय रहता था। उनमें कहुक, तक्षक, कालिया और सुषेण आदि प्रधान नाग थे। 
 
कुंति पुत्र अर्जुन ने पाताललोक की एक नाग कन्या से विवाह किया था जिसका नाम उलूपी था। यह विधवा थी। अर्जुन से विवाह करने के पहले उलूपी का विवाह एक बाग से हुआ था जिसको गरूढ़ ने खा लिया था। अर्जुन और नाग कन्या उलूपी के पुत्र थे अरावन जिनका दक्षिण भारत में मंदिर है और हिजड़े लोग उनको अपना पति मानते हैं। भीम के पुत्र घटोत्कच विवाह भी एक नाग कन्या से ही हुआ था जिसका नाम अहिलवती था ‍और जिसका पुत्र वीर योद्धा बर्बरीक था। वर्तमान में इच्छाधारी नाग और नागिन की कहानियां प्रचलन में है। 
 
प्राचीनकाल में नागों पर आधारित नाग प्रजाति के मानव कश्मीर में निवास करते थे। आज भी कश्मीर के बहुत से स्थानों के नाम नागकुल के नामों पर ही आधारित हैं, जैसे अनंतनाग शहर, शेषनाग झील। बाद में ये सभी नागकुल के लोग झारखंड और छत्तीसगढ़ में आकर बस गए थे, जो उस काल में दंडकारण्य कहलाता था। भारत में प्रमुख रूप से 8 नागकुल थे। अनंत (शेषनाग), वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक।
 
वर्तमान में 2 और 5 फन वाले नाग पाए जाते हैं, लेकिन 10 फनों के नागों की प्रजाति अब लुप्त हो गई है। कुछ वर्षों पूर्व झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के चांडिल प्रखंड में 10 फन वाले शेषनाग देखे जाने की चर्चा जोरों पर थी। बताया जा रहा है कि इस शेषनाग को बीते कुछ दिनों में कई ग्रामीणों ने देखा था। इस तरह हैदराबाद में एक 5 फन वाला नाग देखा गया जिसका लोगों ने चित्र खींच लिया था।
 
उड़ने वाला और इच्छाधारी नाग : माना जाता है कि 100 वर्ष से ज्यादा उम्र होने के बाद सर्प में उड़ने की शक्ति आ जाती है। सर्प कई प्रकार के होते हैं- मणिधारी, इच्‍छाधारी, उड़ने वाले, एकफनी से लेकर दसफनी तक के सांप, जिसे शेषनाग कहते हैं। नीलमणिधारी सांप को सबसे उत्तम माना जाता है। इच्छाधारी नाग के बारे में कहा जाता है कि वह अपनी इच्छा से मानव, पशु या अन्य किसी भी जीव के समान रूप धारण कर सकता है। 
 
हालांकि वैज्ञानिक अब अपने शोध के आधार पर कहने लगे हैं कि सांप विश्व का सबसे रहस्यमय प्राणी है और दक्षिण एशिया के वर्षा वनों में उड़ने वाले सांप पाए जाते हैं। उड़ने में सक्षम इन सांपों को क्रोसोपेलिया जाति से संबंधित माना जाता है। वैज्ञानिकों ने 2 और 5 फन वाले सांपों के होने की पुष्‍टि की है लेकिन 10 फन वाले सांप अभी तक नहीं देखे गए हैं।
 
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विचित्र किस्म के मानव पक्षी : माना जाता है कि गिद्धों (गरूड़) की एक ऐसी प्रजाति थी, जो बुद्धिमान मानी जाती थी और उसका काम संदेश को इधर से उधर ले जाना होता था, जैसे कि प्राचीनकाल से कबूतर भी यह कार्य करते आए हैं। भगवान विष्णु का वाहन है गरूड़। 
 
प्रजापति कश्यप की पत्नी विनता के 2 पुत्र हुए- गरूड़ और अरुण। गरूड़जी विष्णु की शरण में चले गए और अरुणजी सूर्य के सारथी हुए। सम्पाती और जटायु इन्हीं अरुण के पुत्र थे।
 
