विचित्र परंपरा! मुर्दों को सड़ने के लिए छोड़ देते हैं यहां

Webdunia
इंडोनेशिया के बाली द्वीप के एक गांव बाली आगा में एक परम्परा के तहत गांववासी अपने मृत परिजनों को एक पुराने पेड़ के नीचे खुले में सड़ने के लिए छोड़ देते हैं। लेकिन कहा जाता है कि इस पेड़ के नीचे रखे जाने के बाद शवों से सड़ने की कोई दुर्गंध नहीं आती है।
 
ट्रूनयान, बाली का श्मशान एक निर्जन स्थान पर यहां है जहां पर गांववासी अपने मृतकों को डोंगियों में रखकर लाते हैं। यह गांव उत्तरपूर्वी बाली में निर्जन स्थान पर है जहां हिंदू अपने परिजनों का अंतिम संस्कार करते हैं।
 
बीबीसी ट्रेवल में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि यह स्थान सीधे खड़ी ढलानों से‍ घिरा है और यह क्रेटर झील के विस्तृत किनारों पर स्थित है। यहां ट्रूनयान निवासियों के बारे में कहा जाता है कि वे ईस्वी सन 911 से यहां रह रहे हैं। बाली के इस हिस्से के निवासी एक विचित्र किस्म के हिंदूइज्म में विश्वास करते हैं और यहां के गांवों के समूहों के मुखिया की अपनी धार्मिक परम्पराएं और मान्यताएं हैं। टेंगानन बाली आगा का सबसे प्रसिद्ध गांव हैं जहां पर विवाह योग्य लड़कियों के लिए बांस से बनी नावें बनाई जाती हैं और उनके लिए जादुई कपड़ा बुना जाता है।
 
यहां दो प्रकार के श्मशान गृह हैं जिनमें बांसों की लकड़ियों से गुफाएं बना दी जाती हैं जो कि 11 ताड़ के पेड़ों से घिरी होती हैं। इनमें एक श्मशान गृह उन लोगों के लिए होता है जो कि जीवन पूरा होने पर मर जाते हैं। कहने का अर्थ है कि मरने से पहले उनका विवाह हो चुका होता है लेकिन जो लोग विवाह के बिना ही मर जाते हैं, उन्हें झील में डाल दिया जाता है या फिर जमीन में गाड़ दिया जाता है। ट्रूनयान गांव में एक बड़ा मंदिर होता है जिनमें 11 पैगोडाज बने होते हैं जिनमें 11 शवों को श्मशान गृह में रख दिया जाता है। यह एक खतरनाक स्थान पर स्थित है। 
 
एक बड़ी क्रेटर झील के किनारों पर सक्रिय ज्वालामुखी हैं जिनमें आग और पानी से खतरा बना रहता है। ज्वालामुखी का नाम माउंट बटूर है जो कि सदियों से यहां जीवन और मौत को आकार देता रहा है। ज्वालामुखी होने के कारण यहा लोगों को जलाना समस्या पैदा कर सकता है। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से ज्वालामुखी क्रोधित हो सकता है। ज्वालामुखी को हिंदू देवता ब्रह्मा का प्रतीक माना जाता है। चूंकि मर जाने पर ही शवों को यहां लाया जाता है, इसलिए ऐसा भी होता है कि कभी कभी शवों को घरों में कुछेक दिनों के लिए रख लिया जाता है। 
 
चूंकि घरों में रखे शवों में से बदबू आती है, इसलिए शवों को झील के किनारे गांव के जादुई पेड़-तारू मेन्यान (सुगंधित पेड़) के नीचे एक छाते से ढंककर रख दिया जाता है। अक्टूबर माह में यहां खुले मंच बनाए जाते हैं और गांव के युवा ब्रुटुक नामक नाच में भाग लेते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस नाच से गांव और गांववासी सुरक्षित हो जाते हैं और मंदिर पवित्र हो जाते हैं। यहां के गांववासी अपने मृतकों को लेकर कोई शोक नहीं मनाते हैं और इन लोगों का दुख केवल परिवार तक सीमित रहता है। अगर इनसे पूछा जाता है कि ऐसा क्यों, तो उनका उत्तर होता है कि यह हमारी संस्कृति है। 
 
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