संयुक्त राष्ट्र। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधार का आह्वान करते हुए भारत ने शुक्रवार को कहा कि संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष इकाई तभी प्रभावी समाधान दे सकती है, जब वह ताकतवरों की यथास्थिति की रक्षा करने के बजाय उन लोगों को अपनी बात रखने के लिए मौका दे, जिन्हें यह नहीं मिल पाता है। भारत ने साथ ही इसको लेकर आगाह किया कि कुछ का संकीर्ण प्रतिनिधित्व और विशेषाधिकार इसकी विश्वसनीयता के लिए गंभीर चुनौती उत्पन्न करता है।
विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने कहा, बहुपक्षवाद के लिए सुधार के भारत के आह्वान के मूल में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार है और यह आज की समकालीन वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करता है। जब शक्ति का ढांचा एक बीते युग की यथास्थिति को प्रतिबिंबित करना जारी रखता है, तो वह समकालीन भू-राजनीतिक वास्तविकताओं की पहचान की कमी को भी प्रतिबिंबित करना शुरू कर देते हैं।
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के प्रबंधन : बहुपक्षवाद बरकरार रखने और संयुक्त राष्ट्र-केंद्रित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था पर सुरक्षा परिषद की उच्चस्तरीय बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि परिषद तभी प्रभावी समाधान दे सकती है जब वह ताकतवरों की यथास्थिति की रक्षा करने के बजाय उन लोगों को अपनी बात रखने का मौका दे, जिन्हें यह नहीं मिल पाता है।
उन्होंने रेखांकित किया कि बहुपक्षीय संस्थानों को उनकी सदस्यता के लिए अधिक जवाबदेह बनाया जाना चाहिए, वह खुली होनी चाहिए और इसमें विभिन्न दृष्टिकोणों का स्वागत होना चाहिए और नई आवाजों का संज्ञान लेना चाहिए।
श्रृंगला ने कहा, परिषद को इस तरह का बनाया जाना चाहिए, ताकि वह विकासशील देशों का अधिक प्रतिनिधित्व करे, अगर इसे पूरी दुनिया को नेतृत्व प्रदान करने की अपनी क्षमता में विश्वास कायम रखना है तो।भारत, वर्तमान में परिषद का एक गैर-स्थाई सदस्य है जिसका कार्यकाल दो साल का होता है।
भारत ने उच्चस्तरीय बैठक में कहा कि संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता 1945 से लगभग चार गुना बढ़कर 193 सदस्यों की हो गई है। भारत ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के निर्णय लेने वाले अंग में संकीर्ण प्रतिनिधित्व और कुछ के विशेषाधिकार इसकी विश्वसनीयता और प्रभावशीलता के लिए एक गंभीर चुनौती है।
श्रृंगला ने पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र की 75वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन का उल्लेख किया था, जिसमें उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुधार का एक स्पष्ट आह्वान किया था और पूछा था कि भारत को संयुक्त राष्ट्र के निर्णय लेने वाली ढांचे से कब तक बाहर रखा जाएगा।(भाषा)