लंदन। दो बड़े अध्ययनों से यह बात सामने आई है कि लोग कठिन परिस्थितियों में तकलीफ में पड़े लोगों की तुलना में कुत्तों से ज्यादा सहानुभूति रखता है। इस आशय की जानकारी द टाइम्स ऑफ लंडन में दी गई है।
ब्रिटेन की एक मेडिकल धर्मार्थ संस्था ने दो काल्पनिक दान अभियान चलाए जिनमें से एक कुत्ते के लिए था और दूसरा एक मुसीबतजदा आदमी का। वास्तव में लोगों ने कुत्ते को अधिक राशि दान की।
प्रचार अभियान के लिए विज्ञापनों में कहा गया था कि 'क्या आप हैरिसन को धीमी और दुखद मौत से छुटकारा दिलाने के पांच पाउंड्स देंगे?' अलग-अलग विज्ञापनों में से एक में कुत्ते और दूसरे में आदमी (हैरिसन) की तस्वीर बनी थी।
इसके बाद नॉर्थइस्टर्न यूनिवर्सिटी के अध्ययन में दर्शाया गया है कि कुत्ते का मुकाबला केवल मनुष्य का एक बच्चा कर सकता है। फर्जी न्यूजपेपर क्लिपिंग्स छात्रों को दिखाई गईं जिसमें एक पिल्ले पर बेसबाल के बल्ले से हमला, एक युवा कुत्ते पर हमला, एक वर्षीय शिशु पर और एक तीस वर्षीय युवा पर हमले से उपजी सहानुभूति में युवा का क्रम सबसे अंत में था।
प्रतियोगियों ने तब अत्यधिक कम तकलीफ दिखाई तब युवा मनुष्यों को शिकार बनाया गया था जबकि मनुष्यों के शिशुओं, पिल्लों और युवा कुत्तों के प्रति लोगों की सहानुभूति ज्यादा थी। नॉर्थइस्टर्न यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार शिशु शिकार के संबंध की तुलना में युवा कुत्ते को कम सहानुभूति मिली।