राम के काल में सम्पाती और जटायु की बहुत ही चर्चा होती है। ये दोनों भी दंडकारण्य क्षेत्र में रहते थे, खासकर मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में इनकी जाति के पक्षियों की संख्या अधिक थी। छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य में गिद्धराज जटायु का मंदिर है। स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे इसीलिए यहां एक मंदिर है।
 
दूसरी ओर मध्यप्रदेश के देवास जिले की तहसील बागली में ‘जटाशंकर’ नाम का एक स्थान है जिसके बारे में कहा जाता है कि गिद्धराज जटायु वहां तपस्या करते थे। जटायु पहला ऐसा पक्षी था, जो राम के लिए शहीद हो गया था। जटायु का जन्म कहां हुआ, यह पता नहीं, लेकिन उनकी मृत्यु दंडकारण्य में हुई।
 
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मत्स्य कन्या (Mermaid) : दुनिया की हर संस्कृति और धर्म में मत्स्य कन्याओं के होने के किस्से और कहानियां मिलते हैं। कई लोग ऐसा दावा करते हैं कि उन्होंने मत्स्य कन्याओं को देखा है। आपको यू ट्यूब पर इस तरह के दावे के कई वीडियो भी मिल जाएंगे। हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है यह कोई नहीं जानता।
भारतीय रामायण के थाई व कम्बोडियाई संस्करणों में रावण की बेटी सुवर्णमछा (सोने की जलपरी) का उल्लेख किया गया है। वह हनुमान का लंका तक सेतु बनाने का प्रयास विफल करने की कोशिश करती है, पर अंततः उनसे प्यार करने लगती है। भारतीय दंतकथाओं में भगवान विष्णु के मत्स्यावतार का उल्लेख है जिसके शरीर का ऊपरी भाग मानव का व निचला भाग मछली का है। इसी तरह चीन, अरब और ग्रीक की लोककथाओं में भी जलपरियों के सैकड़ों किस्से पढ़ने को मिलते हैं।
 
बहुत से लोग मत्स्य कन्या को जलपरी कहते हैं। बहुत से लोग दावा करते हैं कि गुजरात के पोरबंदर के पास मधुपुरा गांव के पास स्थित समुद्री तट पर जलपरी पाई गई। सोशल मीडिया में इसकी तस्वीरें खूब वायरल हुई थीं। इन तस्वीरों में दिखाया गया है‌ कि स्किन कलर की एक पारदर्शी शरीर में जलपरी मरी हुई है। वायरल हुई इन तस्वीरों की पुष्टि किसी ने नहीं की है। कहा जा रहा है कि ऐसी ही जलपरियों की तस्वीर हाल ही में पाकिस्तान में भी देखी गई, हालांकि यह खबर झूठ साबित हुई।
 
हालांकि दुनियाभर के समुद्री यात्रियों और नाविकों ने जलपरियों के देखे जाने के कई दावे किए हैं। अपनी कैरेबियंस की यात्रा के दौरान क्रिस्टोफर कोलंबस ने भी ऐसा ही कुछ देखने का जिक्र किया था। ऐसे ही दो दृश्य वैंकुवर और विक्टोरिया के तटों पर देखे गए। सन् 2009 में दर्जनों लोगों ने इसराइल के एक तट पर जलपरी की तरह ही दिखती एक आकृति को समुद्र में उछलते और कलाबाजियां करते देखा था। सुनामी आने के बाद भी एक तट पर ऐसी ही मृत जलपरी देखे जाने की खूब चर्चा हुई थी।
 
हाल ही में ग्रीनलैंड के समुद्र में एक पनडुब्बी में सवार कर्मचारियों ने एक ऐसा वीडियो जारी किया है जिसे जलपरियों के होने का निशान माना जा रहा है। इसी दौरान अचानक एक विचित्र प्राणी ने उनकी पनडुब्बी के शीशे पर हाथ लगाया जिसकी 4 अंगुलियां व 1 अंगूठा था और फिर वो तेजी से दूसरी ओर तैरता हुआ चला गया। 2 मिनट व 17 सेकंड के इस वीडियो के सच या झूठ होने पर अभी तक विशेषज्ञों के बीच बहस चल रही है। 
 
