नेपाली मजदूर पलायन के लिए मजबूर

Webdunia
मंगलवार, 22 जुलाई 2008 (13:16 IST)
नेपाल में बढ़ती बेरोजगारी की स्थिति ने अधिकतर युवाओं को नौकरी के लिए विदेश का रुख करने पर मजबूर किया है और पिछले पाँच वर्षों में दोगुनी रफ्तार से इन्होंने अपने देश से पलायन किया है।

बेहतर रोजगार के अवसर और श्रमिक मुहैया कराने वाली तेजी से पनप रही एजेंसियों की नेपालियों तक पहुँच ने बड़ी संख्या में नेपालियों को बाहर जाकर काम करने के लिए प्रेरित किया है।

स्थिति यह है कि पिछले एक साल में विदेश जाकर काम करने वाले नेपालियों के प्रतिशत में दहाई के अंक में वृद्धि हुई है और पिछले सप्ताह खत्म हुए वित्तीय वर्ष 2007-08 में 2006-07 की तुलना में 20 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है।

नेपाल के श्रम मंत्रालय के अनुसार 2007-08 में विभिन्न देशों में निजी सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करने वाले नेपालियों की संख्या दो लाख 39 हजार 634 है जो वित्तीय वर्ष 2006-07 से तकरीबन 40 हजार ज्यादा है। दिलचस्प है कि साल 2003-04 में पलायन करने वाले नेपालियों की संख्या सिर्फ एक लाख छह हजार छह सौ साठ ही थी।

सन् 1950 में भारत और नेपाल के बीच हुई शांति एवं मैत्री संधि के मुताबिक नेपाली नागरिकों को भारत में बसने एवं रोजगार का अधिकार है। शायद यही वजह है कि पिछले कई दशकों से लाखों की संख्या में नेपाली नागरिक रोजगार की खोज में भारत आते रहे हैं। सैद्धांतिक तौर पर भारत में नेपाली नागरिकों को भारतीय नागरिकों की तरह अधिकार प्राप्त हैं।

नेपाली श्रमिकों को सबसे ज्यादा आकर्षित करने वाले देशों में भारत, संयुक्त अरब अमीरात, कोरिया, कतर और बहरीन शामिल हैं। नेपाल ने अपने श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए दो साल पहले इन चारों राष्ट्रों के साथ भी एक समझौता किया है।

अधिकारियों का मानना है कि इस समझौते का सकारात्मक पहलू यह रहा कि रोजगार की खोज में विदेशों का रुख करने वाले नेपालियों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है।

श्रम समझौते और काम करने के माहौल में बदलाव की वजह से पिछले कई वर्षों के दौरान विभिन्न देशों की ओर रुख करने की वजह में भी काफी बदलाव आए हैं।

पिछले एक साल में कतर नेपाली श्रमिकों के लिए सबसे लोकप्रिय गंतव्य के रूप में उभरा है और वहाँ पिछले साल 85 हजार 411 श्रमिक पहुँचे जो उसके पिछले वर्ष के मुकाबले 47 प्रतिशत ज्यादा है।

आँकड़े बताते हैं कि दूसरे स्थान पर रहे मलेशिया ने 50 हजार 526 नेपाली श्रमिकों को अपनी ओर आकर्षित किया जो पहले से 28 प्रतिशत ज्यादा है। संयुक्त अरब अमीरात और सउदी अरब में भी दहाई अंक में इनकी पहुँच में वृद्धि हुई है। श्रमिकों के ठिकानों में विविधता की कमी की वजह से 93 प्रतिशत से ज्यादा श्रमिक इन चारों देशों तक ही सीमित हैं।

नेपाल के श्रम एवं रोजगार विभाग के निदेशक दिलीराम शर्मा कहते हैं कि देश के अंदर रोजगार की कमी ने नेपाली श्रमिकों को अपना ठिकाना विदेशों में खोजने के लिए मजबूर किया है। उनका मानना है कि श्रमिकों की विदेशों में व्यक्तिगत जान-पहचान ने उन्हें रोजगार दिलाने में सहायता की है।

भारत और नेपाल के बीच खुली सीमा तथा काफी लंबे अर्से से भारत में नेपाली प्रवास की वजह से भारत में बसे नेपालियों की सही संख्या का अंदाजा लगा पाना मुश्किल है। भारत का रुख करने वाले अधिकतर नेपाली सीमा से सटे उत्तरप्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल में बस जाते हैं।

शरणार्थियों के विषय पर काम करने वाली संस्था रिफ्यूजी इंटरनेशनल के अनुमान के मुताबिक यह संख्या लाखों में हो सकती है। संस्था का कहना है कि राजधानी दिल्ली में पिछले कई वर्षों में नेपाली नागरिकों की संख्या में दोगुनी वृद्धि हुई है। इनमें अधिकतर ऐसे नागरिक हैं जो यहाँ चौकीदारी जैसे कामों में लगे हैं।

इसके अलावा पिछले कई वर्षों से जारी माओवादी संघर्ष की वजह से भी तेज गति से नेपाली मजदूरों का पलायन हुआ है। हालाँकि माओवादियों की भारत-नेपाल सीमा के बीच आवाजाही के लिए वीजा की अनिवार्यता की माँग की काफी आलोचना भी हुई थी।

इसके अलावा माआवादियों की प्रस्तावित वह नीति भी पलायन का कारण बन रही है जिसके तहत हर नेपाली परिवार के एक सदस्य को उनके रैंक में भर्ती होना जरूरी बनाए जाने की बात कही गई है।

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