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युद्ध के मोर्चों से भागते रूसी सैनिक और पुतिन की बढ़ती मुश्किल

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राम यादव

रूस के साथ युद्ध में यूक्रेन ने पहली बार अपनी कुछ ज़मीन वापस छीन ली है। रूसी सैनिक पीछे हटे हैं और राष्ट्रपति पुतिन को स्वदेश में पहली बार अपनी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। 
 
11 सितंबर की शाम रूस के सरकारी टेलीविज़न के एक 'टॉक-शो' में एक ऐसी बहस छिड़ गई, जिसके लिए सरकारी टेलिविज़न जाना नहीं जाता। पिछले कुछ दिनों से ख़बरें आ रही थीं कि युद्ध के कई मोर्चों पर से रूसी सैनिक भाग खड़े हुए हैं। हमेशा की तरह पहले तो इसे दबाने-छिपाने और मामूली घटनाएं बताने की कोशिश की गई। रूसी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि सैनिक भागे नहीं हैं, उनकी टुकड़ियों का नए सिरे से पुनर्गठन किया जा रहा है। किंतु 'टॉक-शो' में रूसी संसद 'दूमा' के एक पूर्व सदस्य, बोरिस नदेज़्दिन ने, युद्ध के मोर्चों पर पिछले छह महीनों में मिली कथित भारी सफलताओं पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया।
 
नदेज़्दिन ने कहा कि नई घटनाओं ने यूक्रेन में चल रही 'विशेष कार्रवाई' (रूस इस युद्ध को युद्ध नहीं, विशेष कार्रवाई कहता है) के त्वरित और प्रभावी अंत की बातें सरासर झुठला दी हैं। रूस को इस सोच से विदा ले लेनी चाहिये कि वह 'भाड़े के सैनिकों' और एक 'उपनिवेशवादी युद्ध-संचालन' के बल पर यूक्रेन को अपना दास बना सकता है। यूक्रेनी सेना जैसी दृढ़ मनोबल वाली सेना से जो कोई भिड़ना चाहता है, उसे पहले से ही तय कर लेना चाहिए कि 'या तो वह अपने यहां आम लामबंदी करेगा, या लड़ेगा ही नहीं।' नदेज़्दिन ने सलाह दी कि युद्ध का अंत करने के लिए रूस को शांतिवार्ताएं शुरू करनी चाहिए। 
 
इस बहस में भाग ले रहे अन्य वक्ताओं ने बोरिस नदेज़्दिन को यह सलाह दी कि उन्हें अपनी बात 'सोच-समझ कर कहनी चाहिए।' 59 वर्षीय नदेज़्दिन के शुभचिंतकों को चिंता हो रही है कि कहीं उनका भी, किसी रहस्यमय 'खिड़की से गिर जाने' के बहाने से, अंत तो नहीं हो जाए! यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद से रूस में 'खिड़की से गिरजाने' के ऐसे कई रहस्यमय मामले हो चुके हैं, जिनमें राष्ट्रपति पुतिन के मित्र या शत्रु समझे जाने वाले कई जाने-माने लोग अपने प्राण गंवा चुके बताए जाते हैं।
 
कुर्सी छोड़ने की उठी मांग : इस टेलीविज़न 'टॉक-शो' के दूसरे ही दिन, अपना मुंह खोलने की एक और दुस्साहसिक घटना हुई। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के अपने ही गृहनगर सेंट पीर्सबर्ग और रूस की राजधानी मॉस्को की नगर पालिका के 18 जनप्रतिनिधियों ने, 9 सितंबर की एक ऐसी अपील का खुल कर समर्थन किया, जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति पुतिन रूस को पहले ही भारी नुकसान पहुंचा चुके हैं, इसलिए अब वे अपनी कुर्सी ख़ाली करें। इन नगर पालिका पार्षदों ने यह आरोप भी लगाया कि राष्ट्रपति महोदय ने 'अपने आक्रामक वक्तव्यों से देश को शीतयुद्ध वाले दिनों की तरफ पीछे धकेल दिया है।' 
 
