वेनेजुएला मचल रहा है गुयाना को हड़पने के लिए

राम यादव
मंगलवार, 19 दिसंबर 2023 (19:32 IST)
गुयाना दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप का एक ऐसा छोटा-सा शांतिप्रिय देश है जिसकी 8 लाख की जनसंख्या का 43.5 प्रतिशत भारतवंशी हैं। वहां हाल ही में तेल सहित कई खनिज भंडारों का पता चला है। कुछ इस कारण और कुछ सस्ती लोकप्रियता पाने के चक्कर में गुयाना के पड़ोसी देश वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मदुरो उसका क़रीब दो-तिहाई भू-भाग हड़प जाना चाहते हैं।
 
अपनी मनोकामना को जनता की उत्कट इच्छा बताते हुए मदुरो ने 3 दिसंबर को जनमत संग्रह का एक नाटक रचा। 8 दिसंबर को कैमरों के सामने वेनेजुएला का एक नया नक्शा पेश करते हुए कहा, 'हमने एक नए ऐतिहासिक अध्याय के लिए पहला क़दम उठा लिया है। हम उसके लिए लड़ रहे हैं, जो हमारा है। हम 'एस्सेक्वीबो गुयाना' को वापस लेने जा रहे हैं जिसे हमारे स्वतंत्रता संग्रामियों ने हमारे लिए छोड़ दिया था। वेनेजुएला की जनता ने अपनी इच्छा ज़ोर-शोर से और साफ़तौर पर बता दी है और यह जीत वेनेजुएलन जनता की होगी।'
 
केवल 50 प्रतिशत मतदान
 
गुयाना के जिस हिस्से को मदुरो अपना बताते हैं, उसे वेनेजुएला में 'एस्सेक्वीबो गुयाना' कहा जाता है। 'एस्सेक्वीबो' नाम की नदी वाला यह हरा-भरा इलाका गुयाना को उसके पूर्वी और पश्चिमी भाग में विभाजित करता है। जिस विवादास्पद जनमत संग्रह का मदूरो ढोल पीटते रहे हैं, उसके लिए केवल 50 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया। उनकी सरकार का दावा है कि 90 प्रतिशत मतदाताओं ने 'एस्सेक्वीबो गुयाना' के वेनेजुएला में विलय का समर्थन किया। मीडिया और नागरिक पोर्टलों ने लेकिन सुनसान मतदान केंद्रों की तस्वीरें पोस्ट कीं।
 
2024 में वेनेजुएला में राष्ट्रपति पद का चुनाव है। मदुरो 2013 से राष्ट्रपति हैं। वहां की संसद ने, जिसके अधिकार बाद में छीन लिए गए, 2018 में हुई उनकी चुनावी जीत को 2019 में अवैध घोषित कर दिया था। राष्ट्रपति पद के चुनावी दौर के अंतिम प्रत्याशियों को चुनने के लिए (अमेरिका की तरह ही वेनेजुएला में भी) वहां की पार्टियां 'प्राइमरीज़' कहलाने वाले प्राथमिक चुनावी दौर आयोजित करती हैं।
 
जनमत संग्रह भटकाने का हथकंडा
 
2024 के नए चुनाव के लिए इन प्राथमिक दौरों की विपक्षी विजेता मरिया कोरीना मचादो ने फ्रांसीसी टीवी चैनल 'फ्रांस24' को बताया कि गुयाना के बहाने से मदुरो ने 3 दिसंबर को जो जनमत संग्रह करवाया, वह विपक्षी प्राइमरीज़ की भारी सफलता से ध्यान भटकाने और झूठी देशभक्ति जगाकर मतदाताओं को बरगलाने का एक हथकंडा है। नीदरलैंड्स में हेग स्थित संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने जनमत संग्रह से 3 दिन पहले 1 दिसंबर के दिन कहा, 'न्यायालय के अंतिम फ़ैसले से पहले वेनेज़ुएला को ऐसे हर काम से परहेज़ करना होगा जिससे यथास्थिति बदल सकती है।' न्यायाधीशों की यह एक सर्वसम्मत चेतावनी थी।
 
वेनेजुएला के राष्ट्रपति मदुरो ने इस चेतावनी को अनसुना करते हुए कहा कि वे गुयाना के एस्सेक्वीबो वाले भू-भाग को वेनेज़ुएला का एक कानूनी प्रदेश घोषित करेंगे। उन्होंने अपने देश की सरकारी तेल कंपनी को एस्सेक्वीबो में जाकर तेल का उत्पादन शुरू करने के लिए 'तुरंत' लाइसेंस जारी करने का भी आदेश दिया है।
 
विशाल तेल भंडार मिले
 
अमेरिका की एक तेल कंपनी है एक्सॉनमोबाइल (ExxonMobil)। उसे 2015 में गुयाना की एस्सेक्वीबो नदी वाले क्षेत्र में तेल के विशाल भंडार मिले। अभी कुछ ही महीने पहले इस क्षेत्र में तेल का एक और बड़ा भंडार मिला है। उसे मिलाकर गुयाना का अनुमानित तेल भंडार अब 10 अरब बैरल से अधिक हो गया है। यह मात्रा कुवैत या संयुक्त अरब अमीरात के भंडारों की कुल मात्रा से भी अधिक है। इसी को सुनकर वेनेजुएला के राष्ट्रपति की तेल के लिए प्यास दुर्दमनीय हो गई लगती है।
 
