‘अमन के मसीहा’ सत्यार्थी और मलाला को मिला नोबेल

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ओस्लो। भारतीय उप महाद्वीप के नाम कामयाबी की बड़ी इबारत लिखते हुए ‘अमन के मसीहा’ कैलाश सत्यार्थी और  मलाला यूसुफजई ने आज इस साल के 'शांति का नोबेल पुरस्कार' ग्रहण किया।
 



नार्वे की नोबेल समिति के प्रमुख थोर्बजोर्न जगलांद ने पुरस्कार प्रदान करने से पहले अपने संबोधन में कहा, ‘सत्यार्थी और मलाला निश्चित तौर पर वही लोग हैं, जिन्हें अलफ्रेड नोबेल ने अपनी वसीयत में शांति का मसीहा कहा था।’ 

उन्होंने कहा, ‘एक लड़की और एक बुजुर्ग व्यक्ति, एक पाकिस्तानी और दूसरा भारतीय, एक मुस्लिम और दूसरा हिंदू, दोनों उस गहरी एकजुटता के प्रतीक हैं, जिसकी दुनिया को जरूरत है। देशों के बीच भाईचारा..।’ सत्यार्थी (60) ने इक्लेट्रिकल इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर बाल अधिकार के क्षेत्र में काम करना आरंभ किया और वह ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ नामक गैर सरकारी संगठन का संचालन करते हैं।
 
सत्यार्थी ने कहा, ‘जब एक सप्ताह का वैश्विक सैन्य खर्च ही सभी बच्चों को कक्षाओं तक लाने के लिए पर्याप्त है तो मैं यह स्वीकार करने से इंकार करता हूं कि यह विश्व बहुत गरीब है।’ उन्होंने कहा, ‘मैं यह भी मानने से इंकार करता हूं कि गुलामी की जंजीरे कभी भी आजादी की तलाश से मजबूत हो सकती हैं।’ 
 
पुरस्कार समारोह में मौजूद दर्शकों में नार्वे के राजा हेराल्ड-पंचम और पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी शामिल थे। ओस्लो सिटी हॉल में पुरस्कार ग्रहण करने के बाद सत्यार्थी ने कहा, ‘चलिए हम लोगों में दया भाव को जगाते हैं और उसे वैश्विक आंदोलन में तब्दील करते हैं। हम दया भाव को वैश्वीकृत करते हैं। निष्क्रिय दया भाव नहीं, बल्कि परिवर्तनकारी दया भाव से ही न्याय, समता और स्वतंत्रता मिल सकती है।’
 
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को उद्धृत करते हुए सत्यार्थी ने कहा, ‘अगर हमें इस दुनिया में वास्तविक शांति की सीख देनी है तो हमें इसे बच्चों के साथ शुरू करना होगा। मैं विनम्रता से आग्रह करता हूं कि चलिए हम अपने बच्चों के लिए दया भाव के जरिए विश्व को एकजुट करते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘मैं यहां गुमनामी की आवाज, बेगुनाह चीख, और अदृश्य चेहरे का प्रतिनिधत्व करता हूं। मैं यहां अपने बच्चों की आवाज और सपनों को साझा करने आया हूं क्योंकि वे हमारे बच्चे हैं।’ 
 
सत्यार्थी ने वहां उपस्थित दर्शकों से कहा कि वे अपने भीतर बच्चे को महसूस करें और उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों के खिलाफ अपराध के लिए सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं है।
 
यहां एक भव्य समारोह में सत्यार्थी को मलाला यूसुफजई के साथ संयुक्त रूप से शांति का नोबेल दिया गया है। तालिबान के हमले में बची 17 साल की मलाला लड़कियों की शिक्षा की पैरोकारी करती हैं। शांति के नोबेल के लिए दोनों के नामों का चयन नोबेल शांति पुरस्कार समिति ने बीते 10 अक्टूबर को किया था।
 
सत्यार्थी और मलाला को नोबेल का पदक मिला, जो 18 कैरेट ग्रीन गोल्ड का बना है और उस पर 24 कैरेट सोने का पानी चढ़ा हुआ है तथा इसका कुल वजन करीब 175 ग्राम है। वे 11 लाख की पुरस्कार राशि को साझा करेंगे।
 
सत्याथी के गैर सरकारी संगठन बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) ने भारत में कारखानों और दूसरे कामकाजी स्थलों से 80,000 से अधिक बच्चों को बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराया।
 
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के मुताबिक दुनिया भर में 16.8 करोड़ बाल श्रमिक हैं। माना जाता है कि भारत में बाल श्रमिकों का आंकड़ा 6 करोड़ के आसपास है।
 
मलाला को पिछले साल भी शांति के नोबेल के लिए नामांकित किया गया था। उन्होंने तालिबान के हमले के बावजूद पाकिस्तान सरीखे देश में बाल अधिकारों और लड़कियों की शिक्षा के लिए अपने अभियान को जारी रखने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताते हुए अदम्य साहस का परिचय दिया।
 
इस मौके पर मलाला ने कहा, ‘मैं कैलाश सत्यार्थी के साथ इस पुरस्कार को हासिल करके सम्मानित महसूस करती हूं जो लंबे वक्त से बाल अधिकारों के मसीहा रहे हैं। तकरीबन मेरी उम्र से दो गुना समय से। मैं इसको लेकर खुश हूं कि हम खड़े हो सकते हैं और दुनिया को दिखा सकते हैं कि भारतीय एवं पाकिस्तानी अमन में एकजुट हो सकते हैं और बाल अधिकारों के लिए मिलकर काम कर सकते हैं।’ 
 
उन्होंने कहा, ‘यह पुरस्कार मेरे लिए नहीं है। यह उन गुमनाम बच्चों के लिए है जो तालीम चाहते हैं। यह उन डरे हुए बच्चों के लिए है जो अमन चाहते हैं। यह उन बेजुबान बच्चों के लिए है जो बदलाव चाहते हैं।’ मलाला ने कहा, ‘मैं यहां उनके अधिकार के लिए, उनकी आवाज बुलंद करने के लिए खड़ी हूं। यह उन पर रहम दिखाने का वक्त नहीं है। यह कार्रवाई करने का वक्त है ताकि यह आखिरी बार हो जब हम किसी बच्चों को तालीम से महरूम देखें।’ 
 
संयुक्त राष्ट्र में अपने संबोधन को याद करते हुए मलाला ने कहा, ‘एक बच्चा, एक शिक्षक, एक कलम और एक किताब दुनिया को बदल सकते हैं।’ उन्होंने नोबेल पुरस्कार राशि को मलाला कोष को समर्पित कर दिया ताकि बच्चियों की शिक्षा में मदद मिल सके।
 
मलाला ने कहा, ‘सबसे पहले यह पैसा उस जगह जाएगा, जहां मेरा दिल है। पाकिस्तान में स्कूल का निर्माण कराने के लिए-खासकर मेरे गृहनगर स्वात और शांगला में जाएगा।’ उन्होंने कहा कि मार्टिन लूथर किंग, नेल्सन मंडेला, मदर टेरेसा और आंग सान सू ची भी इसी मंच पर खड़े हुए थे और उन्हीं कदमों की उम्मीद जताई जिसको सत्यार्थी और वह अब तक उठाते रहे हैं। इससे बदलाव- स्थाई बदलाव आएगा। (भाषा)
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