दक्षिणी रूस में कॉकेशिया का एक मुस्लिम बहुल रूसी प्रदेश है चेचन्या। वहां के 'रैम्बो' क़िस्म के शासक रमजान कदीरोव को रूसी राष्ट्रपति का मित्र और प्रशंसक माना जाता है। लेकिन कदीरोव भी पुतिन से नाराज़ लगते हैं। कदीरोव ने अपने एक वक्तव्य में कहा, 'यूक्रेन में सैन्य रणनीति को यदि बदला नहीं गया, तो मुझे रक्षा मंत्रालय और सरकार के नेताओं से बात करनी होगी और उन्हें बताना होगा कि ज़मीनी सच्चाई क्या है।' कदीरोव के खूंख़ार चेचन्याई भाड़े के सैनिक भी यूक्रेन में रूस की ओर से लड़ रहे हैं। वे युद्ध के नियमों और मानवाधिकारों की रत्तीभर भी परवाह नहीं करते।
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कुछ प्रेक्षकों का मानना है कि दो दशकों से रूस पर एकछत्र शासन कर रहे राष्ट्रपति पुतिन भी अपनी अप्रत्याशित आलोचनाओं से हिल गए लगते हैं। अब तक अपनी जनता को एक बेहतर जीवन देने और रूसी सेना के स्वाभिमान को बनाए रखने में वे सफल रहे हैं। लेकिन अब जनता और सेना दोनों, उनसे ख़ुश नहीं हैं। पुतिन ने शायद सोचा था कि रूसी सेना यूक्रेन को कुछ ही दिनों में रौंद डालेगी। लेकिन लगता है कि तंगहाल यूक्रेनी सैनिकों की  देशभक्ति और शौर्य से अधिक स्वयं रूसी सैनिकों की कायरता और अनुशासनहीनता रूसी राष्ट्रपति को भारी पड़ रही है। 
 
जीडीपी में गिरावट : यूक्रेन के विरुद्ध युद्ध छेड़ने के बाद से पश्चिमी देशों ने रूस पर जो कठोर प्रतिबंध लगा रखे हैं, उनके कारण उसका सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) छह महीनों में ही छह प्रतिशत घट गया है। इसे पूरे विश्व में सबसे अधिक गिरावट बताया जा रहा है। अर्थव्यवस्था सिकुड़ रही है। मंहगाई बढ़ रही है। सेना का युद्ध कौशल और मनोबल रसातल की तरफ़ जा रहा है। स्वाभाविक है कि देश के लोगों को अपने राष्ट्रपति की समझ-बूझ पर और संभवतः उनकी मानसिक दशा पर भी संदेह होने लगा है।
 
इसी गड्ड-मड्ड का परिणाम है कि पश्चिमी देशों से दान में मिले हथियारों और अपनी अदम्य जुझारुता के बल पर, युद्ध जर्जरित यूक्रेन के अन्यथा दीन-हीन और साधनहीन सैनिक भी अब रूसियों के दांत खट्टे करने लगे हैं। उत्तर-पूर्वी यूक्रेन के ख़ार्किव इलाके से रूसियों को उन्होंने खदेड़ दिया है। देखते ही देखते कुछ ही दिनों में 3 हज़ार वर्ग किलोमीटर के बराबर ज़मीन रूसियों से ख़ाली करवा ली है। रूस ने यह बहाना बनाते हुए अप्रत्यक्ष रूप से इसे स्वीकार भी किया है कि वह अपने मोर्चों और सैनिकों का पुनर्गठन कर रहा है।
 
यूक्रेनी सेना के अफ़सरों ने पश्चिमी देशों के पत्रकारों से कहा कि उन्होंने बिल्कुल नहीं सोचा था कि रूसी सैनिकों का मनोबल ख़ार्किव इलाके में इस तेज़ी से फुर्र हो जाएगा। कई बार उन्हें लगता है कि रूसी सैनिक और उनके कमांडर लड़ना चाहते ही नहीं, लड़ने का केवल दिखावा करते हैं! पश्चिमी प्रेक्षक इस का अर्थ यह लगा रहे हैं कि पुतिन तो अपनी सेना और शस्त्रीकरण पर अपूर्व धनराशि ख़र्च कर रहे हैं, पर लगता है कि अधिकतर पैसा सेना का सीना चौड़ा करने के बदले भ्रष्टाचार के दलदल में समा जाया करता है।
 
