1 मिनट 10 सेकंड में 13000 मीटर की ऊंचाई पर पहुंच जाएगा आर्तेमिस-1
कैसे हैं आर्तेमिस-1 की उड़ान के विभिन्न चरण
50 वर्ष बाद अमेरिका ने चंद्रमा पर दुबारा जाने के लिए कमर कस ली है। 2025 में वह अपने दो अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर पहुंचाना और वहां अपने भावी अड्डे की नींव डालना चाहता है। इससे पहले दो बार मानव-रहित अंतरिक्ष यान वहां भेजे जाने हैं।
आर्तेमिस-1 के प्रक्षेपण का पहला प्रयास, 29 अगस्त को, मुख्य रॉकेट के एक इंजन में लगे सेंसर से मिल रही तापमान संबंधी ग़लत सूचना के कारण त्याग देना पड़ा था। दूसरा प्रयास, शनिवार 3 सितंबर को, फ्लोरिडा के स्थानीय समय के अनुसार दिन के सवा दो बजे से सवा 4 बजे के बीच होगा। भारत में उस समय रविवार 4 सितंबर की सुबह हो रही होगी। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने तय किया है कि यदि दूसरा प्रयास भी टालना पड़ा, तो तीसरा प्रयास 72 घंटे के अंतराल से पहले नहीं हो सकता। दूसरे प्रयास के लिए स्थानीय मौसम 60 प्रतिशत तक अनुकूल आंका गया है।
आर्तेमिस-1 का 98 मीटर ऊंचा मुख्य रॉकेट अपने ईंधन आदि के साथ 2600 टन भारी होगा। उसके प्रक्षेपण की विलोम गणना (काउन्ट डाउन) शुरू होने के साथ और प्रक्षेपण मंच से उठने तक, मंच पर प्रतिसेकंड 17 लाख लीटर पानी की बौछार की जाएगी। इस बौछार द्वारा उस प्रचंड शोर और उन कंपनों को कम करने का प्रयास किया जाता है, जो रॉकेट के इंजनों को प्रज्ज्वलित करने पर होते हैं। आर्तेमिस-1 मिशन के तीन मुख्य अंग हैं– रॉकेट वाली प्रक्षेपण प्रणाली (स्पेस लांच सिस्टम SLS), भावी अंतरिक्ष यात्रियों के रहने-बैठने का अंतरिक्ष यान (कैप्सूल) 'ओरायन' और 'ओरायन' के लिए यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) का बनाया प्रणोदन (प्रोपल्शन), जीवनरक्षा और सर्विस मॉड्यूल (ESM)।
हर बूस्टर रॉकेट भी 726 टन भारी : 98 मीटर ऊंचे मुख्य रॉकेट की अगल-बगल में दो बूस्टर रॉकेट लगे होंगे। 54 मीटर ऊंचे इन दोनों शक्तिवर्धक रॉकेटों में से प्रत्येक, प्रक्षेपण के बिल्कुल शुरू के दो मिनटों के बाद, 75 प्रतिशत ऊर्ध्वगामी शक्ति प्रदान करेगा। हर बूस्टर रॉकेट स्वयं भी 726 टन भारी होगा। इस भार का सबसे बड़ा हिस्सा रबड़ की तरह जमा कर ठंडा कर दिए गए ईंधन के रूप में होगा। हर बूस्टर रॉकेट में प्रतिसेकंड 6 टन ईंधन जलेगा। इससे पूरी रॉकेट प्रणाली को 20 जम्बो जेट विमानों जितनी ऐसी एक-समान प्रणोदन-शक्ति मिलेगी, जो रॉकेट प्रणाली की गति भी निरंतर बढ़ती रहेगी और उसका संतुलन भी बनाए रखेगी।
