मंगल ग्रह पर जीवन रहे होने के कई संकेत मिले

राम यादव
Signs of life on Mars: अमेरिकी अंतरिक्ष संगठन नासा (NASA) को मंगल ग्रह पर सूक्ष्म जीवन के संभावित सबूत मिले हैं, पर उनके नमूनों को पृथ्वी पर लाना टेढ़ी खीर सिद्ध हो रहा है। नमूनों को पृथ्वी पर लाने के लिए जो लागत और तकनीकी उपाय सोचे गए थे, उनसे काम बनता दिख नहीं रहा है।
 
सूक्ष्म जीवन के ये नमूने मंगल ग्रह के जेज़ोरो क्रेटर में मिले हैं। उन्हें एकत्रित करने के लिए, पर्सिविअरंस नाम का किसी कार जितना बड़ा एक रोवर, 30 जुलाई 2020 के दिन मंगल के लिए रवाना किया गया था और 18 फ़रवरी 2021 को वहां पहुंचा था। पूरे 3 वर्ष 2 महीनों तक सक्रिय रह कर उसने ट्यूब जैसी 24 शीशियों में, जेज़ोरो क्रेटर की ऐसी मिट्टी के नमूने जमा किए हैं, जिनमें रोवर में लगे आरंभिक परीक्षण उपकरणों को वहां बैक्टीरिया आदि के रूप में सूक्ष्म जीवन रहा होने का संकेत मिला है।
ALSO READ: क्या नासा को एक बाह्य ग्रह पर जीवन के संकेत मिले हैं?
जेज़ोरो क्रेटर : 2 अरब 40 करोड़ डॉलर मंहगे इस मिशन के दौरान रोवर पर्सिविअरंस को जेज़ोरो नाम के जिस क्रेटर (विशाल गड्ढे) में उतरा गया है, वह साढ़े तीन अरब साल पहले एक ऐसी झील रह चुका है, जिसके एक सिरे पर से किसी नदी के डेल्टा का पानी उसमें बहा करता था। पानी अब वहां बिल्कुल नहीं है। रह गया है 48 किलोमीटर व्यास वाला एक विशाल क्रेटर। वैज्ञानिकों का मनना था कि सूक्ष्म जीवों के जीवाश्मों की खोज के लिए जेज़ोरो क्रेटर ही आदर्श स्थान होना चाहिए। ये सूक्ष्म जीव मंगल ग्रह पर तब रहे होंगे, जब वह नदियों और से झीलों से समृद्ध था।
 
पर्सिविअरंस का मुख्य काम था झील की पेंदी पर की तलछट और क्रेटर के किनारों पर की चट्टानों के नमूने एकत्रित करना। संकेत यही हैं कि इस लाल ग्रह पर किसी न किसी रूप में कभी जीवन भी पनप रहा था। रोवर ने अच्छा काम किया है। नासा को लेकिन अब यह नहीं समझ में आ रहा है कि रोवर ने जो 24 नमूने जमा किए हैं, प्रयोगशाला में विश्लेषण के लिए उन्हें पृथ्वी पर अब कैसे लाया जाए।
 
बेहतर युक्ति की तलाश : नमूनों को वापस लाने के अभियान के लिए नासा की मूल योजना, 'मार्स सैंपल रिटर्न', विफल हो गई है। नासा अब निजी कंपनियों से आगे आकर कोई बेहतर युक्ति सुझाने के लिए कह रहा है। नासा के विज्ञान मिशन निदेशालय की प्रमुख निकोला फॉक्स ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि हम ऐसे अपारंपरिक विकल्पों पर विचार कर रहे हैं, जो इन नमूनों को जल्द और कम लागत पर वापस ला सकें। यह निश्चित रूप से एक बहुत ही महत्वाकांक्षी लक्ष्य है। हमें बहुत ही नवोन्मेषी नए डिज़ाइन सोचने के अवसर का लाभ उठाना होगा। 
 
नमूने लाने की नासा की पुरानी योजना की लागत 11 अरब डॉलर होती और समय भी बहुत अधिक लगता। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ESA में अंतरिक्ष अन्वेषण के निदेशक डेविड पार्कर का 2021 में कहना था कि मंगल ग्रह पर के नमूने लाने के लिए नासा की मूल योजना 'बेहद जटिल' है।  
 
