क्या है बलूचिस्तान समस्या की जड़ में?

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कुछ दिनों पहले ही एक आत्मघाती हमलावर ने खुद को भीड़ में उड़ा दिया जिससे कम से कम 70 लोगों की मौत हो गई थी। यह विस्फोट क्वेटा के एक अस्पताल में हुआ था जहां वकील अपने एक सहकर्मी की मौत पर शोक जताने के लिए अस्पताल में पहुंचे थे। इस हमले की जिम्मेदारी आईएसआईएस और स्थानीय तालिबान, दोनों ने ली। पाकिस्तान के इस सर्वाधिक अशांत सूबे की राजधानी क्वेटा एक लम्बे समय से विद्रोह का गढ़ रहा है। इस प्रांत में झगड़े का बीज 1947 में ही बो दिया गया था, जब अंग्रेजों ने भारत को छोड़ने से पहले इसे दो भागों- हिंदुस्तान और पाकिस्तान में बांट दिया था।
 
बलूचिस्तान के लोग हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बनने से पहले आजाद थे और वे कभी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं रहे। लेकिन पाकिस्तान बनने के बाद इस्लाम के नाम पर इस हिस्से को भी पाकिस्तान का हिस्सा बना लिया गया लेकिन लोगों में अलगाव और पृथकता की भावना बनी रही। दूसरी ओर, पाक ने बलूचिस्तान में चलने वाले अलगाववादी आंदोलन को दबाने के लिए पाकिस्तानी सेना का सहारा लिया जिसने स्थानीय लोगों पर तरह-तरह के अत्याचार किए और इस अशांति के लिए पाकिस्तान, हिंदुस्तान को दोषी ठहराता है। 
 
यहां 1970 के दशक में पाकिस्तान से अलग होने के संघर्ष में पांच वर्षों की अवधि में कम से कम 8000 बलोचों की हत्या की गई। आज भी आपको सड़क किनारे पर लाशें पड़ी मिल जाएंगी। रहस्यमय सामूहिक कब्रों का पता लगता है जिनमें से बड़ी संख्या में नरकंकाल निकलते हैं। ये कंकाल उन बलोच नेताओं और मानव अधिकार कार्यकर्ताओं के हैं जो कि पिछले एक दशक में गायब हो गए हैं। ऐसे लोगों की संख्या 10 हजार से भी अधिक बताई जाती है।
 
यहां समाचार पत्र नहीं निकलते हैं क्योंकि किसी रिपोर्टर के लिए अपनी ही जान देना कोई बड़ा समाचार नहीं है। बलोच नेता, वकील, पत्रकार और आम आदमी अपने अधिकारों के लिए लड़ता है तो वह रातोंरात गायब हो जाता है और बाद में कहीं दूर, निर्जन स्थान पर उसकी लाश मिलती है। पिछले कुछ सप्ताहों में बड़ी संख्या में वकीलों की हत्याएं की गईं। क्वेटा के एक वकील बरखुरदार खान का कहना है कि हाल ही में जब उनसे किसी साथी वकील के बारे में बात की गई या जिस किसी ने काम के बाद उन्हें घर तक पहुंचने के लिए अपनी सवारी पर लिफ्ट दी, वह मर चुका है। हाल ही में, क्वेटा के अस्पताल में वकीलों की एक पीढ़ी ही समाप्त कर दी गई।   
 
कई दशकों से बलोच लोग पाकिस्तान से अलग होने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह विद्रोह एक छोटे स्तर पर हमेशा से मौजूद रहा है और पाकिस्तान ने इसके लिए हमेशा ही अफगानिस्तान और भारत को इसके लिए दोषी ठहराया है। लेकिन पाकिस्तान अपने आरोपों को कभी भी सिद्ध नहीं कर सका है। विदित हो कि 1980 के दशक में सोवियत सेनाओं के खिलाफ बलूचिस्तान एक युद्ध स्थली रही है लेकिन इस दौरान एक अहम परिवर्तन यह हुआ कि इस दौरान यहां तालिबान की फसल उगाई गई जिन्होंने पाक सेना के साथ सोवियत सैनिकों को अफगानिस्तान से निकालने में मुख्य भूमिका निभाई। वर्षों तक अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने पाकिस्तान पर आरोप लगाया कि इसने बलूचिस्तान को तालिबानियों के लिए स्वर्ग बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
 
यह भी कहा जाता है कि पाकिस्तान की खुफिया सेवा आईएसआई ने क्वेटा और इसके आसपास के इलाके का आतंकवादी हब के तौर पर इस्तेमाल किया। बलूचिस्तान एक काफी बड़ा भूभाग है और इसका काफी बड़ा भूभाग पाकिस्तान की केन्द्रीय सरकार के अधीन नहीं रहा। यहां के बलोचों को उन राष्ट्रवादियों से गहरी सहानुभूति रही है जो कि राष्ट्रवादी होने के कारण बलूचिस्तान को स्वतंत्र या कम से कम स्वायत्त देखना चाहते हैं। यहां पाकिस्तानी सेना ने इन्हें हर तरह से मिटाने की कोशिश की  और उन पर तरह-तरह के जुल्म ढाए। पाक सरकार और सेना ने बलोचों का विनाश करने के लिए धार्मिक कट्‍टरपंथियों और तालिबानियों की मदद ली।
 