बाक़ी प्रणोदन-शक्ति मुख्य रॉकेट के 65 मीटर लंबे मुख्य चरण से मिलेगी। रॉकेट के इस हिस्से का मुख्य भाग संतरे के रंग की एक टंकी है, जिसे भूतपूर्व अमरिकी शटल यानों के समय विकसित किया गया था। इस टंकी में –253डिग्री सेल्सियस ठंडी 20 लाख लीटर तरल हाइड्रोजन गैस और –183 डिग्री सेल्सियस ठंडी 7,42,000 लीटर तरल ऑक्सीजन गैस भरी होगी। मुख्य रॉकेट के चारों इंजनों में यही दोनों गैसें जलकर आवश्यक ऊर्जा प्रदान करेंगी। इन दोनों गैसों के जलने से 8 मिनटों तक 11 जम्बो जेट विमानों जितनी शक्ति मिलेगी।
पहले 1 मिनट 10 सेकंड में 13,000 मीटर की ऊंचाई : प्रक्षेपण के बाद के पहले 1 मिनट 10 सेकंड में आर्तेमिस-1 मिशन 1682 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से 13,000 मीटर की ऊंचाई पर पहुंच जाएगा। इस गति और ऊंचाई पर रॉकेटों की प्रति वर्गमीटर संरचना पर 3 टन के बरार दबाव पड़ेगा। 'मैक्स क्यू' (Max Q) कहलाने वाली इस अवस्था को प्रक्षेपण के आरंभिक चरण का सबसे नाज़ुक समय माना जाता है। 2 मिनट 12 सेकंड पर बूस्टर रॉकेट अपना काम पूरा कर चुके होंगे। ऊंचाई होगी 48 किलोमीटर और गति होगी है 5100 किलोमीटर प्रतिघंटा। दोनों बूस्टर मुख्य रॉकेट से अलग होकर अटलांटिक महासागर में गिर जाएंगे। तब सारा काम मुख्य रॉकेट संभाल लेगा।
कोई अंतरिक्ष यात्री नहीं होगा : 3 मिनट 30 सेकंड होने पर मुख्य रॉकेट के शीर्ष पर लगी, आपातकालीन 'प्रक्षेपण भंग प्रणाली' (लांच अबॉर्ट सिस्टम LAS) ऱॉकेट से अलग हो जाएगी। यह प्रणाली वास्तव में शुरू के साढ़े तीन मिनटों में ऐसी संकटकालीन स्थिति के लिए है, जब ऐसा लगे कि किसी गड़बड़ी के करण अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा ख़तरे में है। ख़तरा होने पर LAS अपने आप अंतरिक्ष यात्रियों के रहने-बैठने के कैप्सूल 'ओरायन' को रॉकेट से अलग कर इस तरह उछाल देगा कि वह केवल 2 सेकंड में 600 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से स्वयं उड़ सके और पृथ्वी पर लौट सके। आर्तेमिस-1 और 2 में कोई अंतरिक्ष यात्री नहीं होगा।
सब कुछ ठीक चलने पर साढ़े आठ मिनट बाद ऊंचाई होगी 162 किलोमीटर और मिशन की गति होगी 28,000 किलोमीटर प्रतिघंटा। इस ऊंचाई पर मुख्य रॉकेट का मुख्य हिस्सा जल गया होगा। उसे बाक़ि हिस्से से अलग कर प्रशांत महासगर में गिरा दिया जाएगा। 18 से 20 मिनट बाद अंतरिक्षयान (कैप्सूल) 'ओरायन' का सर्विस मॉड्यूल (ESM) 'ओरायन' को बिजली देने के लिए अपने सौर पैनल खोलेगा और बैटरियों को रिचार्ज करेगा। बैटरियों में उस समय तक केवल 45 से 50 मिनट के लिए बिजली बची रही होगी।
97 मिनट बाद 'ओरायन' चद्रमा की दिशा में बढ़ेगा : लगभग इसी समय 'ओरायन' का अंतरिम प्रणोदन चरण (ICPS, इंटरिम क्रायोजेनिक प्रोपल्शन स्टेज) भी सक्रिय हो जाएगा। वह तरल पानी और ऑक्सीजन की सहायता अपनी उड़ान के लिए ऊर्जा प्राप्त करेगा और किसी यात्री जेट विमान जैसी गति से पृथ्वी की सबसे निकट परिक्रमा करते हुए अपनी यात्रा जारी रखेगा।
