डॉल्फिन मछलियाँ भी गाना गाती हैं

राम यादव
शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012 (14:48 IST)
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कुत्तों की तरह डॉल्फिन मछलियों को भी मनुष्य का घनिष्ठ मित्र माना जाता है। ऐसे किस्से-कहानियों की कमी नहीं है कि डॉल्फिन मछलियाँ हम मनुष्यों के साथ नजदीकी साधने और संकट के समय हमारी सहायता करने की भरपूर कोशिश करती हैं। वैज्ञानिक यह भी जानते हैं कि उन्हें मधुमेह और हृदयरोग जैसी मानवीय बीमारियाँ भी होती हैं। पर, वैज्ञानिकों का एक शोधदल फ्रांस के एक सफ़ारी पार्क में यह देख कर हैरान रह गाया कि डॉल्फिन दूसरी मछलियों की आवाजों की नकल करने और नींद में उन्हें गुनगुनाने की क्षमता भी रखती हैं।

लगभग तीन लाख की जनसंख्या वाला पश्चिमी फ्रांस का नौंत वहाँ का छठाँ सबसे बड़ा शहर है। पर्यटक इस प्रचीन शहर के गिर्जाघरों से तो चकित होते ही हैं, एक और कारण से इस शहर से मोहित होते हैं-- उसके पास के 'प्लानेत सौवाज' नामक सफारी पार्क में हर दिन होने वाले डॉल्फ़िन शो से। पाँच डॉल्फिन मछलियाँ जब पानी से ऊपर कई मीटर तक उछलती हुई किसी लट्टू की तरह हवा में घूमती हैं, अपना सिर झुका कर या पूँछ हिला कर दर्शकों का अभिवादन करती हैं, तो डॉल्फिनैरियम तालियों से गूँज उठता है।

डॉल्फिन नींद में गुनगुनाती हैं : जर्मन और फ्रांसीसी वैज्ञानिकों की एक मिलीजुली टीम को उस समय अपने कानों पर विश्वास नहीं हो पाया, जब उसने सुना कि ये मछलियाँ रातों को व्हेल मछलियों के स्वर में गुनगुनाती हैं। इससे पहले उन्होंने कभी पढ़ा या सुना नहीं था कि डॉल्फिन किसी दूसरी आवाज की नकल भी कर सकती हैं। उन्होंने निश्चय किया कि वे इसका पता लगा कर रहेंगे कि डॉल्फिन क्या हमारी तरह नींद में गुनगुना सकती हैं- वह भी, अपनी आवाज से बिल्कुल भिन्न स्वर में!

जर्मनी की मार्टीने हाउसबेर्गर फ्रांस के रेन विश्वविद्यालय में आचार विज्ञान (बिहेवियरल साइंस) की शोधकर्ता हैं। उन्होंने भी कभी देखा-सुना नहीं था कि डॉल्फिन मछलियाँ रातों को कुछ गाती-गुनगुनाती भी हैं। 'यह हमारे लिए बहुत हैरानी की बात थी,' उनका कहना है। वे और उनके सहयोगी वास्तव में यह जानना चाहते थे कि रातों को, जब सारी दुनिया सोती है, डॉल्फिन मछलियाँ क्या करती हैं? क्या वे कोई आवाजें वगैरह भी पैदा करती हैं? इस बारे में वैज्ञानिकों को लगभग कुछ भी पता नहीं है। इसलिए इस शोध टीम ने डॉल्फिन मछलियों वाले एक्वैरियम के पानी में कुछ माइक्रोफोन लटका दिए और उन्हें एक रिकॉर्डर से जोड़ दिया।

व्हेल मछली की नकलः उन्होंने पाया कि रिकॉर्डर पर ऐसी काफ़ी ऊँची आवाजें रिकॉर्ड हुई थीं, जो इन मछलियों की ओर से दिन में सुनाई पड़ने वाली आवाज़ों से बहुत भिन्न थीं। इन आवाजों को बार-बार सुनने पर उन्हें आभास हुआ कि वे तो किसी व्हेल मछली की आवाज जैसी थीं, न कि किसी डॉल्फिन की आवाज जैसी।