रूस की हवाई सुरक्षा प्रणालियों पर सवाल : श्चिमी सैन्य विशेषज्ञ इस ओर भी ध्यान दिलाते हैं कि रूसी S-300, S-400 और 'पंतसिर' कहलाने वाली हवाई सुरक्षा प्रणालियों को भी 'नाम बड़े और दर्शन छोटे' ही मानना चाहिए।
 
पश्चिम की राडार भेदी AGM-88 Harm (हार्म) मिसाइल प्रणाली काफ़ी हद तक एक ऐसी स्वायत्त हवाई सुरक्षा प्रणाली है, जो इन तीनों रूसी प्रणालियों वाले ऱॉकेटों को अपने आप ढूंढ कर कई-कई किलोमीटर दूर से ही उनका सफ़ाया कर देने के सक्षम है। स्मरणीय है कि भारत ने भी रूस से पांच S-400  सिस्टम ख़रीदे हैं, जो 2023 के अंत तक भारत को मिल जाने हैं।
 
अमेरिका ने यूक्रेन को AGM-88 Harm के अलावा 'हाइमार्स' (HIMARS) नाम की ट्रक-आधारित तोपों जैसी एक ऐसी प्रणाली भी दी है, जो बड़ी तेज़ी से एकसाथ दनादन 6-6 रॉकेटों की 32 से 80 किलोमीटर दूर तक बौछार कर सकती है। जर्मनी ने भी एक ऐसी ही प्रणाली और कई टैंक आदि दिए हैं। यूक्रेन को यह भी लाभ है कि पश्चिमी देशों के सैन्य संगठन 'नाटो' की तरफ़ से उसे रूसी सैन्य गतिविधियों की सारी जासूसी जानकारी मिला करती है। नाटो की कृपा से यूक्रेनी कमांडरों को पता रहता है कि रूसी सेना की कहां क्या कमज़ोरी है।
 
कह सकते हैं कि लड़ते भले ही यूक्रेनी सैनिक हैं, पर नाटो देशों से मिल रहा धन व साधन ही उनकी देशभक्ति के पीछे की असली प्रेरक शक्ति है। इसीलिए उनका मनोबल भी सदा बुलंद रहता है। कहा तो यह भी जा रहा है कि रूसी सैनिक कई बार अपने हथियार एवं वर्दियां तक पीछे छोड़कर इस तरह भाग खड़े हुए, मानो सिर पर पैर रख कर भागे। 
 
100 से अधिक गांवों से रूसी सैनिकों को खदेड़ा : अपने सैनिकों को शाबाशी देने के लिए यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की, 14 सितंबर के दिन रूसियों से छीने गए इस्युम शहर में स्वयं गए। सैनिकों के साथ ख़ूब सेल्फ़ी फ़ोटो खिंचवाए। उनका कहना था कि उनके सैनिकों ने ख़ार्किव इलाके के 100 से अधिक गावों और कई शहरों से रूसी सैनिकों को खदेड़ दिया है। दूसरी ओर, रूसी राष्ट्रपति पुतिन हैं, जो युद्ध को छह महीने हो जाने पर भी अपने सैनिकों के पास शायद कभी नहीं गए। उन्हें परामर्श देने वालों को आाशा ही नहीं विश्वास था कि यूक्रेन के लोग रूसी सैनिकों का दिल खोल कर स्वागत करेंगे। 
 
रूस को यूक्रेन में उलझा हुआ देख कर भूतपूर्व सोवियत संघ का हिस्सा रहे आर्मेनिया-अज़रबैजान तथा किर्गिस्तान- ताजिकिस्तान भी अपने-अपने द्विपक्षीय विवादों को ले कर इन्हीं दिनों आपस में भिड़ गए। 12 सितंबर को तड़के अज़रबैजान ने आर्मेनिया पर अचानक हमला बोल दिया। उसकी तोपों और ड्रोनों ने खूब गोले बरसाए। सीमा पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़पें भी हुईं।
 