प्रक्षेपण के 97 मिनट बाद 'ओरायन' चद्रमा की दिशा में बढ़ना शुरू करेगा। 125 मिनट बाद वह पृथ्वी से कम से कम 37,000 किलोमीटर दूर जा चुका होगा। गति होगी 31,580 किलोमीटर प्रतिघंटा। इस दूरी पर 10मिनी उपग्रह अंतरिक्ष में बिखेरे जाएंगे। वे अंतरिक्ष में विकिरण (रेडिएशन) मापने से लेकर नई प्रणोदन प्रणालियों के परीक्षण जैसे कई काम करेंगे।
चार दिन बाद चंद्रमा के पास : चंद्रमा तक पहुंचने का 'ओरायन' का यात्रामार्ग ऐसा रखा गया है कि उसके सौर पैनलों को अधिकतम केवल 90 मिनट छोड़कर सारे समय सू्र्य की धूप मिला करे। उसे अपने ईंधन की बचत करते हुए एक ख़ास कक्षा (ऑर्बिट) में रह कर चंद्रमा की परिक्रमा करनी होगी। इसके लिए समय-समय पर उसकी गति बढ़ाने और उड़ान की दिशा सुधारने के आदेश देने होंगे। प्रक्षेपण के क़रीब 4 दिन बाद 'ओरायन' चंद्रमा से केवल 100 किलोमीटर की दूरी पर होगा।
इस दूरी पर चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति का लाभ उठाते हुए वैज्ञानिक उसे चंद्रमा की एक ऐसी परिक्रमा कक्षा में डालेंगे, जो उसे चंद्रमा से 70,000 किलोमीटर दूर तक और 100 किलोमीटर निकट तक लाएगी-ले जाएगी। DRO (डिस्टैंट रिट्रोग्रेड ऑर्बिट) कहलाने वाली इस परिक्रमा कक्षा का मुख्य लाभ यह है कि उसमे रह कर, कोई भी चीज़, ऊर्जा की बहुत ही कम खपत पर सैकड़ों वर्षों तक चंद्रमा के फेरे लगाती रह सकती है।
14 दिनों में चंद्रमा की एक परिक्रमा : इस कक्षा में रहकर 'ओरायन' पृथ्वी पर के 14 दिनों में चंद्रमा की एक परिक्रमा पूरी करेगा। चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति सब जगह एक जैसी नहीं है। इस कारण उसके बहुत निकट रह कर लंबे समय तक उसकी परिक्रमा करने पर जो आंकड़े मिलेंगे, उनमें कुछ न कुछ अंतर हुआ करेंगे। इन अंतरों को अलग से सुधारना पड़ेगा।
यदि सब कुछ ठीक-ठाक चला, तो आर्तेमिस-1 मिशन कुल मिलाकर 42 दिन चलेगा। चंद्रमा की परिक्रमा के बाद वहां से लौट रहा 'ओरायन' अंतरिक्षयान जब पृथ्वी के वायुमंडल की घनी परतों में पहुंचेगा, तो हवा के अणुओं-परमाणुओं के साथ घर्षण से उसका तापमान बढ़ते-बढ़ते 2,800 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगा। यही सबसे नाज़ुक समय होगा। यदि 'ओरायन' इस तापमान को सकुशल झेल गया, तो कैलिफ़ोर्निया के तट के पास प्रशांत महासागर में गिरेगा। तब तक इस मिशन पर 4 अरब डॉलर से अधिक पैसा ख़र्च हो चुका होगा। 2012 में शुरू हुए और 2025 में पूरा होने वाले आर्तेमिस अभियान पर कुल कम से कम 93 अरब डॉलर ख़र्च होने का अनुमान है।