36 भारतीय गिरमिटियायों ने रखी 'मज़बूत' मॉरिशस की नींव

Webdunia
शुक्रवार, 13 मार्च 2015 (01:12 IST)
-शोभना जैन       
 
पोर्ट लुई (मॉरीशस)। ठीक 180 साल पहले की एक गहराती शाम का सन्नाटा... कलकत्ता से एम.वी. एटलस समुद्री जहाज पर सवार होकर, उथल-पुथल भरे हिंद महासागर से गुजरते हुए एक अजनबी देश मे डरे-सहमे, बदहाल 36 भारतीयों का एक जत्था मॉरीशस की पोर्ट लुई बंदरगाह से उतरकर कीचड़ सनी पथरीली सोलह सीढ़ियों पर डगमगाते कदमो से आगे बढ़ रहा है...देश पराया, मंजिल का पता नही, रोजी-रोटी की तलाश मे सात समंदर पार आ तो गए लेकिन चारों और पसरे अंधेरे में वे सब एक दूसरे का हाथ थामे बंदरगाह की सोलह सीढ़ियों से लड़खड़ाते, डगमग़ाते आगे बढ़ रहे हैं।
ये थे भारत से आए गिरमिटिया मजदूर लेकिन धीरे-धीरे इन्ही 'गिरमिटियाओ' ने सोलह सीढ़ियों से उतरकर अपने डगमगाते कदमों को मजबूती से जमीन पर रखा और एक मजबूत इरादे से अनजानी सी राह की और आगे बढ़े और इन कदमों ने मॉरीशस का इतिहास बदला, उसे एक मजबूत पहचान दिलवाई।
 
बीमारी, अभाव तथा अन्याय से जुझते हुए उन्होंने अपने अनथक संघर्ष से एक नए मजबूत तथा विश्वास भरे नए मॉरीशस को रचा। खुद भी आगे बढ़े और मजबूत इरादों और कड़ी मेहनत के बल पर एक मजबूत देश की बुनियाद रखी और अपने लिए बुना इन्होने एक सुंदर भविष्य। 
 
मॉरीशस यात्रा पर आए प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार को मॉरीशस और भारत के बीच मित्रता के एक नए अध्याय के शुभारंभ के बीच 'आप्रवासी भारतीयो' के इस जज्बे को सलाम किया। आज इस घाट पर जाकर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए प्रधानमंत्री कहा कि 'आप्रवासी घाट'- अदम्य साहस की मानवीय भावना को नमन है।
 
उन्होने कहा 'यह घाट भारत और मॉरीशस के स्थाई संबंधो का प्रतीक है। हमारा सौभाग्य है कि मॉरीशस हमारा मित्र है अगर कोई ऐसा देश है, जिसका हमारे उपर पूरा अधिकार है तो वह मॉरीशस है।'
 
दो नवंबर 1834 की उस शाम के बाद से शुरू हुए इस सिलसिले के बाद से इस तट पर लगभग 180 वर्षों तक ढाई लाख भारतीयों बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा कुछ दक्षिण भारतीय राज्यों से उतरने का तांता सा लग गया और शुरू हुई पराए देश में दर्द और संघर्ष की कहानियां। कहानियां एक सुंदर भविष्य बुनने की। इन्ही सोलह सीढ़ियों का घाट जो पहले 'कुली घाट' 'कहलाता था अब 'आप्रवासी घाट 'कहलाता है।
 
आप्रवासी घाट मॉरीशस की पहचान का एक महत्वपूर्ण चिह्न है क्योंकि 70 फ़ीसदी से ज़्यादा आबादी के पूर्वज इसी आप्रवासी डिपो से होकर यहां पहुंचे थे। गौरतलब है कि मॉरीशस की लगभग 70 प्रतिशत आबादी भारतवंशी है। इस आप्रवासी घाट की 'वो सोलह सीढ़ियां' एक स्मृति स्थल के रूप में इस घाट पर संजो कर रखी गई हैं। यूनेस्को ने इस घाट को विश्व विरासत स्थलों की सूची में शामिल किया है। 
 
