पश्चिम में सुपर हीरो की तलाश

Webdunia
- संदीप तिवारी
भारत वर्ष और खासतौर से एशियाई देशों में हमारी संस्कृति से जुड़े ऐसे सुपर हीरोज की कमी नहीं है जो कि पलक झपकते ही लाखों लोगों को बचा सकने की क्षमता रखते हैं। हनुमान, भीम, घटोत्कच और गणेश को तो बॉलीवुड ने सुपर हीरोज में बदल ही दिया है और ये फिल्मों से लेकर कार्टून चर‍ित्रों तक बने दिखाई देते हैं।

पर पश्चिमी देशों में ऐसे सुपर हीरोज की भारी कमी है, इसलिए ब्रिटेन और अमेरिका को सुपरमैन जैसे सुपर हीरोज पर निर्भर रहना पड़ता है जो कि लोगों की रक्षा करने के लिए ठीक समय पर आ पहुँचते हों।

चालीस के दशक में हॉलीवुड में सुपर हीरोज का प्रचलन शुरू हुआ था, जो आज भी बरकरार है। न केवल दर्शकों में ये लोकप्रिय होते हैं, वरन निर्माता-निर्देशकों और फिल्म बनाने वाली कंपनियों के बीच भी सुपर हीरोज को सफलता का पैमाना माना जाने लगा है।

सबसे पहले ये सुपरमैन बच्चों की कॉमिक पुस्तकों में अवतरित हुए और बाद में टीवी सीरियल्स में इनके लिए गुंजाइश बन गई। सबसे पहले 1941 में 'द एडवेंचर्स ऑफ कैप्टन मार्वेल' से इस प्रवृत्ति की शुरुआत हुई।

इसके बाद सुपर हीरोज की फिल्मों का दौर थम गया, लेकिन साठ के दशक में एडवेंचर्स ऑफ सुपरमैन और बैटमैन ने बड़े परदे पर अपनी धमाकेदार उपस्थित दर्ज कराई। जॉर्ज रीव्स और एडम वेस्‍ट को सुपरमैन, बैटमैन के रूप में नई पहचान मिली, परंतु 80 के दशक में सुपर हीरोज की फिल्मों ने जोर पकड़ा।

इस दौरान टिम बर्टन की बैटमैन पर बनी दो फिल्मों ने सफलता के नए कीर्तिमान बनाए और इस सफलता को सुपरगर्ल, द पनिशर, द शैडो और द फैंटम ने आगे बढ़ाया। कहना गलत न होगा कि इसके बाद तो सुपर हीरोज का स्वर्णकाल शुरू हो गया। बड़ी फिल्म निर्माण कंपनियों और नामी-गिरामी फिल्म निर्देशकों में ऐसी फिल्में बनाने की होड़ लग गई।

रोजर कॉर्मेन ने फैंटास्टिक फोर, सैम राइमी ने स्पाइडरमैन और ब्रायन सिंगर ने एक्समैन जैसी फिल्में बनाईं। अंतिम दशक में तो न केवल ऐसी बड़ी बजट की फिल्में बनाई गईं, बल्कि सुपर हीरोज वाली इन फिल्मों के सीक्वेल भी बनाए गए।

वर्ष 2002 में ब्लेड टू, एक्स टू, एक्स मेन यूनाइटेड (2003), स्पाइडरमैन टू (2004) बनाई गईं। इनके बाद एक्समैन-द लास्ट स्टैंड (2006), फैंटास्टिक फोर- राइज ऑफ द सिल्वर सर्फर (2007) और द इनक्रेडिबल हल्क (2008) बनीं।

सुपर हीरोज का यह दौर बॉलीवुड के लिए भी संक्रमण लेकर आया और 2003 में राकेश रोशन ने 'कोई मिल गया' बनाई और बाद में इसका सीक्वेल 'कृश' भी आया।

फिल्मों के अलावा अंग्रेजी में टीवी सीरियल्स भी आए हैं, जिन्होंने सुपर हीरोज को लोकप्रिय बनाया है। स्मालविले, हीरोज, बायोनिक वीमन ऐसे ही सीरियल्स हैं और आने वाले समय में अधिक भव्य और शानदार सुपर हीरोज के सामने आने से इनकार नहीं किया जा सकता है।

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