सम्मोहन को अंग्रेजी में हिप्नोटिज्म कहते हैं। इस प्राचीन विद्या का एक ओर जहां दुरुपयोग हुआ और हो रहा है, वहीं इस विद्या के माध्यम से लोगों का भला भी किया जा रहा है। हिप्नोटिज्म का ही एक रूप है मेस्मेरिज्म। यह थोड़ा अलग है।
आधुनिक युग में भारत की सम्मोहन विद्या पर पश्चिमी जगत ने 18वीं शताब्दी में ध्यान दिया। भारत की इस रहस्यमय विद्या को अर्ध-विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित कराने का श्रेय सर्वप्रथम ऑस्ट्रियावासी फ्रांस मेस्मर को जाता है। बाद में 19वीं शताब्दी में डॉ. जेम्स ब्रेड ने मेस्मेर के प्रयोगों में सुधार किया और इसे एक नया नाम दिया 'हिप्नोटिज्म'।
मेस्मेरिज्म क्या है : पाश्चात्य डॉक्टर फ्रेडरिक एंटन मेस्मर ने 'एनिमल मेग्नेटिज्म' का सिद्धांत प्रतिपादित करते हुए अनेक व्यक्तियों को रोगों से मुक्त किया था। उनके प्रयोगों को मेस्मेरिज्म कहा जाता है। मेस्मेरिज्म के प्रयोगों पर जांच बैठाई गई और बाद में इसे खतरनाक मानते हुए इसे प्रतिबंधित कर दिया गया। 1841 में मेस्मेरिज्म के प्रयोगों में सुधार करने और उसमें निहित वैज्ञानिक तथ्यों को उद्घाटित करने और उसे हिप्नोटिज्म के रूप में परिवर्तत करने का श्रेय डॉक्टर जेम्स ब्रेड को जाता है।
मेस्मेरिज्म एक विज्ञान है जिसमें ये विश्वास किया जाता है की एक प्राणी अपने शरीर की चुम्बकीय ऊर्जा को दूसरे शरीर में प्रवाहित कर सकता है। मेस्मेर का मानना था की हर प्राणी में ये चुम्बकीय ऊर्जा प्रवाहित होती है जिसकी कमी या असंतुलन इंसान में बीमारी की वजह बनती है।
आजकल इसका एक रूप स्पर्श चिकित्सा के रूप में भी देखने को मिलता है। हिप्नोटिज्म में व्यक्ति को सम्मोहित करके उसकी चिकित्सा की जाती है जबकि मेस्मेरिज्म में इसकी जरूरत नहीं होती है।
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