आर्मेनिया का कहना है कि उसके 100 से अधिक सैनिक मारे गए। अज़रबैजान ने मारे गए अपने सैनिकों की संख्या 71 बताई। आर्मेनिया का यह भी कहना है कि अज़रबैजान नें 10 वर्ग किलोमीटर के बराबर उसकी सीमांत भूमि पर क़ब्ज़ा भी कर लिया। रूस ने जैसे-तैसे दोनों के बीच युद्धविराम करवाया। रूस की आर्मेनिया के साथ रक्षा-संधि है, पर पुतिन इस संधि को निभाने के प्रति उदासीनता दिखाते रहे है। जबकि तुर्की पूरी तरह अज़रबैजान का पक्षधर है। इसी कारण अज़रबैजान का मन बहुत बढ़ गया है। वह अपना बाहुबल दिखाने के मौके की ताक में लगा रहता है। तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैय्यब एर्दोआन रूसी राष्ट्रपति के नए मित्र हैं, इसलिए पुतिन उन्हें नाराज़ नहीं करना चाहते, आर्मेनिया को ही दबाते हैं।
 
उज़बेकिस्तान के समरकंद में 15-16 सितंबर को जब भारत सहित शंघाई सहयोग संगठन SCO के 15 देशों का शिखर सम्मेलन चल रहा था, जिसमें किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति भी भाग ले रहे थे, उसी समय इन दोनों देशों की देशों की एक-तिहाई सीमा पर भी तोपों-टैंकों से गोलाबारी होने लगी। किर्गिस्तान का कहना है कि उसके 31 लोग घायल हुए। रूसी राष्ट्रपति फ़िलहाल दोनों देशों के बीच बीचबचाव का प्रयास कर रहे हैं।
 
इन दोनों मुस्लिम देशों के बीच टकराव की ठीक इसी समय नौबत शायद न आती, यदि उनके बीच शांति बानए रखने के लिए प्रयत्नशील राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन पर आक्रमण कर स्वयं ही एक ग़लत उदाहरण न बना रखा होता। आर्मेनिया व अज़रबैजान की तरह ही भूतपूर्व सोवियत संघ का अंग रहे मध्य एशिया के किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान को भी – जहां शांति बनाए रखने की ज़िम्मेदारी रूस ने ही ले रखी है – पुतिन भला किस मुंह से समझाएंगे कि वे आपस में न लड़ें, मिलजुल कर रहें! 
 
नहीं रुकेगा अभियान : यही नहीं, 16 सितंबर को पुतिन ने समरकंद शिखर सम्मेलन दौरान ही यह भी घोषित कर दिया कि यूक्रेन के 'दोनबास इलाके में हमारा अभियान रोका नहीं जाएगा, बल्कि चलता रहेगा। उन्होंने दावा किया कि रूसी सेना लगतार नए क्षेत्रों पर क़ब्जे कर रही है।  साथ ही आगाह भी किया कि हमने अपनी सारी सेना मैदान में अभी नहीं उतारी है, फ़िलहाल हम केवल अनुबंधित सैनिकों से काम चला रहे हैं।  
 
यह एक चेतावनी है यूक्रेन और उसके पश्चिमी सहयोगियों को कि वे यह ख़याली पुलाव न पकाएं कि उन्हें कुछ ज़मीन वापस मिल गई है, तो इसका मतलब है कि रूस ने हार मान ली है, या वे इसी तरह सफल होते और आगे बढ़ते रहेंगे। पुतिन ने अतीत में सीरिया में जिस तरह अमेरिका के पैर नहीं जमने दिए, उसी तरह इस बार भी जब तक पदासीन रहेंगे, सब कुछ दांव पर लगा देंगे कि यूक्रेन में भी अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगियों के पैर कतई जम नहीं पाएं।

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