आप्रवासी घाट में आज भी कुली डिपो, आप्रवासी डिपो की इमारतें संघर्ष के प्रतीक स्वरूप संजोकर रखी गई हैं। इनके रहने के लिए बनी झोपड़ियां, रसोई, शौचालय और अस्पताल की इमारत के अलावा 16 सीढ़ियां सब की सब। ये मज़दूर ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान गन्ने की खेती में 'मुफ़्त' मज़दूरों के रूप मे या यूं कहे बेगार करने के लिए लाए गए थे क्योंकि मॉरीशस के फलते-फूलते चीनी उद्योग में बड़ी संख्या में मज़दूरों की ज़रूरत थी।
 
साल 2006 में यूनेस्को में स्थाई प्रतिनिधि भास्वती मुखर्जी, जो वर्ल्ड हैरिटेज कमेटी में भारत की प्रतिनिधि भी थे, ने मॉरीशस और अफ़्रीकी समूह की ओर से आप्रवासी घाट को वर्ल्ड हैरिटेज साइट का दर्जा देने की मांग की थी..मॉरिशस के जाने माने साहित्यकार अभिमन्यु अनत की कविता यहां के आप्रवासी घाट की एक दीवार पर उद्धृत है।
 
आज अचानक
हिन्द महासागर की लहरों से तैर कर आई
गंगा की स्वर-लहरी को सुन 
फिर याद आ गया मुझे वह काला इतिहास
उसका बिसारा हुआ
वह अनजान आप्रवासी...
बहा-बहाकर लाल पसीना
वह पहला गिरमिटिया इस माटी का बेटा
जो मेरा भी अपना था, तेरा भी अपना
 
उन्नीसवीं सदी में मजदूरों के रूप में भारत से गए इन मजदूरों के वंशज आज मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, गयाना तथा अन्य कैरिबियायी द्वीपों में सफलता की बुलंदियों को छू रहे हैं और अनेक देशों मे वे आज राष्ट्रपति प्रधानमंत्री सहित सर्वोच्च पदों पर आसीन हैं। गौरतलब है कि मॉरीशस के राष्ट्रपति प्रयाग जब पिछले वर्ष अपने पुरखों के गांव पटना के वाजितपुर पहुंचे तो वहां की धूल को माथे पर लगाकर फफक-फफक कर रो पड़े थे। 
मॉरीशस यात्रा के दूसरे दिन प्रधानमंत्री ने नेशनल असेंबली को संबोधित करते हुए कहा कि हिंद महासागर क्षेत्र हमारी नीति प्राथमिकतों मे सबसे ऊपर है। उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि हिंद महासागर के आस पास एक मजबूत ग्रुप बनाया जाए। यहां तक कि बदलते विश्व मे भी महासागर प्रगति की कुंजी है 
 
प्रधानमंत्री ने कहा 'भारत को गर्व है कि वह आपका साथी है दोनों देशों के संबंध सदैव ही प्रसन्नता और एक दूसरे के लिए शक्ति का स्त्रोत रहेंगे क्योंकि दोनों देशों की नियति हिंद महासगार की लहरों से जुड़ी हुई है। 
 
इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने मॉरीशस मे भारतीय सहयोग से दूसरे साइबर नगर के निर्माण का भी ऐलान किया। तत्कालीन  प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2003 मे मॉरीशस मे पहले साइबर नगर के निर्माण की घोषणा की थी। 
 
बाद में प्रधानमंत्री ने भारत मे निर्मित अपतटीय गश्ती पोत (ओपीवी) सीजीएस बाराकुडा मॉरीशस तटरक्षक बल को विधिवत भेंट किया। इसका इस्तेमाल समुद्री डकैती रोकने और समुद्री तस्करी, अपराध रोकने के लिए हो सकेगा। 
 
उन्होंने उम्मीद जताई की कि बाराकुडा से हिंद महासागर और सुरक्षित हो सकेगा। उन्होंने कहा बाराकुडा जलपोत हिंद महासागर मे हमारी शांति और सुरक्षा की हमारी साझी वचन बद्धता का प्रतीक है। हिंद महासागर हमारा साझा समुद्रीय घर है। (वीएनआई)
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