जब रूसी यमराज स्टालिन का अंतकाल आया

राम यादव
रविवार, 5 मार्च 2023 (08:00 IST)
भूतपूर्व सोवियत तानाशाह स्टालिन का रूस में ऐसा आतंक था कि बहुत से लोग उसे अमर मानने लगे थे। उसके अत्याचारों की अति जर्मनी के हिटलर से कतई कम नहीं थी। 70 वर्ष पू्र्व, 5 मार्च 1953 को उसकी मृत्यु उसके पापों के अनुरूप ही रही।

25 अक्टूबर 1917 को 20वीं सदी का एक युगप्रवर्तक दिन कहा जा सकता है। उस दिन रूसी युद्धपोत 'औउरोरा' द्वारा पेत्रोग्राद (अब सेंट पीटर्सबर्ग) के शीत प्रासाद (विन्टर पैलेस) पर गोले दागने के साथ मानव इतिहास की पहली समाजवादी क्रांति का बिगुल बजा था। 2 सप्ताह बाद, 7 नवंबर 1917 के दिन उस समय की रूसी राजशाही की जगह ली थी मज़दूर-किसान वर्ग की तानाशाही कहलाने वाली मार्क्सवादी विचारधारा की कम्युनिस्ट शासन प्रणाली ने।

'महान समाजवादी अक्टूबर क्रांति' कहलाने वाली उस क्रांति के नेता लेनिन, 53 वर्ष की आयु में ही, 21 जनवरी 1924 को, दुनिया से चल बसे। 2 महत्‍वाकांक्षी चरित्र लेनिन के उत्तराधिकारी बनना चाहते थे– योसेफ़ स्टालिन और लेओ त्रोत्स्की। दोनों समवयस्क (45-46 साल के) थे। लेनिन ने कोई उत्तराधिकारी नहीं चुना था। स्टालिन जॉर्जिया के बहुत ही साधारण परिवार से था, जबकि त्रोत्स्की यूक्रेन के एक धनी-मानी यहूदी किसान परिवार से था।

लेनिन का देहांत होने तक कम्युनिस्ट पार्टी पर स्टालिन की पकड़ एक जकड़ बन चुकी थी। 1922 से वही पार्टी का महासचिव था। रस्साक़शी में अंततः उसी का पलड़ा भारी रहा। लेओ त्रोत्स्की को जान बचाने के लिए 1929 में देश छोड़कर भागना पड़ा। स्टालिन के आदेश पर एक रूसी एजेंट ने 1940 में त्रोत्स्की की मैक्सिको में हत्या कर दी।

यथा नाम, तथा गुण
स्टालिन भूतपूर्व सोवियत संघ वाले जॉर्जिया गणराज्य के एक मोची का बेटा था। जन्म 18 दिसंबर 1878 को हुआ था। सारे भाई-बहन जन्म के कुछ ही महीनों के भीतर मर चुके थे। मां-बाप की वही एकमात्र जीवित संतान था। उसका असली नाम योसिफ़ विसारियोनोविच जुग़ाश्विली था। किंतु 1912 से वह अपने आप को योसेफ़ स्टालिन (इस्पाती) कहने लगा था। यथा नाम, तथा गुण। उसका हृदय इस्पात की ही तरह कठोर था। उसके अपने बीवी-बच्चे भी उसके आगे थर-थर कांपते थे।

स्टालिन की पहली पत्नी की 11 साल के वैवाहिक जीवन के बाद 1907 में मृत्यु हो गई थी। कुछ स्रोतों के अनुसार, उसकी पत्नी को कंकाल-जैसा बना देने वाला सुखंडी रोग (रिकेट्स) हो गया था, तो कुछ अन्य स्रोतों का कहना है कि उसे टाइफस फ़ीवर हो गया था। ये दोनों बीमारियां जूं या पिस्सू में रहने वाले ख़ास क़िस्म के बैक्टीरिया के संक्रमण से होती हैं। अपनी पहली पत्नी से स्टालिन का एक बेटा था याकोव जुग़ाश्विली।

