महंगाई बढ़ी तो 3 करोड़ भारतीय हो जाएंगे और 'गरीब'

Webdunia
मंगलवार, 20 मार्च 2012 (15:27 IST)
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लगातार बढ़ती महंगाई पर काबू नहीं पाया गया तो आने वाले समय में भारत में 3 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाएंगे। एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि खाने-पीने की चीजों के दाम में अगर 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई तो ऐसा संभव है।

यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है जब योजना आयोग की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक 2004-2005 और 2009-2010 के बीच देश में गरीबों की तादाद घटी है।

योजना आयोग के अनुसार 2009-2010 में देश में गरीबी रेखा से नीचे जीवन जी रहे लोगों की तादाद 35.5 करोड़ थी, जबकि 2004-2005 में इनकी तादाद 40.7 करोड़ थी। 2004-05 में देश में 37.2 फीसदी गरीब थे, जबकि पांच साल बाद 2009-10 में इनकी तादाद घटकर 29.8 फीसदी हो गई।

योजना आयोग के ये आंकड़े गरीबी रेखा के पैमाने में हुए बदलाव के बाद जारी किए गए हैं। इस बदलाव के तहत शहरों में 29 रुपये और गांवों में करीब 22 रुपये रोज से कम खर्च करने वाला आदमी ही गरीब माना जाएगा।

‘फूड प्राइस एस्केलेशन इन साउथ एशिया: सीरियस एंड ग्रोइंग कंसर्न’ शीर्षक से प्रकाशित एडीबी की रिपोर्ट में भारत में गरीबों की तादाद बढ़ने की आशंका जताई गई है। एडीबी की रिपोर्ट में इस साल फरवरी में जरूरी चीजों के फुटकर दाम में आई तेजी को आधार बनाया गया है।

गौरतलब है कि इस साल फरवरी में फुटकर बिकने वाली जरूरी चीजों के दाम में 8.83 प्रतिशत की महंगाई थी।

भारत ही नहीं इस समस्या से पूरे एशिया पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। खाद्य पदार्थ के दाम में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी 40 लाख बांग्लादेशियों को जबर्दस्त गरीबी में झोंक सकती है।

रिपोर्ट में पाकिस्तान के बारे में भी आशंका जाहिर की गई है। खाद्य पदार्थों के दाम में बढ़ोतरी से 35 लाख लोग और अत्यंत गरीब हो सकते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक जनसंख्या की बढ़ोतरी दर और करीब 1 डॉलर की रकम पर पूरा दिन गुजारने वाले लोगों की बड़ी तादाद के चलते दक्षिण एशिया दुनिया के सबसे गरीब इलाकों में शामिल है। इस इलाके में ज़्यादातर गरीबों की आधी कमाई सिर्फ खाने पर खर्च होती है।

सब्सिडी पर विवाद: रिपोर्ट के लेखक और एडीबी के अर्थशास्त्री हिरण्य मुखोपाध्याय के मुताबिक खाद्य सब्सिडी उन गरीब लोगों की मदद कर सकता है, जो महंगाई से परेशान हैं। लेकिन कई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सब्सिडी आधारित अर्थव्यवस्था से किसी भी देश की आर्थिक तरक्की से समझौता होता है और ऐसे देशों का हाल यूरोप के उन मुल्कों की तरह हो सकता है जो आज कंगाल हैं। ( एजेंसी)

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