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उलूक मानव : उलूक मानव अर्थात उल्लू जैसा मानव। ब्रिटेन में एक स्थान पर एक नहीं, कई लोगों ने उलूक मानव को देखे जाने का दावा किया। इंग्लैंड में दक्षिणी समुद्र तट की ओर एक गिरजाघर है। मणनान नामक यह चर्च एक प्रागैतिहासिक खंडहर के प्रांगण में स्थित है। आसपास के क्षेत्र के बारे में लोगों में तमाम तरह की भ्रांतियां प्रचलित हैं। यूं तो सदियों से इंग्लैंड के दक्षिण समुद्रतटीय क्षेत्र कार्नवाल में सदियों से यह कहा सुना जाता था कि वहां उलूक मानव रहते थे लेकिन इसकी पुष्टि में कोई लिखित प्रमाण 1976 से पहले का नहीं है।
 
1976 में 2 बच्चों ने यहां उलूक मानव देखे। 12 वर्ष का जून मेलिंग और 9 वर्ष की उसकी बहन विकी 17 अप्रैल 1976 की शाम गिरजाघर के पास टहल रहे थे। विकी को आसमान में गिरजे के ऊपर एक विचित्र पक्षी मंडराता दिखा, जो उल्लू जैसा था लेकिन विशालकाय था। उसने घबराते हुए अपने भाई को ऊपर देखने को कहा और पूछा, ‘भाई, वह क्या है?’ मेलिंग भी उसे देखता रह गया। अगले 3 महीने तक बात आई-गई हो गई और इस घटना को लगभग लोग भूल से गए लेकिन 3 माह बाद फिर उस क्षेत्र में उलूक मानव की मौजूदगी पाई गई। सैली चैपमैन और बारबरा पैरी ने उसे चर्च की ओर एक चीड़ के पेड़ के पास धरती पर खड़े देखा।
 
जेन ग्रीनवुड और उसकी बहन ने भी उलूक मानव उसी क्षेत्र में देखा। जेन ने लोगों और समाचार पत्रों को बताया, ‘हमने रविवार के दिन मावनान गिरजाघर के निकट पेड़ों के बीच एक विचित्र चीज को खड़े पाया। चिड़ियों जैसे उसके बड़े और मोटे उसके पांव थे। पंख, शरीर और पैर तीनों का रंग चमकीला भूरा था। उसके पैर के नाखून लंबे और काले थे। लाल-लाल घूरती आंखें। हम उसे देखकर बुरी तरह डर गए लेकिन उसने हमें कुछ नहीं कहा। हमारे देखते ही देखते घने वृक्षों में कहीं उड़कर गायब हो गया।’
 
कुछ लोग उलूक मानव के अस्तित्व पर भरोसा करते हैं तो कुछ लोग इसे बकवास मानते हैं। हालांकि इस क्षे‍त्र में दर्जनभर लोगों ने उलूक मानव को देखे जाने का दावा किया है।
 
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अश्व मानव : मानव सभ्यता के विकास में कई जानवरों का योगदान है। इनमें कुत्ते, गाय, बकरी, भैंस जैसे दुधारू जानवर और घोड़े शामिल हैं। शायद यही वजह रही होगी कि उक्त सभी जानवरों की मानव रूप में भी कल्पना की गई। लोककथाओं और जनश्रुतियों में अश्व मानवों के कई किस्से-कहानियां पढ़ने को मिलते हैं। नरतुरंग या अश्‍व मानव नाम से एक तारामंडल का नाम भी है।
 
पौराणिक कथा के अनुसार ऋषि कश्यप की पत्नी सुरभि से भैंस, गाय, अश्व तथा दो खुर वाले पशुओं की उत्पत्ति हुई थी। समुद्र मंथन के दौरान उच्चैःश्रवा घोड़े की भी उत्पत्ति हुई थी। घोड़े तो कई हुए लेकिन श्वेत रंग का उच्चैःश्रवा घोड़ा सबसे तेज और उड़ने वाला घोड़ा माना जाता था। अब इसकी कोई भी प्रजाति धरती पर नहीं बची। यह इंद्र के पास था। उच्चै:श्रवा का पोषण अमृत से होता है। यह अश्वों का राजा है। उच्चै:श्रवा के कई अर्थ हैं, जैसे जिसका यश ऊंचा हो, जिसके कान ऊंचे हों अथवा जो ऊंचा सुनता हो। 
 