त्यागी जा रही है जटिल योजना : अब तक की योजना के अनुसार मंगल ग्रह पर दो रॉकेट भेजने का विचार था। नमूनों को उठाने के लिए एक रॉकेट वहां एक लैंडर (अवतरण यान) उतारता, और एक दूसरा रॉकेट मंगल के फेरे लगाने के लिए एक ऑर्बिटर (परिक्रमा यान) को उसकी परिक्रमा कक्षा में पहुंचाता। लैंडर, मंगल ग्रह पर भेजा गया अब तक का सबसे बड़ा अवतरण यान होता। वह ठीक उस जगह के पास उतरता, जहां रोवर पर्सिविअरंस ने सारे नमूने जमा कर रखे हैं।
ALSO READ: बड़ा सवाल, ब्लैक होल पहले बने थे या आकाशगंगाएं?
नमूनों को समेटने के लिए एक दूसरा छोटा-सा रोवर होता, जो नमूनों की हर शीशी उठाकर लैंडर से जुड़े एक छोटे रॉकेट में रखता। यह रॉकेट उन्हें ले कर मंगल की उस परिक्रमा कक्षा तक जाता, जहां ऑर्बिटर मंगल की परिक्रमा कर रहा होगा। यह छोटा रॉकेट ऑर्बिटर के जब बहुत पास होता, तब नमूनों वाले डिब्बे को उसकी तरफ उछाल देता।
 
भावी योजना भी सरल नहीं होगी : ऑर्बिटर, नमूनों वाले डिब्बे को लेकर पृथ्वी की तरफ लौटता और उसे, पहले से तय, समुद्र पर एक ऐसी जगह गिराता, जहां एक जहज़ नमूने वाले पात्र को उठाने के लिए पहले से ही तैनात होता। जहाज़ पर की टीम पानी पर तैर रहे डिब्बे को उठा लेती। अनुमान है कि मंगल ग्रह की मिट्टी के नमूनों को पृथ्वी पर लाने की भावी नई योजना के लिए जो सुझाव या विकल्प होंगे, वे भी बहुत अलग क़िस्म के नहीं होंगे। नई योजना के लिए नासा 4 अरब डॉलर ख़र्च करने और एक दशक का समय देने के लिए तैयार है।
 
पर्सिविअरंस रोवर को जेज़ेरो क्रेटर में उतरने के मिशन से जुड़ी अब तक की कुल अनुमानित लागत बढ़कर 8 से 11 अरब डॉलर हो गई है। स्वतंत्र समीक्षकों ने यह भी निष्कर्ष निकाला है कि मंगल ग्रह पर के नमूनों को पृथ्वी पर लाने में एक दशक के बजाय दो दशक लग सकते हैं।
 
2040 के दशक में मंगल पर आदमी : नासा के प्रशासक बिल नेल्सन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि मुख्य बात यह है कि 11 अरब डॉलर बहुत महंगा पड़ रहा है और सन 2040 तक नमूनों की वापसी का समय भी अस्वीकार्य रूप से बहुत लंबा है। वह 2040 वाला ही दशक होगा, जब हम मंगल ग्रह पर अंतरिक्ष यात्रियों को उतारेंगे। बिल नेल्सन का कहना था कि जेज़ेरो क्रेटर के नमूनों को लाने की लागत इतनी अधित है कि 'मार्स सैंपल रिटर्न' मिशन अन्य नासा मिशनों को ही 'खा जाएगा'। यानी, अन्य मिशनों के लिए कुछ बचेगा ही नहीं। अतः वे एक नई योजना विकसित करने के लिए नासा के भीतर और बाहर सभी लोगों का आह्वान कर रहे हैं।
 
