कोलंबो। श्रीलंका में बर्खास्त प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की पार्टी ने राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना पर तख्तापलट का आरोप लगाते हुए इसके खिलाफ मंगलवार को विरोध प्रदर्शन आयोजित किया और एक बड़ी रैली में सैकड़ों प्रदर्शनकारी जमा हुए। इस बीच दोनों खेमे राजनीतिक संकट को समाप्त करने के लिए संसद में संख्याबल जुटाने का प्रयास कर रहे हैं।
विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) ने संसद सत्र तत्काल बुलाने और लोकतंत्र बहाल करने की मांग की। विक्रमसिंघे ने कहा कि राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने समझ लिया है कि उनकी राह आसान होगी, लेकिन यूएनपी और यूनाइटेड नेशनल फ्रंट में उनके सहयोगी दल हिम्मत नहीं हारेंगे और संसद सत्र जल्द बुलाने के लिए दबाव डालते रहेंगे।
श्रीलंका में शुक्रवार को उस समय राजनीतिक संकट गहरा गया था जब राष्ट्रपति सिरिसेना ने औचक फैसले में प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर दिया। उन्होंने महिंदा राजपक्षे को नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया और उनके लिए समर्थन जुटाने की कोशिश में संसद को भी निलंबित कर दिया।
सिरिसेना पर संसद सत्र बुलाने और संवैधानिक संकट का समाधान करने के लिए राजनीतिक तथा कूटनीतिक दबाव बढ़ रहा है। विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) मंगलवार को राजधानी कोलंबो में विरोध प्रदर्शन कर रही है।
रैली से पहले पूर्व मंत्री चंपिका राणावाका ने कहा, 'हम समाज के सभी वर्गों का आह्वान कर रहे हैं जो लोकतंत्र और कानून व्यवस्था में विश्वास रखते हैं।' विक्रमसिंघे सरकार में वित्त मंत्री रहे मंगला समरवीरा ने कहा, 'यह संवैधानिक सत्तापलट है और लोकतंत्र तथा संप्रभुता को बचाना हमारा कर्तव्य है।'
स्पीकर कारू जयसूर्या ने राष्ट्रपति से अनुरोध किया कि विक्रमसिंघे को संसद में विश्वास मत साबित करने दें। पूर्व राष्ट्रपति राजपक्षे के समर्थकों को भरोसा है कि वह संसद में बहुमत साबित कर सकेंगे क्योंकि उन्हें लगता है कि विक्रमसिंघे की यूएनपी के सदस्य दलबदल करेंगे।
राजपक्षे के करीबी लक्ष्मण यापा आबेवर्देना ने कहा, 'हम, और अधिक यूएनपी सदस्यों के हमारे साथ आने का इंतजार कर रहे हैं। हमारे पास संख्याबल है।'
विक्रमसिंघे का कहना है कि उनके पास अब भी बहुमत है। स्पीकर जयसूर्या ने मौजूदा राजनीतिक हालात का आकलन करने के लिए सभी पार्टी के नेताओं की बैठक बुलाई है। कम से कम 128 सदस्यों ने उन्हें पत्र लिखकर संसद का सत्र फिर से बुलाने की मांग की है। विक्रमसिंघे और राजपक्षे दोनों संसद में अपनी संख्या बढ़ाने में लगे हैं।