नापाक मंसूबे! आतंकी बगदादी का पाकिस्तान कनेक्शन...

Webdunia
शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2016 (11:47 IST)
भाषण सैन्य कार्रवाई के बीच इराकी शहर मोसुल में फंसे आईएस सरगना बगदादी और आतंकी संगठन आईएसआईएस को यहां से खदेड़ने के लिए विरोधी सैन्य बलों ने सक्रिय कार्रवाई शुरू कर दी है। लेकिन शहरों और आसपास के गांवों में छिपे आतंकवादियों ने आम लोगों को अपनी ढाल बनाना शुरू कर दिया है। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि आईएस सरगना अबू बकर अल-बगदादी मोसुल में ही फंसकर रह गया है और भीषण कार्रवाई देख उसे बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिल रहा है। 
 
आईएस लड़ाकों ने भागने से पहले ही इराकी तेल के टैंकों को आग के हवाले कर दिया है। खुफिया सूत्रों के मुताबिक, जिस समय इराकी, कुर्द सेना ने आईएस के खिलाफ कार्रवाई शुरू की, उस समय बगदादी व संगठन के अन्य बड़े नेता शहर में ही मौजूद थे। विशेषज्ञों को शंका है कि बगदादी की मौजूदगी के चलते आईएस विरोधी सेनाओं से लड़ाई करने में पीछे नहीं हटेगा और बचने के लिए गंभीर हमले करने से भी नहीं चूकेगा। 
 
वहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भरोसा जताया है कि इराकी सैन्य बल व अमेरिकी सहयोगी आईएस को मोसुल से बाहर कर देंगे। हालांकि ओबामा ने यह स्वीकार किया कि संगठन के खिलाफ यह मुश्किल लड़ाई होगी। इस बीच, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी मोसुल अभियान को लेकर तुर्की व इराक के नेताओं से बातचीत की। आईएस ने स्वघोषित राजधानी मोसुल में पैसे कमाने के नए विकल्प तलाशना शुरू कर दिए हैं। एक अमेरिकी अधिकारी ने बताया कि संगठन अब फिरौती, अपहरण, सुपारी हत्याओं जैसी आपराधिक गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है। 
 
शहर में सैन्य अभियान के तीसरे दिन ही पांच हजार आम लोग मोसुल छोड़कर भाग गए हैं और ये लोग अल-होल शरणार्थी कैंप पहुंच गए, लेकिन यहां पहले से ही रहने के लिए व्यवस्थाएं बदहाल हैं। इराक में सक्रिय मानवाधिकार एजेंसियां, दक्षिण व कई क्षेत्रों में अस्थायी कैंपों के निर्माण में जुटी हैं जबकि करीब 15 लाख लोग शहर में रह रहे हैं। 
 
संयुक्त राष्ट्र ने पहले ही चिंता जताई है कि इस अभियान से विश्व को गंभीर मानवाधिकार स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। इस बीच इराकी ब्रिगेडियर जनरल सिरवान बारजानी का मानना है कि मोसुल को आईएस से दो महीने की कार्रवाई में मुक्त करवा लिया जाएगा। हालांकि बारजानी ने आशंका जताई कि खराब मौसम के चलते कार्रवाई आगे भी बढ़ सकती है।
 
इस्लामिक स्टेट संगठन के कब्जे वाले मोसुल पर कब्जे के लिए अभियान को इराकी और कुर्द कमांडरों ने फिलहाल विराम दिया है। जबकि इस शहर पर कब्जे को लेकर एक दिन पहले ही एक बड़ा अभियान शुरू किया गया था जिसके हफ्तों चलने की उम्मीद की जा रही थी। मोसुल के पूर्व में अग्रिम पंक्तियों पर कमोबेश शांति है। इससे पहले इराकी, कुर्द बल अमेरिका के नेतृत्व में चल रहे हवाई हमलों और तोपों से गोलाबारी के बीच आगे बढ़े थे। पेशमरगा नाम के कुर्द बल के कर्नल खातर शेचन ने बताया कि हम अभी अपने मोर्चे संभाले हुए हैं। इराकी सेना अब हमारे ‍नियंत्रण वाले इलाकों से आगे बढ़ेगी।
 
ब्रिगेडियर जनरल हैदर फादिल ने बताया उनके लोगों की योजना आगे बढ़ने की थी, लेकिन अभियान को टाल दिया गया। इराकी सेना और कुर्द कमांडर गुरुवार को बैठक करेंगे। इराकी प्रधानमंत्री हैदर अल अबादी ने दो साल से शहर पर चले आ रहे चरमपंथी शासन को खत्म करने का सोमवार को संकल्प लिया था। यह देश में आईएस का आखिरी बड़ा शहरी गढ़ है।
 
