मो यान : नोबेल विजेता की दिलचस्प दास्तान

Webdunia
गुरुवार, 11 अक्टूबर 2012 (19:27 IST)
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स्वीडिश अकादमी ने पुरस्कार समिति ने जिन मो यान नामक जिस चीनी लेखक को साहित्य का नोबेल पुरस्कार देने के लिए चुना है, उनकी एक दिलचस्प दास्तान है। लेखन में लोक कथाओं, इतिहास और समकालीन साहित्य को भ्रांतिजनक यथार्थवाद पेश करने के लिए नोबेल पुरस्कार के लिए चुने गए मो यान लेखक का पेन नेम है, जिसका मतबल है 'बोलो मत'। चीन के उत्तर पश्चिमी गाओमी में पैदा हुए मो यान का असली नाम गुआन मोये है।

चीन में लेखन के लिए सबसे मशहूर और सबसे प्रतिबंधित लेखकों में मो यान का नाम शुमा र किय ा जाता है। उन्हें फ्रांस काफ्का या जोसेफ हेलर का चीनी जवाब भी कहा जाता है।

स्वीडिश अकादमी ने पुरस्कार की घोषणा करते हुए कहा कि 2012 के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार चीनी लेखक मो यान को लोक कथाओं, इतिहास और समकालीन साहित्य को भ्रांतिजनक यथार्थवाद के साथ मिलाने की शैली के लिए दिया जा रहा है। वह पहले चीनी नागरिक और दूसरे चीनी भाषा के लेखक हैं, जिन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया जाएगा।

नोबेल पुरस्कार के 111 साल के इतिहास में मो यान 109वें लेखक हैं, जिन्हें साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया है। गत वर्ष यह सम्मान स्वीडन के लेखक टॉमस ट्रांसटोमर को प्रदान किया गया था। सनद रहे कि नोबेल पुरस्कार 1901 से दिए जा रहे हैं। इससे सम्मानित हस्ती को पदक, प्रशस्ती पत्र और नकद पुरस्कार दिया जाता है। 2012 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार के लिए चुने गए मो यान को 10 लाख अमेरिकी डॉलर प्रदान किए जाएंगे।

मो यान ने अपनी पैनी नजर 20 वीं सदी के काले और बदसूरत चीनी समाज पर टिकाई थी। 57 साल के मो यान 1987 में लिखे एक उपन्यास के बाद मशहूर हुए थे। रेड रेड शोरघम नाम के इस उपन्यास में पूर्वी चीन के गांवों में होने वाली हिंसा का चित्रण किया गया था। इस कहानी को चीनी निर्देशक झांग यिमोऊ ने बाद में फिल्म के लिए इस्तेमाल किया।

मो यान का परिचय : मो यान यही नाम है उनका जिन्हें साहित्य का नोबेल मिलना है। मोयान का जन्म 17 फरवरी 1955 को चीन के पूर्वी शांगदोंग प्रांत के गाओमी शहर के किसान परिवार में हुआ। यान ने अपना पहला उपन्यास लिखने के दौरान ही अपना उपनाम रख लिया। मो ने कहा कि उनके उपनाम का अर्थ है 'मत कहो।'

उन्होंने सेना में रहने के दौरान ही लिखना शुरू कर दिया था। उनका महत्वपूर्ण उपन्यास 'रेड शोरघम' 1987 में प्रकाशित हुआ जो कि जापान विरोधी युद्ध पर आधारित था और इसमें प्यार और संघर्ष की दास्तां बयां की गई है। बाद में इस उपन्यास पर फिल्म बनी जिसने 1988 में बर्लिन इंटरनेशनल फिल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार का खिताब जीता।

यान ने उनके समय के जाने माने साहित्यकारों द्वारा उनकी आलोचना किए जाने के बावजूद विभिन्न विषयों पर उपन्यास, लघु कथाएं और निबंध लिखे। उन्होंने लोक कथाओं, इतिहास और समसामयिक मुद्दों को मिलाकर साहित्य के एक अनूठे संसार की रचना की।

पेशे से उपन्यासकार और शिक्षक मो यान की महत्वपूर्ण रचनाओं के नाम है- रेड शोरघम, दि रिपब्लिक ऑव वाइन, लाइफ एंड डेथ आर वेरिंग मी आउट। (वेबदुनिय ा /एजेंसी)

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