प्राचीन मानवों के इतिहास में अश्व का बड़ा योगदान रहा है। घोड़े को पालतू बनाने से इंसान की रफ्तार और दूरियां पार करने की क्षमता तेजी से बढ़ी, साथ ही घोड़े को युद्ध में भी उपयोग किया जाने लगा। माना जाता है कि घोड़े का सबसे पहले उपयोग आर्यों ने किया था। आर्य लोग जिस वृक्ष से घोड़े को बांधते थे, उसी वृक्ष को आज पीपल का वृक्ष कहा जाता है। पहले इस वृक्ष को अश्व कहा जाता था। कुछ लोगों का मत है कि 7,000 वर्ष पूर्व दक्षिणी रूस के पास आर्यों ने प्रथम बार घोड़े को पालना शुरू किया था। 
 
वेदों में घोड़ों को बहुत महत्व दिया गया है, लेकिन हड़प्पा सभ्यता के अवशेषों में घोड़े का कोई निशान नहीं मिलता इसलिए हड़प्पा सभ्यता और वैदिक सभ्यता के रिश्तों को लेकर पुरातत्ववेत्ताओं और इतिहासकारों के बीच भारी विवाद है, जैसे घोड़े की वंश-परंपरा को आदिम जीवों के साथ जोड़ने वाली कड़ी अब भारत में मिल गई है। हो सकता है कि यह सिलसिला आगे बढ़े और भारत के भू-भाग में भी कोई ऐसा घोड़ा मिल जाए, जो हड़प्पा और वैदिक सभ्यताओं के बीच की दूरी को पाट दे।
 
संसार के इतिहास में घोड़े पर लिखी गई प्रथम पुस्तक 'शालिहोत्र' है जिसे शालिहोत्र ऋषि ने महाभारत काल से भी बहुत समय पूर्व लिखा था। कहा जाता है कि शालिहोत्र द्वारा अश्व चिकित्सा पर लिखित प्रथम पुस्तक होने के कारण प्राचीन भारत में पशु चिकित्सा विज्ञान को 'शालिहोत्र शास्त्र' नाम दिया गया। शालिहोत्र का वर्णन आज संसार की अश्व चिकित्सा विज्ञान पर लिखी गई पुस्तकों में किया जाता है। भारत में अनिश्चित काल से देशी अश्व चिकित्सक को शालिहोत्री कहा जाता रहा है।
 
माना जाता है कि घोड़ा, गेंडा और दुनिया के कुछ हिस्सों में पाया जाने वाला टैपीर नामक जानवर एक ही पूर्वज की संतानें हैं। इस जीव समूह को वैज्ञानिक शब्दावली में ‘पैरिसोडैक्टिला’ कहते हैं जिसका अर्थ है अंगुलियों की अनिश्चित संख्या वाले जीव। पैरिसोडैक्टिला समूह के लगभग साढ़े 5 करोड़ साल पहले तक के पूर्वजों का तो पता लगाया जा चुका है, लेकिन उन्हें इसके पहले के आदिम जीवों से जोड़ने वाली कड़ी अभी तक कहीं नहीं मिल पाई थी। वर्तमान के गधा, जेबरा, भोट-खर, टट्टू, घोड़-खर एवं खच्चर आदि सभी घोड़े के ही कुटुंब के हैं। अब तक वैज्ञानिक यह मानते रहे हैं कि घोड़े का मूल स्थान मंगोलिया और तुर्किस्तान है, लेकिन यह धारणा अब बदल गई है।
 