अमेरिकी नेतृत्व वाली गठबंधन सेना के प्रवक्ता का कहना है कि अभियान योजना के अनुसार आगे बढ़ रहा है और इराकी बल शानदार प्रगति कर रहे हैं। बराक ओबामा और इसके सहयोगी गुटों द्वारा आईएसआईएस के खिलाफ सीरिया-ईरान-रूस गठबंधन की आगे बढ़ने की गति धीमी होने से प्रतीत होता है कि इन तीनों देशों की सेनाएं नवंबर के मध्य तक ही अलेप्पो कर कब्जा कर पाएंगीं।
 
जबकि इस बीच इराकी सेना और इसके समर्थकों ने तुर्की के राष्ट्रपति रेसीप ताइप एरदोगन की तरह मोसुल में एक जाराबालुस (शहर जिसे सीरियाई सेना ने जीत लिया है) तलाश रहे हैं। उल्लेखनीय है कि सीरिया में इस कस्बे जाराबालुस के आजाद होने के बाद आईएसआईएस लड़ाकों ने खुद को रातोंरात 'उदारवादी विपक्ष‍ी लड़ाकों' में बदल दिया है और अब इन लोगों को तुर्की की सेना का संरक्षण हासिल है।
 
ये लड़ाके अपना हुलिया और पहचान बदलकर उम्मीद कर रहे हैं कि वे हाल के नुकसानों की भरपाई कर लेंगे और उचित मौका आने पर फिर से अमेरिका और इसके यूरोपीय सहयोगियों के खिलाफ मैदान में आ जाएंगे। दरअसल तालिबानियों ने मात्र दो वर्ष बाद पाकिस्तान की इंटर सर्विसेस इंटेलीजेंस (आईएसआई) की मदद से वर्ष 2001 में कुंदूज और अन्य स्थानों पर अपनी जड़ें फिर से जमाने में सफलता हासिल कर ली थी।
 
यदि डोनाल्ड ट्रंप बने अमेरिकी राष्ट्रपति तो.... पढ़ें अगले पेज पर....

जबकि पिछले पांच महीनों से (और अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में) राष्ट्रपति ओबामा अपनी विदेश नीति की चाभियां हिलेरी क्लिंटन को सौंपने वाले हैं जो कि अपने विदेश मंत्री जॉन केरी की मदद से इस नीति का पालन कर रहे हैं कि दमिश्क, मॉस्को और तेहरान की तिकड़ी को अमेरिका के लिए आईएसआईएस व अन्य जेहादी गुटों से ज्यादा बड़ा खतरा है।
 
पूरी संभावना है कि 8 नवंबर, 2016 को होने वाले चुनावों में राष्ट्रपति चुनावों में हिलेरी जीत हासिल कर लेंगी। इसे देखते हुए पश्चिम के मीडिया में रूस और व्लादीमीर पुतिन को राक्षस साबित करने का अभियान शुरू हो गया है। यह माना जा सकता है कि एक राष्ट्रपति के तौर पर हिलेरी क्लिंटन को प्रतिनिधि सभा और सीनेट पर पूरा नियंत्रण हासिल होगा। इसके बाद अगर वियतनाम युद्ध के बाद दोनों देशों की सेनाओं के बीच सीमित क्षमता का भी युद्ध होता है तो यह युद्ध इतना बढ़ सकता है कि आईएसआईएस नेतृत्व के तत्वों को इराक और सीरिया से भागने का मौका दे देगा।
 
आईएस नेतृत्व को ईरान, सीरिया, इराक और रूस के अलावा कुर्दों के जबर्दस्त प्रतिरोध के चलते एक बड़े भू-भाग पर से अपना प्रभुत्व छोड़ना पड़ा है। हालांकि इन लड़ाकों को ओबामा प्रशासन से बहुत कम मदद मिली है क्योंकि ऐसे मामलों में अमेरिकी नीतियों पर दोहा, रियाद और अंकारा के विचारों का बहुत प्रभाव रहा है। इसके अलावा, आईएसआईएस को डर है कि कहीं राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प न जीत जाएं और वे अपने कहे के अनुसार ईरान और सीरिया के साथ मिलकर आईएसआईएस के खिलाफ युद्ध छेड़ देंगे।
 
ट्रम्प ने जहां अपने भाषणों में आईएसआईएस को मॉस्को और तेहरान से भी बड़ा खतरा माना है और पाकिस्तान को लेकर बुश और ओबामा प्रशासन की सॉफ्ट लाइन को छोड़कर कहा है कि वे आतंकी फैक्ट्रियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे। इससे नई दिल्ली के नीति निर्माता गद्‍गद्‍ हैं और भारतीय मीडिया में कहा जा रहा है अंतत: वॉशिंगटन को इस्लामाबाद के खिलाफ अंतत: अपनी समुचित कार्रवाई करने का अवसर मिल सकेगा।
 