41 साल की आयु में 16 साल की नई पत्नी
1919 में स्टालिन ने दुबारा शादी की। दूसरी पत्नी नदेज़्दा अलिलुयेवा, अक्टूबर क्रांति के नेता लेनिन की, और स्टालिन से विवाह से कुछ पहले उसकी भी सेक्रेट्री (टाइपिस्ट) हुआ करती थी। विवाह के समय नदेज़्दा की आयु केवल 16 साल और स्टालिन की 41 साल थी। विवाह के कुछ समय बाद ही स्टालिन के कहने पर विवाह के दोनों साक्षियों पर झूठे आरोप लगाकर गोली से उड़ा दिया गया। उनमें से एक स्टालिन की ही तरह जॉर्जिया का निवासी और उसकी पहली पत्नी का रिश्तेदार था। दूसरा, नई पत्नी नदेज़्दा का मुंहबोला चाचा था।

रूस की इतिहासकार ओल्गा त्रिफ़ोनोवा का कहना है कि स्टालिन, नदेज़्दा से आरंभ में बहुत प्यार करता था। उससे परामर्श भी लिया करता था। 1921 में दोनों के साझे बेटे वसीली का, और पांच साल बाद साझी बेटी स्वेतलाना का जन्म हुआ। यह वही स्वेतलाना थी, जो इंदिरा गांधी के समय भारत के विदेश मंत्री रहे दिनेश सिंह के चाचा कुंवर ब्रजेश सिंह की तीन वर्षों तक जीवनसंगिनी रही है। कुंवर ब्रजेश सिंह इलाहाबाद के पास स्थित कालाकांकर रियासत के राजपरिवार से थे और एक जाने-माने कम्युनिस्ट भी थे। यह कहानी बाद में कभी।

सोवियत नेता बने पड़ोसी
स्टालिन सहित रूसी क्रांति के सभी नेता राजधानी मॉस्को के ऐतिहासिक मध्य में स्थित 'क्रेमलिन' कहलाने वाले पुराने नगर-दुर्ग के भीतर एक-दूसरे के पड़ोसी बनकर रहते थे। स्टालिन की दूसरी पत्नी नदेज़्दा को लगने लगा कि उसे स्टालिन की केवल पत्नी-भर ही नहीं रह जाना चाहिए। स्वयं भी कुछ बनना चाहिए। वह ख़ास पढ़ी-लिखी नहीं थी। अतः बेटी स्वेतलाना के जन्म के बाद विश्वविद्यालय जाना शुरू कर दिया।

इतिहासकार ओल्गा त्रिफ़ोनोवा के पिता नदेज़्दा के सहपाठी थे। अपने पिताजी से उन्होंने सुना था कि नदेज़्दा अपने आप को इस तरह रखती थी कि अकादमी में कोई जानता तक नहीं था कि वह कौन है। त्रिफ़ोनोवा के पिता के लिए भी वह लंबे समय तक केवल 'नदेज़्दा' ही थी, बहुत सुंदर और नारीत्वपूर्ण। निकिता ख्रुश्चोव, जो 1953 में स्टालिन की मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारी और उसके पापों का कच्चा चिट्ठा खोलने वाले आलोचक बने मॉस्को विश्वविद्यालय में नदेज़्दा के सहपाठी और एक अच्छे मित्र हुआ करते थे।

1927 से स्टालिन सोवियत संघ का एकछत्र निरंकुश शासक बन गया था। पूरी निष्ठुरता से खेती-किसानी का सहकारीकरण करने लगा था। इससे जो व्यापक उथल-पुथल मची, उससे फैली भुखमरी और असंतोष को दबाने के दमनचक्र ने (रूसी इतिहासकार रॉय मेद्वेदेव के 1989 में प्रकाशित एक लेख के अनुसार) 2 करोड़ लोगों की जान ले ली। तब भी अपना मुंह खोलने या कुछ भी कहने की हिम्मत कोई नहीं कर पा रहा था। केवल कानाफूसी होती थी कि खेती चौपट हो रही है। लोग अनायास मर और मारे जा रहे हैं।

भुखमरी से मरते लोग
नदेज़्दा जब विश्वविद्यालय जाने लगी, तो उसने कई बार देखा कि भूखे-प्यासे बच्चे सड़कों पर भीख मांग रहे हैं। लोग भुखमरी से मर रहे हैं, पर इस भुखमरी की कहीं कोई चर्चा नहीं है। नदेज़्दा ने जब एक बार स्टालिन से पूछा कि ऐसा क्यों है, तो स्टालिन आपे से बाहर हो गया। उसे यह बिल्कुल पसंद नहीं था कि उससे कोई कुछ पूछे। वह केवल आदेश देना जानता था,  न कि आलोचना या प्रश्न सुनना।

