दम तोड़ रही हैं विश्व की प्रमुख नदियाँ

- संदीप सिसोदिया

Webdunia
शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2010 (12:56 IST)
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विश्व के अधिकांश बड़े नगर और सघन जनसंख्या नदियों के किनारे ही आबाद है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि साफ और ताजा पानी जीवन के लिए सबसे आवश्यक तत्वों में से एक है। पर नदियों का यही गुण उनके विनाश का कारण बन रहा है ।

दुनिया की 80 प्रतिशत आबादी (लगभग 5 अरब लोग) आज भी ताजे पानी के लिए कुछ प्रमुख नदियों जैसे गंगा, ब्रह्मपुत्र, यलो, मीकांग, नील, टाइबर, राइन, डेन्युब और अमेजन नदियों पर निर्भर है। पर पिछले कुछ वर्षों से इन नदियों पर लगातार पड़ रहे दबाव व नदीतंत्र के अत्यधिक दोहन के परिणामस्वरूप इन नदियों पर गंभीर खतरा मड़राने लगा है। नदी के पर्यावरण के साथ हो रही छेड़छाड़, खेती और मानव उपयोग के लिए खींचे जा रहे पानी और प्रदूषण के कारण ये नदियाँ अब धीरे-धीरे दम तोड़ने लगी हैं।

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन से होने वाले बदलावों का नदियों पर असर पड़ने से निकट भविष्य में करोड़ो लोगों के लिए भोजन और पीने के पानी का भयावह संकट उत्पन्न हो जाएगा।
ऐसे तो दुनिया के कई देशों में नदियों को पूजा जाता है और विश्व स्तर पर नदियों को बचाने की कई मुहिम चल रही हैं पर हाल में प्रकाशित एक अनुसंधान रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि दुनिया के सबसे आबादी वाले क्षेत्रों जैसे उत्तरी चीन में यलो नदी, भारत में गंगा, पश्चिम अफ्रीका में नाइजर में बहने वाली नदियाँ बड़े पैमाने पर जलवायु परिवर्तन और मानवजनित कारणों के कारण तेजी से पानी खो रही हैं। असंख्य छोटी नदियाँ तो प्रकृति और मानव की इस मार के आगे कब से ही अपना अस्तित्व खो चुकी हैं।

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन से होने वाले बदलावों का नदियों पर असर पड़ने से निकट भविष्य में करोड़ो लोगों के लिए भोजन और पीने के पानी का भयावह संकट उत्पन्न हो जाएगा।

नेचर जर्नल के नवीनतम अंक में प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे विश्व में नदियों पर निर्भर 65 प्रतिशत जैव विविधता अत्यंत खतरे में है। रिपोर्ट में बताया गया है कि विश्व की 47 सबसे बड़ी नदियों में से 30 जो विश्व के ताजे पानी की लगभग आधी मात्रा प्रवाहित करती हैं, मध्यम खतरे की श्रेणी में हैं।

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इसी प्रकार 8 नदियाँ 'जल सुरक्षा' की दृष्टि से बहुत अधिक खतरे में आँकी गई हैं, जबकि 14 नदियाँ की 'जैव विविधता' की दृष्टि से बहुत अधिक खतरे में होने के रूप में पहचान की गई हैं। स्कैंडेनेविया, साइबेरिया, उत्तरी कनाडा और अमेजन क्षेत्र और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में उष्णकटिबंधीय क्षेत्र की नदियों को सबसे कम खतरे में माना गया है।

इस अनुसंधान में न्यूयॉर्क सिटी विश्वविद्यालय ( CUNY), विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय और सात अन्य संस्थानों के कॉलेज से कई वैज्ञानिकों तथा विशेषज्ञ शामिल थे। अनुसंधान दल ने एक विकसित कंप्यूटर आधारित मॉडल का उपयोग करते हुए इन नदियों पर पड़ रहे दुष्प्रभावों को एक मानचित्र के रुप में बताया है जिसमें नदियों पर दुष्प्रभाव डालने वाले 23 प्रकार के कारकों को दर्शाया गया है। इसमें ताजे पानी की नदियों पर कृषि उपयोग, खनन, रासायनिक तथा औद्योगिक प्रदूषण जैसे कई कारणों से होने वाले पर्यावरण ह्रास का मापन किया गया है।

अनुसंधान दल ने पाया कि विश्व के लगभग सभी क्षेत्रों में बहने वाली नदियों पर एक जैसे ही दुष्प्रभाव पड़ रहे हैं। चाहे वे नदियाँ विकसित देशों की हो या विकासशील देशों की।

बारहमासी प्रवाह वाली नदियाँ मानव जीवन के लिए तो जरुरी है ही साथ ही प्राकृतिक चक्र को सुचारू बनाए रखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्व 'पानी' का मुख्य स्रोत है पर नदियों में होते लगातार क्षरण के कारण अब धरती की इस अमूल्य संपदा का भी तेजी से क्षय हो रहा है।

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