पाकिस्तान को लेकर वॉशिंगटन का लम्बे समय से चला आ रहा नरम रुख इस तथ्य के वावजूद है कि पाकिस्तान में सेना के संरक्षण में बहुत सारे आतंकी गुट फल फूल रहे हैं। इन गुटों में जैश ए मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, लश्कर-ए-झांगवी, तहरीक-ए-जफरिया, अल कायदा, सिपह-ए-साहबा, अल बद्र, हरकत उल अंसार, हिज्ब उल मुजाहिदीन, तहरीक-ए-नफाज-ए -शरीयत-ए- मोहम्मदी और जमात उल फुर्का शामिल हैं। पाक के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज ने खुद स्वीकार किया है कि आतंकवादियों (मुख्य रूप से अफगानिस्तान के आतंकवादियों) ने वर्ष 2007-08 के दौरान कबायली क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया है। इन लोगों ने कबायली नेताओं को मारकर अपने दूरसंचार नेटवर्क्स, आईईडी फैक्ट्रियां, आत्मघाती हमलों के प्रशिक्षण केन्द्र खोल रखे हैं। सरताज का यह भी कहना है कि पिछले 15 वर्षों के दौरान पाकिस्तान ने एक सौ अरब डॉलर की धनराशि और दस हजार से अधिक सुरक्षाकर्मियों की जानें खोई हैं।
 
इस मामले से जुड़ा सबसे बड़ा तथ्‍य यही है कि पाकिस्तान की असैनिक सरकार देश की सैनिक सरकार और ताकत के खिलाफ कुछ भी करने की ताकत नहीं रखती है। इस कारण से देश में आतंकवादी गतिविधियां खुलेआम चलती रहती हैं। यह किसी से छिपा नहीं है कि वर्ष 1979 से 'मुजाहिदों' का प्रशिक्षण खुले आम जारी रहा है।
 
पाकिस्तान में कौन चाहता है कि बगदादी को मिले शरण... पढ़ें अगले पेज पर....

बाद में, वर्ष 1989 में इन कार्यकर्ताओं को 'तालिबान' का नाम दिया गया और इन्हें पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के लिए और बाद में भारत के लिए क्रमश: पाकिस्तान के उत्तर पश्चिम सीमा राज्य और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आईएसआई के शिविरों में प्रशिक्षित किया गया। जब आईएसआईएस से मोसुल, अलेप्पो और रक्का जैसे स्थान खाली करा लिए जाएंगे तो इसके लिए 'तुर्की हल' निकाल लिया जाएगा। इस नए हल के तहत जितने भी आतंकवादी हैं वे रातोंरात तथाकथित 'उदारवादी सैन्य बल' में बदल जाएंगे।  
           
विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तानी सेना के जो तत्व आईएसआईएस की विचारधारा को सहज स्वीकार्य पाते हैं, वे पाकिस्तान में ऐसे स्थानों की खोज करने में लगे हैं जहां पर आईएसआईएस नेतृत्व के तत्वों को ठीक उसी तरह शरण उपलब्ध कराएं जैसे कि अफगानिस्तान से भागने के बाद पाकिस्तानी सेना ने ओसामा बिन लादेन को मुहैया कराई थी। विदित हो कि आईएसआईएस नेतृत्व के ऐसे करीब 26 लोगों को चिन्हित किया गया है जिन्हें पाकिस्तान में सुरक्षित स्थानों पर रखा जाएगा। इन लोगों को अफगान सीमा के जरिए पाकिस्तान में लाया जाएगा। 
 
सुरक्षा जानकारों का दावा है कि पश्चिम एशिया में पाकिस्तानी सेना के तीन सौ से ज्यादा कार्यरत और सक्रिय सेना अधिकारी आईएसआईएस के लड़ाकों को प्रशिक्षित कर रहे हैं। ये आईएसआईएस जैसी ही मानसिकता रखने वाले संगठनों को भी प्रशिक्षित कर रहे हैं। इन लोगों के अलावा करीब दो हजार से ज्यादा पाक सेना के रिटायर्ड अधिकारी इराक और सीरिया की सरकारों के खिलाफ प्रशिक्षण देने का काम कर रहे हैं। नई दिल्ली से प्रकाशित‍ होने वाले ई-समाचार पत्र संडे गार्जियन में यह जानकारी दी गई है कि पाक सेना के ये 'तत्व' सेना से छुट्‍टी लेकर और छद्म नामों का उपयोग कर इन देशों में ऐसा कर रहे हैं।
 
पहले यह काम पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों, कर्मचारियों ने जॉर्डन, तुर्की और कतर के लिए किया था लेकिन कुछेक वर्षों बाद अम्मान, दोहा और अंकारा की समझ में आ गया है कि अपने देश में लड़ाकों के गुटों को पालने, पोसने, प्रशिक्षण देने से आतंकवादियों का भविष्य में भी कोई भी ताकत इस्तेमाल कर सकती है।
 
इस क्षेत्र की भूराजनीतिक स्थिति पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि ये सभी आईएसआईएस विचारधारा के समर्थक हैं। ये लोग पैसों से ज्यादा विचारधारा को अहमियत देते हैं और यह अपने देश के सभी तालिबान, आईएसआईएस समर्थकों से जिहादी कामों में शामिल होने की उम्मीद रखते हैं। इसी के चलते पाकिस्तान दुनिया में एकमात्र इस्लामी देश है जिसका इस्लाम सारी दुनिया में फैला हुआ है। 
 
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