प्रेस कॉन्फ्रेंस के समय नासा के विज्ञान मिशन निदेशालय की प्रमुख, निकोला फॉक्स ने कहा कि रोवर पर्सिविअरंस द्वारा मंगल ग्रह पर जुटाए गए वहां की मिट्टी के नमूने पृथ्वी पर कैसे वापस लाए जा सकते हैं, इसे सुझाने के लिए प्रयोगशालाओं या कंपनियों के संक्षिप्त प्रस्ताव, नासा को 17 मई तक प्राप्त हो जाने चाहिए। इसके बाद इन प्रस्तावों का आकलन होगा और 90 दिनों के भीतर, उनमें से कुछ का इस तरह चयन होगा कि शरद ऋतु के अंत या सर्दियों की शुरुआत में पूर्ण विवरण नासा की मेज़ पर हों।
ठेका पाने की संभावित कंपनियां : नासा के लिए काम कर चुके अनुभवसिद्ध ठेकेदारों में लॉकहीड मार्टिन, नॉथ्रॉप ग्रुमन, बोइंग और स्पेसएक्स जैसी नामी कंपनियां हैं। चंद्रमा पर पुनः जाने के नासा के नए कार्यक्रम में सहभागी बनने के लिए ‘एस्ट्रोबोटिक’ और ‘इंटुएटिव मशीन्स’ जैसे स्टार्टअप भी अब नासा के संपर्क में हैं। निकोला फॉक्स का कहना था कि उन्हें आशा है कि हम कुछ पारंपरिक और पहले से ही उपयोगी सिद्ध प्रणालियों पर वापस जा सकते हैं। अनुभव बताते हैं कि किसी नई चीज़ के लिए प्रौद्योगिकी में लंबी छलांग की आवश्यकता होती है और समय भी बहुत लगता है।
 
जहां तक मंगल ग्रह से पृथ्वी तक वापसी की यात्रा का प्रश्न है, तो यह भी निश्चित रूप से एक लंबी तकनीकी छलांग होगी। निकोला फॉक्स ने कहा कि "हमने पहले कभी किसी अन्य ग्रह पर से लॉन्च नहीं किया है। यही बात 'मार्स सैंपल रिटर्न' को   बहुत चुनौतीपूर्ण और दिलचस्प मिशन बनाती है, क्योंकि यह अपनी तरह का वास्तव में पहला मिशन है।"
 
भ्रमित करते फ़ोटो : रोवर पर्सिविअरंस ने मंगल ग्रह की मिट्टी में सूक्ष्म जीवाणुओं के निशान तो पाए ही हैं, ज़मीन की सतह पर कुछ ऐसे निशानों के फ़ोटो भी भेजे हैं, जो देखने पर शार्क मछली के पंख और केकड़े के पंजे जैसे लगते हैं। वे किसी मछली या केकड़े के सच्चे अवशेष नहीं हैं, पर आभास यही देते हैं।
 
इसी प्रकार, 2012 में मंगल पर भेजे गए रोवर 'क्यूरियोसिटी' ने ऐसे पत्थरों के फ़ोटे भेजे थे, जिनकी आकृतियां बहुत विस्मित करने वाली थीं। कुछ परतदार चट्टानों पर एक पैटर्न जैसे ऐसे निशान थे, जो मानो किसी भारी वाहन के टायर वाले पहिए से बने हों। कुछ पत्थरों या चट्टानों को देखने पर लगता था, जैसे उन पर पच्चीकारी की गई हो।
 
मीथेन गैस के निशान मिले : क्यूरियोसिटी को ही मंगल ग्रह के 'गेल क्रेटर' में मीथेन गैस होने के भी निशान मिले हैं। यह गैस वहां दिन के अलग-अलग समयों पर और पूरे वर्ष के दौरान घटती-बढ़ती मात्रा में ज़मीन से निकलती मिली। उसकी मात्रा कई बार सामान्य से 40 गुनी अधिक हो जाती है। 
 
पृथ्वी पर जानवरों की पाचनक्रिया से मीथेन गैस पैदा होती है। मंगल ग्रह पर गायों-भैंसों जैसे कोई जानवर नहीं हैं, इसलिए वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वहां यह गैस क्रेटर के नीचे की जमीन में जमे हुए नमक से बंधी हो सकती है और दिन के समय क्रेटर की सतह पर बढ़ गए तापमान के कारण मुक्त होती होगी।
 
मीथेन का मिलना भी इस बात का संकेत है कि मंगल ग्रह पर किसी न किसी रूप में कभी जीवन था। प्रयोगशालाओं में प्रयोगों द्वारा इस समय यह जानने का प्रयास हो रहा है कि मंगल पर की मीथेन गैस केवल 'गेल क्रेटर' में ही क्यों मिली है और इतनी पहेली भरी क्यों है।
 
