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भारत की बड़ी जीत, पाकिस्तान जेल में बंद कुलभूषण जाधव की फांसी पर फिलहाल रोक

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, बुधवार, 17 जुलाई 2019 (21:45 IST)
हेग। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने पाकिस्तान में कैद भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को लेकर पाकिस्तान की समूची न्यायिक कार्यवाही को गैरकानूनी करार दिया है तथा उसकी फांसी की सजा पर रोक लगाते हुए पाकिस्तान को इस फैसले की प्रभावी समीक्षा करने का निर्देश दिया है।
 
न्यायालय ने जाधव के मामले में योग्यता के आधार पर भारत के पक्ष में फैसला सुनाया हालांकि अदालत ने पाकिस्तान की सैन्य अदालत के फैसले को रद्द करने और जाधव की सुरक्षित भारत वापसी की मांग को नहीं माना।
 
16 सदस्यीय पीठ में से 15 न्यायाधीशों ने निर्विरोध माना है कि इस मामले में भारत का हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय अदालत का दरवाज़ा खटखटाना सही है और ये मामला अदालत के अधिकार क्षेत्र में आता है। अदालत के 15 न्यायाधीशों ने भारत के पक्ष को सही माना जबकि पाकिस्तान के अस्थायी न्यायाधीश जिलानी अकेले ऐसे जज थे जिन्होंने अपना विरोध जताया।
 
न्यायालय ने कहा कि पाकिस्तान ने जाधव को वकील की सुविधा उपलब्ध न कराकर वियना संधि के अनुच्छेद 36 (1) का उल्लंघन किया है और फांसी की सजा पर तब तक रोक लगी रहनी चाहिए, जब तक कि पाकिस्तान अपने फैसले पर पुनर्विचार और उसकी प्रभावी समीक्षा नहीं कर लेता।
 
न्यायालय के बुधवार के फैसले से जाधव की मौत की सजा गलत साबित हो गई है और इसे भारत की बड़ी जीत माना जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय अदालत का फैसला आते ही भारत में खुशी की लहर छा गई। महाराष्ट्र के सतारा जिले में जाधव के गांव अनावाड़ी में लोगों ने जश्न मनाया।
 
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने कहा कि पाकिस्तान ने भारत के अधिकारियों को जाधव से न तो संपर्क करने दिया और न ही किसी को जेल में उनसे मिलने दिया गया। जाधव को वकील की सुविधा भी नहीं दी गई, जो वियना संधि का उल्लंघन है।
 
मामले की सुनवाई के दौरान भारत ने न्यायालय के समक्ष मजबूती से अपना पक्ष रखते हुए कहा कि पाकिस्तान ने 'गैरजिम्मेदाराना' व्यवहार किया है तथा अंतरराष्ट्रीय संधियों और समझौतों का उल्लंघन किया है। भारत ने पहले भी पाकिस्तान पर वियना संधि के अनुच्छेद 36 (1) (बी) के उल्लंघन का आरोप लगाया था जिसके तहत पाकिस्तान को भारतीय नागरिक की गिरफ्तारी के बारे में भारत को अविलंब सूचना देनी चाहिए।
 
भारत ने कहा कि जाधव को कथित रूप से 3 मार्च 2016 को गिरफ्तार किया गया और पाकिस्तान के विदेश सचिव ने इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायुक्त को 25 मार्च को इस गिरफ्तारी की जानकारी दी। पाकिस्तान ने इस पर कोई सफाई भी नहीं दी कि जाधव की गिरफ्तारी की जानकारी देने में 3 सप्ताह से अधिक समय क्यों लगा?
 
पाकिस्तान ने जासूसी का आरोप लगाते हुए जाधव को फांसी की सजा सुनाई थी। पाकिस्तान का दावा है कि जाधव को पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने 3 मार्च 2016 को जासूसी और आतंकवाद के आरोप में बलूचिस्तान से गिरफ्तार किया था। पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने जासूसी के आरोप में जाधव को अप्रैल 2017 में मौत की सजा सुनाई थी जिसके खिलाफ भारत ने मई 2017 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में अपील की थी।
 
इस मामले में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश अब्दुल अहमद यूसुफ (सोमालिया) ने फैसला सुनाया। भारत ने मई 2017 में इस न्यायालय में पाकिस्तानी अदालत के फैसले के खिलाफ अपील की थी जिसके बाद एक लंबी सुनवाई चली। भारत की तरफ से वरिष्ठ अधिकवक्ता हरीश साल्वे ने जाधव की पैरवी की थी।
 
भारत ने इस आरोप का सिरे से खंडन किया है कि जाधव एक जासूस हैं और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में अपील की है कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करते हुए जाधव को राजनयिकों से भी मिलने नहीं देता है। यह संधि वर्ष 1964 में लागू हुई थी जिसके तहत राजनयिकों को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है और न ही उन्हें किसी तरह की हिरासत में रखा जा सकता है।
 
गौरतलब है कि इस मामले में भारत की तरफ से लगातार दबाव बनाने के बाद पाकिस्तान ने जाधव की मां और पत्नी को मुलाकात करने की अनुमति दी थी लेकिन जब वे उनसे मिलने पहुंचीं तो उनके साथ बदसलूकी की गई थी।
 
पाकिस्तान ने जाधव पर हुसैन मुबारक पटेल नाम से पाकिस्तान में रहने और भारत के लिए जासूसी करने का आरोप लगाया गया था। पाकिस्तान की एक सैन्य अदालत ने अप्रैल 2017 में जासूसी और आतंकवाद के मामले में उन्हें फांसी की सजा सुनाई थी। पाकिस्तानी सेना ने दावा किया था कि जाधव ने अपना जुर्म कबूल कर लिया है।
 
पाकिस्तानी अदालत के इस फैसले को भारत ने मई 2017 में आईसीजे में चुनौती दी जिसके बाद जुलाई 2018 में जाधव की सजा पर रोक लगा दी गई।
 
उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मोहम्मद फैसल ने गत सप्ताह कहा था कि पाकिस्तान आईसीजे का फैसला स्वीकार करेगा। आईसीजे को संयुक्त राष्ट्र के चार्टर द्वारा जून 1945 में स्थापित किया गया था और इसने अप्रैल 1946 में काम करना शुरू किया था। यह संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक हिस्सा है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का मुख्यालय नीदरलैंड्स के हेग में पीस पैलेस में है।
 
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय संयुक्त राष्ट्र के 6 प्रमुख इकाइयों में से एकमात्र ऐसी इकाई है, जो कि न्यूयॉर्क (अमेरिका) में स्थित नहीं है। इसका अधिवेशन छुट्टियों को छोड़कर हमेशा चालू रहता है। इस न्यायालय के प्रशासन में होने वाला खर्च संयुक्त राष्ट्र उठाता है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में न्यायाधीश संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद द्वारा 9 साल के कार्यकाल के लिए चुने जाते हैं और इनको दोबारा भी चुना जा सकता है। (वार्ता)

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