अब गुजरात की कुछ खदानों में काम कर रहे वैज्ञानिकों को एक जीव के अवशेष या फॉसिल मिले हैं जिसे पैरिसोडैक्टिला का पूर्वज और आदिम जीवों से उन्हें जोड़ने वाली कड़ी कहा जा सकता है। करीब 20 साल पहले कुछ वैज्ञानिकों ने यह अवधारणा प्रस्तुत की थी कि घोड़े और गेंडे के आदिम पूर्वजों का मूल निवास भारत था। अब इस खोज से इसके पक्ष में सबूत मिल गए हैं। माना यह भी जाता है कि घोड़े का यह पूर्वज ‘कैम्बेथेरियम’ तब अस्तित्व में था, जब भारत एक विशाल द्वीप के रूप में था और यह द्वीप एशिया की तरफ बढ़ रहा था। इस फॉसिल की खोज से तब भारत के द्वीप होने की भी पुष्टि होती है, क्योंकि तभी यह जीव सिर्फ भारत में मिला है। भारत के एशिया की तरफ बढ़ने की प्रक्रिया में बीच के एक दौर में वर्तमान पश्चिम एशिया से भारत के बीच एक पुल-सा बन गया था और उससे ये जीव बाकी दुनिया में पहुंच गए और आज के घोड़े और गेंडे की नस्लों में विकसित हुए।
 
कैम्बेथेरियम आकार में मौजूदा घोड़े से काफी छोटा था और सूरत-शक्ल में गेंडे के कहीं ज्यादा करीब था। जो फॉसिल मिले हैं, उनकी संख्या 200 के आसपास बताई जा रही है और ये इस हालत में हैं कि वैज्ञानिक उनसे कैम्बेथेरियम की शरीर रचना का ठीक-ठीक अनुमान कर सके हैं। घोड़े के पूर्वज भले ही भारतीय थे, लेकिन माना यह जाता है कि घोड़ों को पालतू बनाना मध्य एशिया में तकरीबन 5,500 से 6,000 साल पहले शुरू हुआ और उसके 1,000 साल के भीतर सारी दुनिया में घोड़े पालने का रिवाज पहुंच गया। मध्य एशिया से भारतीयों का संपर्क बहुत पुराना है इसलिए हम मान सकते हैं कि भारत में यह काफी पहले शुरू हो गया होगा। भीमबेटका के गुफा चित्रों में घोड़े पर बैठे लोगों के भी चित्र हैं।
 
आओ अब जानते हैं हैरान कर देने वाले कुछ अन्य विचित्र जीवों के बारे में अगले पन्ने पर...
 

लिजर्डमैन : अमेरिका के लिजर्डमैन को दुनिया के सबसे डरावने विचित्र प्राणियों की लिस्ट में शामिल किया गया है। साउथ कैरोलिना की ली काउंटी के स्वाम्पलैंड क्षेत्र में इसे 29 जून 1988 को देखा गया था। हरी त्वचा वाले इस विचित्र प्राणी की लंबाई 7 फीट 2 इंच लंबी थी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार लिजर्डमैन के हर पैर में 3 अंगूठे और हर हाथ में 3 अंगुलियां थीं। वह दीवारों और सीलिंग पर चढ़ जाता था। कहा जाता है कि वह इतना ताकतवर था कि उसने कार तक को तोड़ दिया था।
 
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जर्सी डेविल : इस इरावने प्राणी को न्यूजर्सी के दक्षिणी क्षेत्र में देवदार वृक्ष के जंगल में देखा गया था इसीलिए इसका नाम जर्सी डेविल रखा गया। इस प्राणी के बारे में 1800 से लेकर 20वीं सदी तक तरह-तरह की बातें प्रचलित थीं। 
 
जर्सी डेविल के बारे में कहा जाता था कि उसके दो पैर, चमगादड़ की तरह पंख और घोड़े की तरह मुंह था। जर्सी डेविल ने जानवरों को मारा था। उसके विचित्र तरह के पदचिह्न मिलते थे। वह अजीब तरह की आवाजें निकालता था। न्यूजर्सी और उसके आसपास के इलाकों में इस प्राणी के देखे जाने का दावा बहुत से लोगों ने किया था।
 
इस विचित्र प्राणी को लेकर यह प्रचलित था कि एक चुड़ैल जब अपने 13वें बच्चे को जन्म दे रही थी उस समय उसने शैतान को जगा दिया था। इस कारण जन्म लेते ही इस बच्चे का विचित्र ढंग से रूप बदल गया। 
 
