कोलंबो। आजादी के बाद के सबसे बुरे आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका में पूर्ण मंत्रिमंडल के गठन तक स्थिरता सुनिश्चित करने की कोशिशों के तहत राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने शुक्रवार को 9 नए कैबिनेट मंत्रियों को शपथ दिलाई। राष्ट्रपति द्वारा नए प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को नियुक्त किए जाने के 1 सप्ताह से अधिक समय के बाद मंत्रियों को शपथ दिलाई गई। राष्ट्रपति ने 5 बार श्रीलंका के प्रधानमंत्री रहे विक्रमसिंघे को एक बार फिर यह पद सौंपा है।
नए मंत्रियों में मुख्य विपक्षी दल समागी जन बालवेग्या (एसजेबी) के 2 मंत्री शामिल हैं जबकि बाकी राजपक्षे की पार्टी श्रीलंका पोदुजना पेरामुना (एसएलपीपी) और उस समूह से जुड़े हुए हैं जिसने सत्तारूढ़ गठबंधन से इस्तीफा दे दिया था। इससे पहले राष्ट्रपति राजपक्षे ने पिछले सप्ताह 4 मंत्रियों को नियुक्त किया था। हालांकि अब तक किसी भी वित्तमंत्री की नियुक्ति नहीं की गई है, जो इस समय अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के साथ चल रही बातचीत के मद्देनजर अत्यधिक महत्वपूर्ण है। स्थानीय मीडिया के मुताबिक कैबिनेट में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री समेत 25 सदस्य होंगे।
श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (एसएलएफपी) का प्रतिनिधित्व करने वाले पूर्व मंत्री निमल सिरिपाला डी सिल्वा, निर्दलीय सांसद सुशील प्रेमजयंता, विजयदास राजपक्षे और तिरान एलेस शुक्रवार को शपथ लेने वाले 9 नए मंत्रियों में शामिल रहे। खबरों के मुताबिक निमल सिरिपाला डी सिल्वा को नौसेना एवं उड्डयन सेवा मंत्री, जबकि सुशील प्रेमजयंता को शिक्षामंत्री बनाया गया है। इसी तरह केहेलिया रामबुकवेला ने स्वास्थ्य मंत्री के रूप में शपथ ली और विजयदास राजपक्षे को न्याय, जेल मामलों व संवैधानिक सुधार विभाग का प्रभार सौंपा गया है।
खबरों के अनुसार पर्यटन एवं भूमि मंत्रालय हरिन फर्नांडो, वृक्षारोपण उद्योग मंत्रालय रमेश पथिराना, श्रम और विदेश रोजगार मंत्रालय मनुशा नानायकारा तथा व्यापार, वाणिज्य व खाद्य सुरक्षा मंत्रालय नलिन फर्नांडो को सौंपा गया है, वहीं तिरान एलेस सार्वजनिक सुरक्षा मंत्री बनाए गए हैं। राजपक्षे ने अब तक 4 बार अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल किया है जिसमें उनके बड़े भाई और सत्तारूढ़ गठबंधन के संरक्षक महिंदा राजपक्षे का इस्तीफा शामिल है।
जनवरी के बाद से भारत के आर्थिक सहायता पैकेज ने 1948 में स्वतंत्रता के बाद से श्रीलंका को उसके सबसे बुरे आर्थिक संकट में बचाए रखा था। भारत ने ईंधन और आवश्यक वस्तुओं की खरीद के लिए कर्ज प्रदान किया, क्योंकि श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार समाप्त हो गया था। गौरतलब है कि राजनीतिक संकट मार्च के अंत में शुरू हुआ था, जब लंबे समय तक बिजली कटौती और आवश्यक सुविधाओं की कमी से परेशान लोग सरकार के इस्तीफे की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए।