Why jagannath idol is incomplete: ओडिशा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में अपनी अनोखी परंपराओं और रहस्यों के लिए प्रसिद्ध है। हर साल निकलने वाली भव्य रथ यात्रा लाखों भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करती है। लेकिन इस मंदिर से जुड़ा एक ऐसा रहस्य है, जो सदियों से श्रद्धालुओं और शोधकर्ताओं को आकर्षित करता रहा है – भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों का अधूरा स्वरूप। क्यों हैं ये मूर्तियां अधूरी? क्या इसके पीछे कोई दैवीय कहानी है या कोई गहरा प्रतीकात्मक अर्थ? आइए, इस रहस्यमयी गाथा को विस्तार से जानते हैं।
क्या है अधूरी मूर्तियों का रहस्य
भगवान जगन्नाथ की अधूरी मूर्तियों के पीछे सबसे प्रचलित कथा भगवान विश्वकर्मा से जुड़ी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण के देह त्याग के बाद उनके अंतिम संस्कार के उपरांत उनका हृदय (जिसे ब्रह्मद्रव्य कहा जाता है) अभी भी धड़क रहा था। इसे समुद्र में विसर्जित कर दिया गया। बाद में, राजा इंद्रद्युम्न को स्वप्न में भगवान जगन्नाथ ने दर्शन दिए और निर्देश दिया कि वे नीम की लकड़ी से उनकी मूर्ति का निर्माण करवाएं।
राजा ने मूर्ति निर्माण के लिए योग्य शिल्पकार की तलाश की। तभी एक बूढ़े बढ़ई के रूप में स्वयं भगवान विश्वकर्मा वहां प्रकट हुए। उन्होंने एक शर्त रखी कि वे बंद कमरे में मूर्ति का निर्माण करेंगे और जब तक काम पूरा नहीं हो जाता, तब तक कोई भी कमरे का दरवाजा नहीं खोलेगा। यदि ऐसा हुआ तो वे काम अधूरा छोड़कर चले जाएंगे।
कई दिनों तक कमरे से लकड़ी को तराशने की आवाजें आती रहीं। लेकिन एक दिन अचानक आवाजें बंद हो गईं। रानी गुंडिचा, जो अत्यधिक उत्सुक और चिंतित थीं, ने सोचा कि बढ़ई ने काम बंद कर दिया है या उसे कुछ हो गया है। रानी के बार-बार आग्रह करने पर राजा इंद्रद्युम्न ने दरवाज़ा खुलवा दिया। दरवाजा खुलते ही उन्होंने देखा कि विश्वकर्मा वहां से जा चुके थे और अंदर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां अधूरी अवस्था में पड़ी थीं। उनके हाथ और पैर नहीं बने थे। राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ, लेकिन अब कुछ नहीं किया जा सकता था। माना जाता है कि तभी से ये मूर्तियां इसी अधूरे स्वरूप में विराजमान हैं।
अधूरी मूर्तियों का दार्शनिक महत्व
इस पौराणिक कथा के अतिरिक्त, भगवान जगन्नाथ की अधूरी मूर्तियों का एक गहरा दार्शनिक महत्व भी है।
• ब्रह्म का निराकार स्वरूप: कुछ विद्वान मानते हैं कि यह अधूरापन ब्रह्म के निराकार स्वरूप को दर्शाता है। ईश्वर असीमित हैं, उन्हें किसी भी पूर्ण आकार में बांधा नहीं जा सकता। अधूरी मूर्तियां यह संदेश देती हैं कि ईश्वर की महिमा इतनी विराट है कि उसे किसी भी मानवीय सीमा में समेटा नहीं जा सकता। वे सर्वव्यापी और अनंत हैं।
• माया और संसार की अपूर्णता: यह मूर्तियां हमें इस बात की भी याद दिलाती हैं कि यह संसार नश्वर है और स्वयं माया से बना है। संसार में कोई भी चीज़ पूर्ण नहीं है। हर चीज़ में कुछ न कुछ अधूरापन है, जो हमें भौतिकता से परे आध्यात्मिक पूर्णता की ओर जाने के लिए प्रेरित करता है।
• परिवर्तन और निरंतरता: भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों को हर 12 साल में एक विशेष अनुष्ठान, जिसे 'नव-कलेवर' कहा जाता है, के दौरान बदला जाता है। हालांकि नई मूर्तियां भी अधूरी ही बनाई जाती हैं। यह प्रक्रिया जीवन और मृत्यु के चक्र, परिवर्तन की निरंतरता और सनातन धर्म के शाश्वत स्वरूप को दर्शाती है।
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