चूंकि पिछले आम चुनावों में बलूचिस्तान के नेताओं ने चुनाव का ही बहिष्कार किया था जिसके चलते बहुत बड़ी संख्या में लोग थोड़े से वोट पाकर भी जीत गए। ऐसे लोगों को जीतने के लिए 10, 12 या 15 फीसद वोट ही काफी थे। साथ ही, प्रांतीय सरकार और इसके नेताओं को बलोच, इस्लामाबाद की कठपुतलियां मानते हैं जिनकी डोर सेना, कट्‍टरपंथियों के हाथ में है। जब भारत का विभाजन हुआ तो मुस्लिम जनसंख्‍या पाकिस्तान आ गई। इसी दौरान पाकिस्तानियों ने तत्कालीन बलोच नेतृत्व पर दबाव बनाकर इस हिस्से पर अवैध कब्जा कर लिया। बलूचिस्तान संसाधनों के मामलों में सम्पन्न है लेकिन इनका दोहन पाकिस्तान के दूसरे राज्यों के लिए किया जाता है।
 
 

चूंकि यहां के वकीलों ने सेना के भ्रष्टाचार, इसके आचरण पर निशाना साधा तो फौजियों ने बलोच राष्ट्रवादियों की हत्याएं करके उनके शवों को रातोंरात अंजान जगहों पर दफना दिया। सैकड़ों लोगों का अपहरण किया गया और बिना किसी मुकदमे के उनको सजा भी दे दी गई। चूंकि यहां होने वाले अत्याचारों के खिलाफ वकीलों ने आवाज उठाई लेकिन उनकी आवाजों को ताकत के बल पर शांत कर दिया गया। यहां पर बड़ी संख्या में जिहादी गुट अपने संगठनों के लिए भर्ती करने में लगे रहे। ये गुट स्थानीय हैं इसलिए वे इस्लामी शासन को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को लेकर प्रतियोगिता करने लगे।
 
कुछ गुटों ने आतंकवादी गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया और लोगों को यह समझाने की कोशिश की कि उनका संगठन सर्वाधिक इस्लाम केन्द्रित है। ये गुट स्थानीय लोगों के हैं और इनमें से प्रत्येक प्रमुख आतंकवादी गुट बनाने के लिए संघर्ष कर रहा है। ऐसे ही किसी गुट ने वकीलों को अपना निशाना बनाया क्योंकि वकील अधिक धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक विचारों के होते हैं, इसलिए वे जिहादियों के शरिया आधारित कानूनों का विरोध करते हैं। इस प्रांत की जनसंख्या बहुत कम है और बलोच एक अपेक्षाकृत‍ छोटी अल्पसंख्यक आबादी है। बीस करोड़ लोगों की जनसंख्या वाले देश में इनकी आबादी 50 लाख से ज्यादा नहीं है।
 
उनके समाज में वकीलों की संख्या पहले से ही कम है इसलिए संख्या के लिहाज से उनकी बिरादरी के लिए यह बड़ा नुकसान है। मान लीजिए कि अमेरिका के किसी दक्षिणी कस्बे में बहुत थोड़े अश्वेत वकील हैं और अगर इन सभी को समाप्त किया जाता है तो वकीलों की जमात में उनका प्रतिनिधित्व करने वाला भी नहीं रहेगा। बलूचिस्तान में कुछ ऐसा ही हो रहा है। इस हमले की जिम्मेदारी आईएसआईएस और तालिबान ने ली है तो इसका यह भी अर्थ हो सकता है कि हमले में दोनों ही संगठन शामिल रहे हों। बहुत सारे जिहादी संगठन मिलकर काम करते हैं, ऐसे में उनकी सदस्यता भी एक से दूसरे संगठन में बदलती रहती है।
 
ऐसे हमलों को रोकने के लिए पाकिस्तानी सेना को दुश्मन की परिभाषा तय करनी होगी। अगर जिहादियों में अच्छे और बुरे का भेद किया जाता है तो ऐसी मारकाट होते रहना स्वाभाविक है। इसलिए सेना को सभी तरह के जिहादियों का सफाया करना चाहिए। इसके साथ ही, असंतुष्ट बलोच नेताओं से बातचीत के दरवाजे खोलना चाहिए क्योंकि वे भी पाक नागरिक हैं जोकि खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं। इस कारण से वे अशांति और हिंसा से जुड़ गए हैं। केवल अधिकाधिक सैनिकों की तैनाती से केवल हिंसा बढ़ेगी, कम या समाप्त नहीं होगी।      
 
बलूचिस्तान, पाकिस्तान का सबसे जटिल भाग है और मात्र सरलीकरण से इनकी समस्याओं को नहीं सुलझाया जा सकता है। यह स्थिति लाने के लिए पाकिस्तानी सेना, आईएसआई, राज्य या केन्द्र की सत्ता में बैठे लोगों का भ्रष्टाचार, पक्षपातपूर्ण व्यवहार और आतंकी संगठनों की निर्णायक भूमिका में होने से स्थितियां बदतर हुई हैं। पाकिस्तान को इन सभी चीजों से निजात पाना होगा तभी बलूचिस्तान के लोग खुद को पाकिस्तानी मानने या समझने के लिए तैयार होंगे और तभी इस समस्या का खुद बखुद समाधान निकल आएगा।
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