गुफाएं भी मिली हैं : इन्हीं दिनों यह भी सुनने में आया है कि मंगल ग्रह पर ऐसी गुफाएं मिली हैं, जिनमें पृथ्वी पर से गए भविष्य के मंगलवासी रह सकते हैं। अटकलें लगाई जा रही हैं कि हो सकता है, किसी ज़माने में उन्हें एलियंस (परग्रही) ने बनाया हो। इन गुफाओं का पता, कथित तौर पर बहुत ही आधुनिक तकनीक की सहायता से चला है। हो सकता है कि मंगल की ज़मीन के नीचे वे एक-दूसरी से जुड़ी भी हों। 
 
यदि वे सचमुच आपस में जुड़ी हैं और परग्रही कभी वहां रहे हैं, तो वहां उनके कुछ ऐसे निशान भी मिल सकते हैं, जिन से उनके अस्तित्व की पुष्टि हो सके। इन गुफाओं में यदि परग्रही नहीं भी रहे हों, कोई जीवजंतु रहे हों, तो यह भी वहां कभी रहे किसी फलते-फूलते जीवन की एक अभिपुष्टि होगी। यदि यह सब न भी हो और मंगल ग्रह पर सचमुच गुफाएं हैं, तो भविष्य में जब कभी भावी अंतरिक्षय़ात्री वहां जाएंगे या वहां लंबे समय तक रहने और बस्तियां बसाने की योजना बनेगी, तब ये गुफाएं बड़े काम की सिद्ध हो सकती हैं। मंगल ग्रह पर होने वाले रेडियोधर्मी ब्रह्मांडीय विकिरण की बौछार से बचाव के लिए वे बहुत ही उपयोगी होंगी।
 
वापस लौटने में महीनों लगेंगे : मंगल ग्रह पर पहुंचने के बाद वहां से हफ्ते-दो हफ्ते या दो-चार महीने में लौटना संभव नहीं है। तुलना के लिए, चंद्रमा हमारी पृथ्वी से औसतन 3,84,400 किलोमीटर दूर है, जबकि मंगल ग्रह तक की औसत दूरी 22 करोड़ 50 लाख किलोमीटर है। यह दूरी पृथ्वी और मंगल ग्रह के बीच की निकटतम और अधिकतम दूरी का मध्यमान है।
 
पृथ्वी और मंगल, दोनों सूर्य की परिक्रमा करते हुए लगभग हर 687 दिनों में एक बार एक-दूसरे के सबसे निकट और एक बार सबसे दूर होते हैं। मंगल ग्रह तक की यात्रा, अंतरिक्षयान की गति के अनुसार, उस दिन के 6 से 9 महीने पहले ही शुरू हो जानी चाहिए, जब वह पृथ्वी के सबसे निकट होगा। पृथ्वी पर वापसी के लिए, निकटतम दूरी के दिन से 6 से 9 महीने पहले ही रवानगी हो भी जानी चाहिए, वर्ना दो साल से अधिक वहां इंतज़ार करना पड़ेगा।
 

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

Exit Poll : वोटिंग खत्म होने के बाद RSS मुख्यालय पहुंचे देवेंद्र फडणवीस, मोहन भागवत से की मुलाकात

Exit Poll 2024 : झारखंड में खिलेगा कमल या फिर एक बार सोरेन सरकार

महाराष्ट्र में महायुति या एमवीए? Exit Poll के बाद बढ़ा असमंजस

महाराष्‍ट्र बिटकॉइन मामले में एक्शन में ईडी, गौरव मेहता के ठिकानों पर छापेमारी

BJP महासचिव विनोद तावड़े से पहले नोट फॉर वोट कांड में फंसे राजनेता

सभी देखें

नवीनतम

LIVE: अडाणी को बड़ा झटका, केन्या ने रद्द किया 700 मिलियन डॉलर का करार

Manipur Violence : मणिपुर के हालात को लेकर कांग्रेस ने किया यह दावा

Adani Group की कंपनियों को भारी नुकसान, Market Cap में आई 2.19 लाख करोड़ की गिरावट

Russia-Ukraine war : ICBM हमले पर चुप रहो, प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रही रूसी प्रवक्ता को आया पुतिन का फोन

Russia Ukraine War भयानक स्थिति में, ICBM से मचेगी तबाही, पुतिन के दांव से पस्त जेलेंस्की

अगला लेख