'MTCR' में प्रवेश का रास्ता साफ, NSG अगला पड़ाव

Webdunia
बुधवार, 8 जून 2016 (17:49 IST)
वॉशिंगटन। भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने चौथे अमेरिकी दौरे पर 34 देशों वाले ‘मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम’ में भारत के प्रवेश का रास्ता साफ कर दिया है। पांच देशों की यात्रा के दौरान मोदी इस समय भी वॉशिंगटन में हैं। मंगलवार को उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात की। राजनयिकों का कहना है कि 34 देशों वाले ग्रुप में भारत की सदस्यता पर विरोध जताने की समय सीमा खत्म हो चुकी है और किसी भी सदस्य देश ने इस पर विरोध नहीं जताया।
इसके चलते भारत दूसरे देशों को अपनी मिसाइल टेक्नोलॉजी दे सकेगा और अमेरिका से प्रीडेटर ड्रोन्स खरीद सकेगा। प्रीडेटर ड्रोन्स मिसाइल टेक्नोलॉजी के बल पर अमेरिका ने अफगानिस्तान में तालिबान के ठिकानों को तबाह किया है। भारत ने पिछले साल (एमसीटीआर) की सदस्यता के लिए आवेदन किया था, लेकिन कुछ देशों ने इसका विरोध किया था, पर अब ओबामा प्रशासन के मजबूत समर्थन से अमेरिका भारत को 3 अन्य एक्सपोर्ट कंट्रोल रिजीम (ग्रुप) में एंट्री दिलाना चाहता है। ये तीन ग्रुप ‘न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (NSG)’, ‘ऑस्ट्रेलिया ग्रुप’ और ‘वैसेनार अरेंजमेंट’ हैं।
 
विदित हो कि ऑस्ट्रेलिया ग्रुप केमिकल वेपन्स और वैसेनार अरेंजमेंट छोटे हथियारों वाला ग्रुप है।
पिछले 12 मई को जब भारत ने 48 सदस्यीय NSG में सदस्यता के लिए आवेदन किया था तब 
चीन और पाकिस्तान ने भारत के एनएसजी प्रवेश का विरोध किया था। 
 
भारत को हासिल होंगे ये लाभ : 
इससे भारत को दुनिया की बेहतरीन टेक्नोलॉजी हासिल करने की पहुंच मिल जाएगी। भारत सितंबर-अक्टूबर में होने वाली प्लेनरी बैठक में सदस्यता हासिल करेगा। एमसीटीआर के चेयरमैन रोनाल्ड वीज अगले महीने भारत के दौरे पर भी आ सकते हैं। पिछले कुछ सालों में जहां कई देशों ने भारत के एमटीसीआर में आने का समर्थन किया है, लेकिन इसने अपने दावे को मजबूत बनाए रखने के लिए कभी भी अपने मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम में एमटीसीआर गाइडलाइन से अलग हटकर कोई काम नहीं किया।
 
एमटीसीआर क्या है? 
एमटीसीआर नामक संगठन की स्थापना 1987 में हुई थी। शुरुआत में इसमें G-7 देश अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, जापान, इटली, फ्रांस और ब्रिटेन शामिल थे और चीन अभी भी इसका सदस्य नहीं है, लेकिन उसने इसकी गाइडलाइन मानने पर रजामंदी जताई है। इस संगठन का उद्देश्य बैलिस्टिक मिसाइल को बेचने की सीमाएं तय करना है। अब इस ग्रुप में 34 देश शामिल हैं। संगठन 
मुख्य रूप से 500 kg पेलोड ले जाने वाली और 300 किमी तक मार करने वाली मिसाइलों और अनमैन्ड एरियल व्हीकल टेक्नोलॉजी (ड्रोन) के खरीदे-बेचे जाने पर नियंत्रण रखता है।
 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिकी प्रवास के दौरान अब तक वह रियायतें हासिल कर ली हैं जिन्हें कोई भी भारतीय प्रधानमंत्री हासिल नहीं कर सका। अमेरिकी दौरे पर भारत और अमेरिका के बीच कई महत्वपूर्ण समझौते होंगे। इस समझौते के तहत भारत को मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) नामक व्यवस्था में प्रवेश के तहत इससे भारत को यह लाभ होगा कि यह दूसरे देशों को अपनी मिसाइल तकनीक दे सकेगा और अमेरिका से प्रीडेटर ड्रोन्‍स खरीद सकेगा। उल्लेखनीय है कि इसी प्रीडेटर ड्रोन्स मिसाइल टेक्नोलॉजी के बल पर अमेरिका ने अफगानिस्तान में तालिबान के ठिकानों को तबाह किया है। 
 