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फ्लैटवुड मॉन्स्टर : वेस्ट वर्जीनिया में ब्रेक्सटन काउंटी के फ्लैटवुड कस्बे में 12 सितंबर 1952 को इसे फ्लैटवुड मॉन्स्टर को देखा गया था। रिपोर्ट्स के अनुसार वह 10 फीट लंबा था और उसका चेहरा लाल रंग का था। उसका विचित्र चेहरा और आंखें इंसानों जैसी नहीं थीं। ऐसा लगता था कि वह गहरे रंग की स्कर्ट पहने हुए था।
 
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आउलमैन : 1976 में ब्रिटेन के मावनन कार्नवाल एरिया में इस विचित्र प्राणी के बारे में जब रिपोर्ट्स आईं तो उसे आउलमैन नाम दिया गया। इसे मावनन चर्च टॉवर पर उड़ते हुए देखा गया था। अगस्त 1978 में चर्च के पास ही इसे दुबारा देखा गया। यह उल्लू जैसा दिखता था लेकिन आकार एक इंसान के बराबर था। इसके कान नुकीले, आंखें लाल और पंजे काले थे और पंख ग्रे कलर के थे।
 
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डोवर डीमन : अमेरिका के मैसाचुसेट्स के डोवर टाउन में यह 1977 में 21 और 22 अप्रैल को दिखाई दिया था। इसके विचित्र रूप के कारण इसके एलियन या किसी प्रयोग का कोई हिस्सा होने के अनुमान लगाए जाते रहे। कुछ लोगों का कहना है कि यह किसी दूसरे लोक से आया था।
 
डोवर डीमन का सिर बड़ा था, आंखें ऑरेंज कलर की और हाथ-पैर पतले दिखाई देते थे। बताया जाता है कि यह बिना बालों का था। इसमें फेशियल फीचर्स बहुत कम थे। वह हाइब्रिड एलियन भी हो सकता था। यह विचित्र प्राणी लगभग 3 फीट लंबा था।
 
डोवर डीमन सांप की तरह फुफकारता और बाज की तरह चीखता था। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह किसी दूसरे ग्रह से आया होगा या जैविक कारणों से धरती के ही किसी जीव का आकार बदल गया होगा।
 
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पोप लिक मॉन्स्टर : यह प्राणी आकार में तो इंसानों जैसा लेकिन इसके कुछ फीचर्स बकरी-भेड़ जैसे थे। उसके पैर शक्तिशाली थे लेकिन वह बकरियों के फर से ढंका हुआ था। उसकी विचित्र नाक और चौड़ी आंखें थीं। उसके माथे पर भेड़ जैसे सींग उगे हुए थे।
 
अरब देशों में इस प्राणी के संबंध में कई तरह की भ्रांतियां और कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि यह सम्मोहन का प्रयोग करता था। यह भी कि यह अपने शिकार को विचित्र ढंग से गाते हुए या मिमिक्री कर आकर्षित करता और फिर उसे मार देता था। इसके बारे में यह भी कहा जाता था कि यह कुछ लोगों को कुल्हाड़ी से भी मार देता था और चलती ट्रेन के सामने भी फेंक देता था। हालांकि इस तरह की हरकत तो कोई इंसान ही कर सकता है।
 
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गोटमैन : गोटमैन अर्थात बकरी जैसा आदमी। इसे अमेरिका के फॉरेस्टविले और अपर मार्लबोरो के प्रिंस जॉर्ज काउंटी में देखा गया था। इसके बारे में पहली रिपोर्ट 1957 में आई थी। एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार उसने बालों और सींग वाला एक दैत्य जैसा दिखने वाला प्राणी देखा था। यह 1962 तक छिपा रहा लेकिन उसने इस बीच एक दर्जन बच्चों और दो वयस्क लोगों की हत्या कर दी थी। यह लोगों पर कुल्हाड़ी से हमला करता था और शवों को कई टुकड़ों में काट डालता था।
 
(समाप्त)
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