अब प्रश्न यह था कि डॉल्फ़िनों ने व्हेल की आवाज कब और कैसे सीखी? वे तो सारे समय हमेशा किसी न किसी एक्वैरियम में ही रही थीं। किसी व्हेल से तो उनका पाला ही नहीं पड़ा था। तो फिर, व्हेल की आवाज की नकल करना उन्होंने कैसे सीखा? सोच-विचार करने पर इन वैज्ञानिकों को याद आया कि दिन के समय जब डॉल्फिन शो चल रहा होता है, तब लाउडस्पीकर पर जो साउन्ड-ट्रैक सुनाया जाता है, उसमें व्हेल मछलियों के गाने की आवाज भी होती है। हो न हो, इस साउन्ड-ट्रैक को सुन कर ही डॉल्फिनों ने व्हेल मछलियों के राग अलपना सीखा है।

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रात में रागः मार्टीने हाउसबेर्गर कहती हैं कि यह तो पता है कि डॉल्फिन भी पराई आवाजों की नकल कर सकती हैं, खासकर दूसरी नस्लों की डॉल्फिनों की आवाजों की। लेकिन, ऐसा वे तभी करती हैं, जब वे दूसरी प्रजातियों की डॉल्फिनों के सीधे संपर्क में हों। 'लेकिन, हमने यह कभी नहीं सुना था,' वे कहती हैं, डॉल्फिनें 'कि डॉल्फिनें व्हेल मछलियों की आवाजें भी नकल कर सकती हैं। इससे भी गजब की बात तो यह है कि उन्होंने साउन्ड-ट्रैक सुनने के साथ-साथ नकल करने की कोशिश नहीं की, बल्कि घंटों बाद रात में व्हेल मछलियों वाला राग अलापती हैं।'

मार्टीने हाउसबेर्गर और उनके सहयोगियाँ का कहना है कि रात में जब पानी में माइक्रोफोन लटका कर डॉल्फिनों की आवाजें रिकॉर्ड की गईं, उस समय वे बहुत शांतचित्त थीं और पानी में बहुत धीरे-धीरे तैर रही थीं। बहुत संभव है कि वे आराम कर रही थीं या शायद सो रही थीं। यह भी हो सकता है कि डॉल्फिनें रातों को उन दृश्यों व अनुभवों को दुबारा याद करती हों या उन के सपने देखती हों, जो दिन में शो के समय होते हैं। उन दृश्यों की याद के साथ वे शायद उन आवाजों और स्वरों को भी दुहराना पसंद करती हों, जो दिन वाली यादों के साथ जुड़े हुए थे।

डॉल्फिनें सीखने में कुशलः इन वैज्ञानिकों के पास इन अनुमानों के सिवाय फिलहाल और कोई उत्तर नहीं हैं। उनका मानना है कि शो के समय डॉल्फिनें बहुत कुछ सीखती हैं, क्योंकि उनके हर सफल करतब के बदले में उन्हें पुरस्कार के तौर पर कुछ न कुछ खाने को मिलता है। साथ चल रहा साउन्ड-ट्रैक भी शो का हिस्सा होता है। अतः हो सकता है, इस कारण डॉल्फिनें उसे अपने करतबों का भी हिस्सा मान कर दिन वाले खेलों को याद करते समय रात में उसे भी दुहराती हैं। यह भी हो सकता है कि साउन्ड-ट्रैक के मनपसंद हिस्सों को याद करने व गुनगुनाने से दिन में शो के समय वाले दृश्य डॉल्फिनों के लिए और भी जीवंत बन जाते हों।

जो भी हो, इस जर्मन-फ्रासीसी टीम के विचार से यह बात तय है कि डॉल्फिनें समकाल में ही नहीं, घंटों बाद भी आवाजों को याद रखने और उनकी नकल कर सकने की क्षमता रखती हैं। यह भी हो सकता है कि हम मनुष्यों की तरह वे भी दिन भर की अपनी आपबीती का नींद में पुनरीक्षण करती हैं। यह जर्मन-फ्रांसीसी टीम अब यह पता लगाने की कोशिश करेगी कि डॉल्फिनें क्या तब सचमुच सो रही होती हैं, जब वे व्हेल मछलियों वला राग अलापती हैं। इसे जानने के लिए वे ईईजी (इलेक्ट्रो एन्सिफैलोग्राम) की सहायता से डॉल्फिनों के मस्तिष्क की विद्युत तरंगों का अध्ययन करेंगे। बहुत संभव है, इससे मनुष्यों के प्रति उनके लगाव का भी कोई सुराग मिले।

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