मीडिया में प्रकाशित खबरों के मुताबिक, मोदी के अमेरिकी प्रवास के दौरान 7-8 जून को भारत को  मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) संगठन में शामिल किए जाने का ऐलान हो सकता है। इसमें शामिल होने के लिए भारत ने पिछले साल आवेदन किया था लेकिन तब कुछ देशों ने भारत का विरोध किया था। अगर भारत को इस बार एमटीसीआर मेंबरशिप हासिल हो सकी है, तो इसका श्रेय ओबामा एडमिनिस्ट्रेशन के जबरदस्त भारतीय समर्थन को दिया जा सकता है। 
 
क्या है प्रीडेटर ड्रोन?
जनरल एटॉमिक्स कंपनी द्वारा बनाए गए प्रीडेटर ड्रोन्स अनमैन्ड एरियल व्हीकल (UAV) होते हैं जिन्हें जनरल एटॉमिक्स एमक्यू-1 प्रीडेटर भी कहा जाता है। इनका सबसे पहले प्रयोग यूएस एयरफोर्स और सीआईए ने किया था।1990 के दशक में अमेरिका ने इनका आधिकाधिक प्रयोग किया। इनकी मदद से अफगानिस्तान-पाकिस्तान में तालिबान ठिकानों को खत्म किया जा सका। 
 
नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) की फौजों ने बोस्निया, सर्बिया, इराक वॉर, यमन, लीबियाई सिविल वार में भी इनका इस्तेमाल किया है। प्रीडेटर के अपडेटेड वर्जन में हेलफायर मिसाइल के साथ कई अन्य वेपन्स भी लोड होते हैं। प्रीडेटर में कैमरा और सेंसर्स भी लगे होते हैं जो इलाके की पूरी मैंपिंग में खासे मददगार होते हैं।
 
मोदी जब पिछले मार्च में न्यूक्लियर समिट के लिए अमेरिका गए थे तो ओबामा ने उन्हें बाइलैटरल विजिट के लिए न्योता दिया था। इस बार मोदी अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को आज रात को भी संबोधित करेंगे।
 
कौन-कौन से समझौते होंगे?
दोनों देशों की बैठक के दौरान डिफेंस, सिक्युरिटी, एनर्जी जैसे सेक्टर्स में हुए विकास की समीक्षा की जाएगी। अमेरिका-भारत में डिफेंस सेक्टर और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर समझौते होंगे। मोदी अमेरिकी कंपनियों के CEOs से मुलाकात करेंगे।
 
विदित हो कि मोदी की अमेरिका की यह चौथी विजिट है और मोदी-ओबामा की सातवीं मुलाकात, लेकिन मोदी को पहली बार स्टेट गेस्ट बनाया गया है। इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि ओबामा का दूसरा कार्यकाल जनवरी में खत्म हो रहा है।
 
इस बार मोदी कांग्रेस (हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव और सीनेट) में भी भाषण देंगे। वॉशिंगटन में 'कार्नेगी एन्डॉउमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस' के विशषज्ञ एश्ले टेलिस के मुताबिक, '2014 में मोदी के पीएम बनने के बाद दोनों नेताओं की यह 7वीं बैठक होगी जो अपने आप में एक अहम बात है।
 
