- उत्तरी गाजा से अब तक 10 लाख से ज्यादा फलस्तीनी नागरिक दक्षिण गाजा की तरफ पलायन कर चुके हैं
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1 लाख लोग (फिलिस्तीनी) अभी भी यहीं हैं।
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गाजा में रहने वाले तकरीबन 24 लाख लोगों के जीवन पर संकट है।
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गाजा के 2,670 लोगों की मौत हुई है। इनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं।
फोटो : सोशल मीडिया
पिछले करीब 14 दिनों से इजरायल और हमास के बीच युद्ध चल रहा है। हजारों लोग मारे जा रहे हैं, इजरायल ने हमास को खत्म करने की कसम खाई है। ऐसे में गाजा में रहने वाले लाखों लोगों के जीवन पर संकट आ गया है। हजारों पलायन कर चुके हैं तो लाखों लोगों के पास कोई चारा नहीं है कि वे कहां जाए और कहां शरण लें।
दिलचस्प बात यह है कि फिलिस्तीनी मुस्लिमों को अपने करीबी मुस्लिम देशों में ही शरण नहीं दी जा रही है।बमबारी और मिसाइलों की आफत के बीच गाजा के फिलिस्तीनी लोग पड़ोसी देश मिस्र और जॉर्डन में शरण लेने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन मुस्लिम होते हुए भी ये देश उन्हें अपने यहां शरण देने को तैयार नहीं है। कुछ देश फिलिस्तीनियों की बाहर से भोजन-पानी और मेडिकल सेवाओं के लिए तैयार हैं, लेकिन उन्हें अपने देश में एंट्री नहीं देना चाहते हैं। समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर क्यों ऐसा हो रहा है।
मुस्लिमों को मुस्लिम देशों में क्यों नहीं मिलती शरण?
पिछले कुछ समय से देखा जा रहा है कि मुस्लिम शरणार्थियों को मुस्लिम देश ही शरण देने से कतरा रहे हैं। इजरायल और हमास वॉर के बीच यह बात और ज्यादा खुलकर सामने आ गई है। स्लोवाकिया, पोलैंड, बुल्गारिया आदि देशों ने खुलकर कहा कि उन्हें ईसाई शरणार्थी मंजूर हैं, लेकिन मुस्लिम नहीं। तत्कालीन पोलिश प्रधानमंत्री इवा कोपाकज़ ने पोलैंड को एक ईसाई देश बताते हुए एक बार कहा था कि ईसाइयों की मदद करना उनकी जिम्मेदारी है। बल्गेरियाई प्रधानमंत्री ने भी कहा था कि उनके देश में मुसलमानों के खिलाफ कुछ भी नहीं है, लेकिन मुस्लिम शरणार्थियों को स्वीकार करने से देश की धार्मिक संरचना में बदलाव आ सकता है। एस्टोनियाई ने भी मुस्लिम प्रवासियों को लेने के खिलाफ तर्क देते हुए कहते हैं— आखिरकार, हम ईसाई संस्कृति से संबंधित देश हैं। चेक राष्ट्रपति मिलोस ज़ेमन ने कहा था कि शरणार्थी पूरी तरह से अलग सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से ऐसे में यह ठीक नहीं होगा।
जॉर्डन : 56 साल में 40 लाख बढ गए फिलीस्तीनी
इजरायल ने जब 1967 के युद्ध में वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी पर कब्जा कर लिया तो 3 लाख से अधिक फिलिस्तीनी विस्थापित हुए और जिनमें से ज्यादातर जॉर्डन में चले गए। इन शरणार्थियों और उनके वंशजों की संख्या अब लगभग 40 लाख से ज्यादा है, जिनमें से अधिकांश वेस्ट बैंक, गाजा, लेबनान, सीरिया और जॉर्डन के शिविरों और समुदायों में रहते हैं। मिस्र और जॉर्डन को डर है कि इतिहास खुद को दोहराएगा और गाजा से शरणार्थी के रूप में आने वाली बड़ी फिलिस्तीनी आबादी हमेशा के लिए वहीं रह जाएगी। जॉर्डन के राजा अब्दुल्ला द्वितीय ने भी एक दिन पहले इसी तरह का संदेश दिया था। उन्होंने कहा था, जॉर्डन और मिस्र में किसी शरणार्थी को आने की इजाजत नहीं होगी।
