पढ़िए कौन हैं यज़ीदी और क्या हैं उनकी मान्यताएं

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सुन्नी जेहादी संगठन इस्लामिक स्टेट (ISIS) के शिकार लोगों में 50,000 आबादी का वह समूह भी है, जिसने उत्तर-पश्चिमी इराक के पहाड़ों पर शरण ले रखी है। चारों तरफ से ISIS की घेराबंदी के कारण यजीदियों को खाने और पीने की समस्या से जूझना पड़ रहा है। हाल ही में पहाड़ों की घराबंदी करके लगभग 20 हज़ार यजीदियों को मुक्त करवाया गया।

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इराक में यजीदियों के हालात के बाद दुनिया की यह जानने में रूचि जागृत हुई है कि आखिर कौन हैं यजीदी और ये कौन से धर्म का पालन करते हैं?

यजीदी दुनिया के सबसे पुराने धर्म को मानते हैं, जिसे यज़दान कहते हैं। यजीदी को ईसासियत से निकले इस्लामिक युग के प्रारंभिक पंथ से जोड़कर देखा जाता है। इनकी धार्मिक मान्यताएं अलग होती हैं, जिसके कारण यज़ीदियों को अक्सर गलत ढंग से 'शैतान के उपासक' कह दिया जाता है। पारंपरिक रूप से यज़ीदी उत्तर-पश्चिमी इराक उत्तर-पश्चिमी सीरिया और दक्षिण-पूर्वी तुर्की में छोटे-छोटे समुदायों में रहते रहे हैं।

उनकी मौजूदा संख्या का सही अनुमान लगाना तो मुश्किल है लेकिन आकलन के अनुसार उनकी संख्या 70 हज़ार से लेकर पांच लाख तक है। अपमान, उत्पीड़न और डराए जाने से पिछली एक सदी में उनकी संख्या में भारी गिरावट आई है। कोई व्यक्ति धर्मांतरण करके यजीदी नहीं बन सकता। सिर्फ़ इस धर्म में पैदा होकर ही यजीदी बना जा सकता है।

कुछ विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि यजीदियों पर उनके नाम यजीदी से फैली गलतफहमी की वजह से अत्याचार हो रहा है। ISIS जैसे चरमपंथी समूहों को लगता है कि यह धर्म उमैयद राजवंश के दूसरे ख़लीफ़ा और मुसलमानों में बेहद अलोकप्रिय शासक यज़ीद इब्न मुआविया से निकला है।

हालांकि रिसर्च से पता चलता है कि यज़ीदियों का यज़ीद या ईरानी शहर यज़्द से कोई लेना-देना नहीं। उनका संबंध फ़ारसी भाषा के 'इज़ीद' से है, जिसके मायने फरिश्ता है। इज़ीदिस के मायने हैं 'देवता के उपासक' और यज़ीदी भी खुद को यही कहते हैं। यज़ीदियों की कई मान्यताएं ईसाइयत से मिलती जुलती हैं।

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यजीदी अपने ईश्वर को यज़दान कहते हैं। उन्हें इतना ऊपर माना जाता है कि उनकी सीधे उपासना नहीं की जाती। उन्हें सृष्टि का रचियता तो मानते हैं, लेकिन रखवाला नहीं। यजदान से सात महान आत्माएं निकलती हैं जिनमें मयूर एंजेल जिसे मलक ताउस कहा जाता है। मयूर एंजेल को दैवीय इच्छाएं पूरा करने वाला माना जाता है।

ईसाइयत के आरंभिक दिनों में मयूर पक्षी को अमरत्व का प्रतीक माना जाता था। मलक ताउस को ईश्वर का ही दूसरा रूप माना जाता है, इसलिए यज़ीदियों को एकेश्वरवादी भी माना जाता है। यजीदी दिन में पांच बार मलक ताउस की उपासना करते हैं।

यजीदी धर्म परिवर्तन नहीं करते। यजीदी के लिए धर्म निकाला सबसे दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है क्योंकि ऐसा होने पर उसकी आत्मा को मोक्ष नहीं मिलता, इसलिए उनमें धर्म परिवर्तन का सवाल ही नहीं उठता।

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