टेलिस का मानना है कि चीन को काउंटर करने के लिए अमेरिका, भारत को एक अहम पार्टनर मानता है। इस कारण दोनों देशों के बीच मिलिट्री को-ऑपरेशन को लेकर समझौते हो सकते हैं। साथ ही, अमेरिका भारत को हाई टेक्नोलॉजी वेपन्स देने पर सहमति जता सकता है। दोनों देशों के बीच ज्वाइंट मिलिट्री एक्सरसाइज को लेकर समझौता हो सकता है। वहीं कम्युनिकेशन और डाटा ट्रांसफर को लेकर बातचीत हो सकती है।
 
2005 के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री का यूएस कांग्रेस को संबोधित करने का पहला अवसर होगा। ऐसा करने वाले मोदी 6th और 2005 के बाद पहले पीएम होंगे। अमेरिकी स्पीकर ऑफिस ने बताया कि 10 दिसंबर 1824 को पहली बार किसी विदेशी पीएम ने यूएस कांग्रेस को संबोधित  किया था। भारत से 1949 में पंडित नेहरू, 1985 में राजीव गांधी, 1994 में नरसिंह राव, 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी और 2005 में मनमोहन सिंह ने अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित किया है।

अमेरिका से क्या हासिल होगा?
विदेशी मामलों के विशेषज्ञों का कहना है, 'चीन न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) में भारत के प्रवेश का विरोध कर रहा है, जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जापान भारत के समर्थन में हैं। उम्मीद है कि मोदी अपनी स्विट्जरलैंड और मैक्सिको यात्रा के दौरान भी इन देशों का समर्थन हासिल करेंगे। चूंकि परमाणु हथियार बनाने में इस्तेमाल होने वाले सामान की सप्लाई पर एनएसजी का कंट्रोल है। अगर भारत को इसकी सदस्यता मिल जाती है तो इससे भारत को यूरेनियम मिलने में आसानी रहेगी।'
 
एनएसजी की भारत की सदस्यता के संबंध में चीन के विरोध के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि मैंने एनएसजी का हिस्सा होने के नाते भारत को समर्थन का संकेत दिया है। ओबामा ने इस बात पर जोर दिया कि भारत को प्रौद्योगिकी की जरूरत है, जो उसकी प्रगति और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण हो। महत्वपूर्ण क्षेत्रीय विषयों पर चर्चा होने की जानकारी देते हुए कहा कि अमेरिका और भारत शांति और विकास का साझा दृष्टिकोण रखते हैं और मानते हैं कि जटिल मुद्दों का समाधान कूटनीतिक तरीके से होना चाहिए। 34 देशों वाले मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) में भारत के प्रवेश होने के बाद भारत उच्च तकनीक मिसाइलें खरीद और बेच सकेगा। भारत ब्रह्मोस जैसी अपने उच्च तकनीकी मिसाइलों को मित्र देशों को बेच सकेगा।
 
एनएसजी में प्रवेश की कोशिश : 
एनएसजी पर भारत को यह समर्थन 48 देशों के इस समूह की एक महत्वपूर्ण बैठक से पहले मिला है। चीन इस विषय पर आम सहमति की बात करता रहा है। एनएसजी परमाणु क्षेत्र से संबंधित गंभीर मुद्दों पर गौर करता है। इसके सदस्यों को परमाणु तकनीक में कारोबार व निर्यात की अनुमति होती है। इसकी सदस्यता से भारत को अपने परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को असरदार तरीके से बढ़ाने में मदद मिलेगी।
 
एनएसजी न्यूक्लियर सप्लायर देशों का एक ग्रुप है। इसकी स्थापना 1974 में हुई थी। एनएसजी में अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन समेत 48 सदस्य हैं। एनएसजी का मकसद परमाणु हथियार के प्रसार को रोकना है। इसके अलावा शांतिपूर्ण काम के लिए ही परमाणु सामग्री और तकनीक की सप्लाई की जाती है। न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप आम सहमति से काम करता है। सबसे अहम बात एनएसजी सदस्य के लिए परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर जरूरी है। आपको बता दें भारत ने अब तक एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किया है।
 