जिसने शरण दी, उन्हीं के दुश्मन हो गए
अरब देश वैसे तो फिलिस्तिनियों को नागरिकता या शरण न देने के पीछे कई कारण हो सकते हैं,लेकिन जो सबसे बड़ा कारण सामने आता है वो है अपने देश की डेमोग्रेफी बिगड़ने का। बता दें कि जार्डन ने लाखों फिलिस्तिनियों को अपने देश में शरण दी थी, लेकिन बाद में वे जार्डन के ही दुश्मन हो गए। भारत भी पूर्वोत्तर के कई राज्यों में शरणार्थियों के चलते कई समस्याएं पैदा हुईं हैं।
लेबनान : जहां नहीं दी जाती नौकरी
अरब देश फिलिस्तीनियों को काम के लिए तो स्वीकार रहे हैं, लेकिन उन्हें सिर्फ निम्न स्तर के ही काम दिए जाते हैं। ऐसे काम जो उनके अपने देश के लोग करना पसंद नहीं करते। लेबनान में बहुत सी ऐसी नौकरियां हैं, जिनके लिए फिलिस्तीनी नागरिकों को नहीं लिया जाता।
मिस्र : शांति संधि का क्या होगा?
जहां तक मिस्र की बात है तो मिस्र के राष्ट्रपति अल-सिसी ने यह कहा है कि बड़े पैमाने पर पलायन से आतंकवादियों के मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप में आने का जोखिम होगा, जहां से वे इजरायल पर हमले शुरू कर सकते हैं, जिससे दोनों देशों की 40 साल पुरानी शांति संधि खतरे में पड़ सकती है। मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी ने बुधवार को अपनी अब तक की सबसे सख्त टिप्पणी में कहा, मौजूदा युद्ध का उद्देश्य सिर्फ हमास से लड़ना नहीं है, जो गाजा पट्टी पर शासन करता है। बल्कि इस युद्ध का उद्देश्य गाजा के आम निवासियों को मिस्र की ओर पलायन करने के लिए प्रेरित करने का एक प्रयास भी है। उन्होंने चेतावनी दी कि इससे क्षेत्र में शांति भंग हो सकती है।
मिस्र और जॉर्डन का डर
कई तरह की वजहों के साथ ही मिस्र और जॉर्डन को एक डर यह भी है कि शरण देने से फिलिस्तीनियों की स्वतंत्र राष्ट्र की मांग खत्म हो जाएगी। दोनों पड़ोसी देशों का इनकार इस डर पर आधारित है कि इजरायल फिलिस्तीनियों को स्थायी रूप से मिस्र और जॉर्डन में बसाने से फिलिस्तीनियों की स्वतंत्र राष्ट्र की मांग खुद ही खत्म हो जाएगी।
क्या कहता है अरब लीग रिजॉल्यूशन
1959 में अरब लीग रिजॉल्यूशन- 1547 के मुताबिक फिलिस्तीनियों को शरण नहीं देने के पीछे एक और तर्क देता है। उसके मुताबिक अरब देश फिलिस्तीनियों को 'उनके अपने देश' की नागरिकता दिलवाने में मदद करेगा। लेकिन अपने यहां उन्हें न ही शरण देंगे और न ही अपने देश की नागरिकता। अरब देशों का कहना है कि अगर उन्होंने अपने देशों में फिलिस्तीन के लोगों को नागरिक अधिकार देना शुरू कर दिया, तो ये एक तरह से फिलिस्तीन को खत्म करने जैसा होगा। लोग भाग-भागकर बाहर बसने लगेंगे और फिलिस्तीन पर पूरी तरह से इजरायल का कब्जा हो जाएगा। ऐसे में अरब देश बिल्कुल नहीं चाहते कि फिलिस्तीनी इजराइलियों के लिए जगह खाली करे।
Edited By : Navin Rngiyal