विदेशी प्रेक्षक और राष्ट्रपति मदुरो के आलोचक यह भी मानते हैं कि वेनेजुएला की जनता मदुरो की सत्तालोलुपता से ऊब गई है। देश वर्षों से आर्थिक व राजनीतिक संकट के साथ-साथ अमेरिकी प्रतिबंधों की मार से भी कराह रहा है। पिछले कुछ वर्षों में लगभग 80 लाख लोग देश छोड़कर जा चुके हैं और जनसंख्या घटकर 2 करोड़ 80 लाख हो गई है। जनता का ध्यान बंटाने के लिए कुछ-न-कुछ तो करना ही था।
 
अमेरिकी प्रतिबंध
 
मदुरो, वेनेजुएला पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों में ढील पाने के लिए भी प्रयत्नशील हैं। अमेरिका के साथ बातचीत और 2024 में लोकतांत्रिक चुनाव करवाने का आश्वासन इन्हीं प्रयत्नों के हिस्से हैं। बदले में अमेरिका ने भी वेनेजुएला के तेल और वित्तीय क्षेत्रों के खिलाफ अपने प्रतिबंधों में कुछ ढील दी है। इसे देखते हुए एक अनुमान यह भी है कि गुयाना का वह पूरा पश्चिमी भाग हथियाने के लिए जिसे मदुरो एस्सेक्वीबो कहते हैं, वे यदि कोई दुस्साहसिक काम करेंगे तो अपने पैरों पर आप ही कुल्हाड़ी मारेंगे।
 
गुयाना, अतीत में कोई सवा सौ साल पहले तक उस समय के उपनिवेशवादी देशों स्पेन, नीदरलैंड्स और ब्रिटेन के बीच खींचतान का एक बड़ा कारण ज़रूर रहा है। किंतु एक अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने 1899 में फ़ैसला सुनाया कि एस्सेक्वीबो नदी वाला उसका सारा हिस्सा ब्रिटिश गुयाना का भू-भाग है। इसी के साथ सारा विवाद समाप्त हो गया। 1966 में स्वतंत्रता मिलने तक गुयाना, ब्रिटेन का एक उपनिवेश रहा है। आज जो भारतवंशी वहां रहते हैं, उनके पूर्वजों को अंग्रेज़ जब वहां लाए थे, तब भारत भी उनका उपनिवेश था।
 
चीन भी चौधराहट करने पहुंचा
 
वेनेजुएला के पड़ोसी और दक्षिणी अमेरिका के सबसे बड़े देश ब्राज़ील की सीमा भी गुयाना के साथ लगती है। ब्राज़ील और चीन ने भी गुयाना में निवेश कर रखे हैं। ब्राज़ील ने गुयाना के साथ वाली अपनी उत्तरी सीमा पर अपना सीमारक्षक बल बढ़ाने की घोषणा की है। इसे देखकर चीन ने ब्राज़ील और वेनेजुएला से अपना विवाद बातचीत द्वारा सुलझाने का आह्वान किया है।
 
भारत भी करे मदद
 
चीन और ब्राज़ील 'ब्रिक्स' कहलाने वाले जिस प्रसिद्ध संगठन के सदस्य हैं, उसके एक प्रमुख सदस्य भारत की तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया सुनने में नहीं आई है। यह देखते हुए कि गुयाना के 43.5 प्रतिशत निवासी भारतवंशी हैं, उनके देश पर अकस्मात मंडरा रहे संकट को लेकर भारत को भी चिंता होनी चाहिए।
 
गुयाना की विवशता
 
गुयाना का कहना है कि वह सभी परिस्थितियों के लिए तैयार है। किंतु हर कोई समझ सकता है कि मात्र 8 लाख की जनसंख्या वाला एक छोटा-सा देश जिसके पास न तो ढंग की सेना है और न अस्त्र-शस्त्र, वह अपने ऊपर हमला होने पर 2 करोड़ 80 लाख की जनसंख्या वाले वेनेजुएला का भला कब तक सामना कर पाएगा?
 
गुयाना के भारतवंशी राष्ट्रपति डॉ. इर्फ़ान अली ने अमेरिकी टीवी चैनल CBS को बताया कि वे एक राजनयिक समाधान की तलाश कर रहे हैं। सहयोगी और मित्र देशों के साथ मिलकर तैयारी कर रहे हैं ताकि आवश्यक होने पर अपने देश की रक्षा कर सकें। डॉ. इर्फ़ान अली, 2023 में 8 से 14 जनवरी तक इंदौर में मनाए गए भारत के 17वें वार्षिक 'प्रवासी भारतीय दिवस' के मुख्य अतिथि थे।
 
सुनने में आया है कि गुयाना और वेनेज़ुएला के बीच की तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए अमेरिका और ब्रिटेन चौकन्ने हो गए हैं। ऐसा लगता है कि गुयाना में अपनी उपस्थिति दिखाने के लिए अमेरिका उसके ऊपर अपने सशस्त्र बलों की हवाई उड़ानें शुरू करने की सोच रहा है। भारत को चाहिए कि वह भी ब्रिटेन, अमेरिका और ब्राज़ील से संपर्क करे और गुयाना पर मंडरा रहा संकट दूर करने के लिए एक साझी रणनीति पर सहमति बनाने का प्रयास करे। वहां के भारतवंशियों को ऐसा नहीं लगना चाहिए कि भारत उन्हें भूल गया है।
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)

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