अंतरिक्ष से गिरेगा बनकर कहर, चीनी सेटेलाइट फेल...

Webdunia
शुक्रवार, 18 नवंबर 2016 (17:18 IST)
2 सितंबर, 2011 में चीन के द्वारा अपने अंतरिक्ष स्टेशन तियानगॉन्ग 1 को अंतरिक्ष में स्थापित करना एशियाई देश के लिहाज से एक बड़ी उपलब्धि थी लेकिन आज यही एक समस्या बनती दिखाई दे रही है, क्योंकि यह स्टेशन अब पूरी तरह फेल हो चुका है और अब यह धरती कर कहां गिरेगा इसको लेकर अटकलें हैं।
अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट भेजने के अभियानों को संभालने वाली चीनी एजेंसी सीएमएसई की डिप्टी डायरेक्टर वू पिंग ने सितंबर में जानकारी दी थी कि तियानगॉन्ग 1, अगले साल के आखिरी महीनों में धरती पर गिरेगा। जिस प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह घोषणा की गई उसकी सबसे दिलचस्प बात थी कि उसी में चीन ने अपने दूसरे प्रायोगिक अंतरिक्ष स्टेशन तियानगान्ग 2 के छोड़े जाने की घोषणा भी की थी। अक्टूबर में 33 दिनों के लिए चीन के दो अंतरिक्ष यात्री भी इस पर पहुंच चुके हैं। लेकिन वैज्ञानिक हलकों में चीन की इस उपलब्धि के बजाय आज भी चर्चा तियानगॉन्ग 1 की ही चल रही है।
 
दरअसल तियानगॉन्ग 1 ने अपनी निर्धारित समयावधि पूरी कर ली है लेकिन अब यह स्टेशन चीनी अंतरिक्ष एजेंसी के काबू में नहीं है। इस बारे में चीनी एजेंसी सीएमएसई की डिप्टी डायरेक्टर वू पिंगने जानकारी दी है कि यह अगले साल के आखिरी महीनों में धरती पर गिरेगा। वाशिंगटन पोस्ट से बात करते हुए हॉवर्ड यूनिवर्सिटी के एस्ट्रो फिजिसिस्ट जोनाथन मैकडॉवेल कहते हैं, 'आप इन चीजों को नियंत्रित नहीं कर सकते' यहां तक कि कुछ दिन पहले भी आप नहीं बता सकते है कि ये कब गिरेंगी' इसका मतलब है कि आप यह भी नहीं बता सकते कि कहां गिरेंगी।'
 
जानमाल के नुकसान की संभावना : तियानगॉन्ग 1 का वजन तकरीबन 8500 किलोग्राम है और यह धरती के 370 किमी ऊपर चक्कर काट रहा है। वू पिंग ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया था कि इस अंतरिक्ष स्टेशन का मलबा पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश के दौरान जलकर नष्ट हो जाएगा। हालांकि वैज्ञानिकों के मुताबिक यह दावा पूरी तरह सही नहीं है क्योंकि अंतरिक्ष स्टेशन में ऐसी सामग्री भी होती है जो जलकर नष्ट नहीं होगी। उसका कुछ हिस्सा धरती पर गिरेगा ही। ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ हेंप्टन से जुड़े एक अंतरिक्ष विशेषज्ञ 'द गार्जियन' से बातचीत में कहते हैं, 'यह मॉड्यूल (तियांगगॉन्ग) खोखला है और इसका बड़ा हिस्सा वायुमंडल में प्रवेश के समय जल जाएगा लेकिन कुछ हिस्सों की धरती पर पहुंचने की संभावना है।' इतने सालों के बीच अंतरिक्ष विज्ञान ने खासी तरक्की की है लेकिन अभी-अभी वह इस काबिल नहीं हो पाया है कि संपर्क टूटने के बाद किसी उपग्रह या अंतरिक्ष स्टेशन के धरती पर गिरने का सही समय और स्थान बता सके।
 
कुछ प्रतिशत यह गुंजाइश फिर भी बनी हुई है कि इसके टुकड़े गिरने से जानमाल का नुकसान हो सकता है। इसके पीछे मत यह है कि स्पेस स्टेशन में ऐसा कई सामान होता है जो आग नहीं पकड़ता ऐसे में मलबे के गिरने की गुंजाइश बनी रहती है। पृथ्वी के दो तिहाई हिस्से पर पानी है और साथ ही जमीन के एक बड़े हिस्से पर इंसानी आबादी निवास नहीं करती जिसके कारण इंसानों पर ये अवशेष गिरने की आशंका कम से कम हो जाती है। चीन के इस अं‍तरिक्ष स्टेशन के गिरने के पहले भी हुई है ऐसी घटना।
 
अमेरिका का स्काईलैब : इससे पहले भी स्काईलैब की अपनी कक्षा से निकलकर पृथ्वी पर गिरने की घटना इतिहास में घट चुकी है। वह एक नौ मंजिला ऊंचा और 78 टन वजनी ढांचा था। इसे अमेरिका ने 1973 में अंतरिक्ष में छोड़ा था। इसके पृथ्वी पर गिरने के वक्त आशंका यह भी जताई गई थी कि इसका मलबा भारत पर गिर सकता है। 1977-78 के दौरान उठे सौर तूफान (सूर्य से निकलने वाली आग की लपटें) से इसे काफी नुकसान हुआ। स्काईलैब के सौर पैनल खराब हो गए और यह धीरे-धीरे अपनी कक्षा से फिसलकर पृथ्वी की ओर बढ़ने लगी। शुरू में अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी, नासा ने इसकी मरम्मत की कोशिश की लेकिन वे नाकाम रहे।
 
12, जुलाई 1979 के दिन जब स्काईलैब को धरती पर गिरना था तब भारत में सभी राज्यों की पुलिस हाईअलर्ट पर रखी गई थी। इसके बाद जैसे-जैसे मलबे के गिरने की तारीख पास आती गयी वैसे-वैसे भारत दहशत का माहौल बन गया था। दहशत इतनी बढ़ती गई कि देश के कई गावों में लोगों ने यह मान लिया कि बस कुछ दिन बाद दुनिया खत्म हो जाएगी। देश के कई हिस्सों में बुजुर्ग बताते हैं कि तब लोगों ने अपनी जमीन-जायदाद बेचकर पैसा ऊलजुलूल तरीके से खर्च करना शुरू कर दिया था। हालांकि इसके टुकड़े हिन्द महासागर और कुछ ऑस्ट्रेलिया के एक कस्बे एस्पेरेंस में गिरे और कैसी भी जान-माल की हानि नहीं हुई। इस घटना के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने ऑस्ट्रेलिया सरकार से माफी मांगी थी। वहीं दूसरी तरफ कस्बे एस्पेरेंस के स्थानीय निकाय ने अमेरिका पर 400 डॉलर का जुर्माना लगाया था। हालांकि अमेरिकी सरकार ने यह कभी नहीं चुकाया।
 
रूस का मीर स्टेशन : 2001 में रूस का मीर स्टेशन भी धरती पर गिरा था लेकिन तब तियांगगॉन्ग से तकरीबन 16 गुना भारी इस स्टेशन को नियंत्रित करते हुए प्रशांत महासागर में गिराया गया था। रूसी वैज्ञानिकों के मुकाबले चीन इस मामले में असफल साबित हुआ है।
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