भारत के लिए क्यों जरूरी है एनएसजी की सदस्यता? 
देश में ऊर्जा की मांग पूरी करने के लिए भारत का न्यूक्लिटर सप्लायर ग्रुप में प्रवेश जरूरी है। अगर भारत को एनएसजी की सदस्यता मिल जाती है तो परमाणु तकनीक मिलने लगेगी। परमाणु तकनीक के साथ भारत को यूरेनियम भी बिना किसी विशेष समझौते के मिलेगा। इतना ही नहीं एनएसजी की मेंबरशिप मिलने पर परमाणु बिजली संयंत्रों के कचरे के निपटारे में भी सदस्य राष्ट्रों से मदद मिलेगी। आपको बता दें कि फ्रांस की कंपनी महाराष्ट्र के जैतापुर में परमाणु बिजली प्लांट लगा रही है जबकि अमेरिकी कंपनियां गुजरात और आंध्र प्रदेश में परमाणु संयंत्र लगाने की तैयारी में है।
 
चीन-अमेरिका वार्ता :  
दक्षिण चीन सागर के विवाद को लेकर बढ़ते मतभेदों के बीच चीन और अमेरिका बेजिंग में उच्च स्तरीय सालाना सामरिक और आर्थिक वार्ता में हिस्सा लेंगे। इसमें भारत के एनएसजी में प्रवेश के मुद्दे पर मतभेदों सहित कई मुद्दों पर चर्चा किए जाने की उम्मीद है। 
 
इसे दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच सबसे व्यापक वार्ता बताया जा रहा है।
इसमें अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी सहित दोनों पक्षों के शीर्ष अधिकारी हिस्सा लेंगे। जहां दोनों देशों के बीच विवाद का बड़ा विषय बने दक्षिण चीन सागर (एससीएस) मुद्दे के दो दिनों की वार्ता में छाए रहने की संभावना है, वहीं ताइवान, तिब्बत के मुद्दे और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत को शामिल किए जाने के मुद्दे सहित कई दूसरे मुद्दों के भी वार्ता में शामिल होने की संभावना है।
 
अमेरिका ने 48 सदस्यीय एनएसजी में भारत को शामिल करने का पुरजोर समर्थन किया है जबकि चीन जोर दे रहा है कि परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत न करने वाले देशों को शामिल करने के मुद्दे पर सदस्यों के बीच आम सहमति होनी चाहिए। भारत ने एनपीटी को भेदभावपूर्व बताते हुए अब तक उस पर दस्तखत नहीं किया है। अधिकारियों को मुद्दे का हल निकलने की उम्मीद है क्योंकि चीन-अमेरिका वार्ता नौ जून को वियना और 24 जून को सोल में होने वाली एनएसजी की महत्वपूर्ण समग्र बैठकों से पहले हो रही है जिसमें यह मुद्दा उठ सकता है।
 
पाकिस्तान का अड़ंगा : 
भारत के अपना मामला आगे बढ़ाने पर पाकिस्तान ने भी सदस्यता के लिए आवेदन दिया है और खबरें हैं कि चीन अपने सदाबहार साथी का मामला आगे बढ़ा रहा है। भारत ने उच्चस्तरीय कूटनीति के हिस्से के तौर पर शीर्ष चीनी नेतृत्व के साथ यह मुद्दा उठाया है खासकर पिछले महीने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के चीन दौरे में यह मुद्दा प्रमुखता से उठाया गया था। हालांकि चीन ने कहा कि अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर न करने वाले देशों को लेकर एनएसजी सदस्यों में मतभेद बना हुआ है।
 
चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा, गैर एनपीटी देशों को शामिल करने के मुद्दे पर एनएसजी में चर्चा चल रही है और एनएसजी सदस्य इस पर बंटे हुए हैं। मंत्रालय ने नए सदस्यों के एनपीटी पर दस्तखत के मुद्दे पर अपना रुख बरकरार रखते हुए कहा, एनएसजी अंतरराष्ट्रीय अप्रसार व्यवस्था का अभिन्न हिस्सा है।
 
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