जिन लोगों ने 1920 वाले दशक के अंतिम वर्षों में नदेज़्दा को देखा था, उन्होंने इतिहासकार ओल्गा त्रिफ़ोनोवा को बताया कि वह बहुत दुखी और उदास रहती थी। अपनी शाल में सिमटी हुई गुमसुम और एकाकी दिखती थी। उसे स्टालिन 'मारता-पीटता' भी था। उसका सारा सुख-चैन छीन लिया था।

इन्हीं परिस्थितियों में 8 नवंबर 1932 का दिन आया। उस दिन तत्कालीन सोवियत नेताओं ने बड़े धूमधाम से 'समाजवादी अक्टूबर क्रांति' की 15वीं वर्षगांठ मनाई। शाम को क्रेमलिन के भीतर नेताओं का एक अलग जश्न था। स्टालिन बहुत पिए हुए था। अपने आसपास की महिलाओं के साथ ख़ूब इश्कबाज़ी कर रहा था। त्रिफ़ोनोवा का कहना है कि नदेज़्दा चुपचाप बैठी सब देख रही थी।

इससे स्टालिन बुरी तरह बौखला गया। नदेज़्दा पर मौसंबी के छिलके और ब्रेड के टुकड़े फेंकने लगा। बोला, हे, तू भी पी! इसी दैरान फेंकी जा रही चीज़ों में से कुछ नदेज़्दा की आंख पर जा लगा। उसने इतना ही कहा, मैं तुम्हारी कोई 'हे' नहीं हूं। ऐसा कहते ही दोनों के बीच सबके सामने एक तल्ख़ तू-तू, मैं-मैं छिड़ गया।

जब दूसरी पत्नी अंतिम बार जीवित दिखी
ओल्गा त्रिफ़ोनोवा के अनुसार, 8 नवंबर 1932 वाले उसी दिन स्टालिन की दूसरी पत्नी नदेज़्दा को अंतिम बार जीवित देखा गया था। अगली सुबह घर की नौकरानी नाश्ता लेकर जब नदेज़्दा के कमरे में गई, तो उसे फ़र्श पर पड़ा देखा। उसकी कनपटी के पास गोली लगी थी। कुछ लोगों ने कहा कि स्टालिन काफ़ी देर तक अपने कमरे से बाहर नहीं निकला। दोनों अलग-अलग कमरों में सोते थे। स्टालिन 10 बजे अपने कमरे से बाहर आया। वहां काफ़ी शोर मचा हुआ था। आपातकालीन (इमर्जेंसी) डॉक्टर को बुलाया गया। और भी कई लोग आ गए। स्टालिन बार-बार यही कह रहा था कि रात में वह घर पर नहीं था।

औपचारिक तौर पर प्रचारित किया गया कि नदेज़्दा की मृत्यु अपेंडिक्स के सूज कर फट जाने से हुई है। ओल्गा त्रिफ़ोनोवा बताती हैं कि डॉक्टरों ने नदेज़्दा की शव परीक्षा रिपोर्ट में यह लिखने और हस्ताक्षर करने से मना कर दिया कि उसकी मृत्यु अपेंडिक्स के फट जाने से हुई है। बाद में इन सभी डॉक्टरों को गिरफ़्तार कर गोली से उड़ा दिया गया। नदेज़्दा को दफ़नाते समय स्टालिन ने उसके ताबूत को धक्का देते हुए कहा, वह एक दुश्मन की तरह जा रही है।

पत्नी की बहन को श्रम शिविर भिजवा दिया
नदेज़्दा की एक बहन अना सेर्गेयेवा रेदेन्स 1948 में उसके संस्मरणों को प्रकाशित करना चाहती थी। स्टालिन को जैसे ही इसका पता चला, उसने उसे दस साल के लिए श्रम शिविर (लेबर कैंप) में भिजवा दिया। स्टालिन की मृत्यु के बाद 1954 में उसे रिहाई मिली। बताया जाता है कि वह मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गई थी।

मां की वीभत्स मृत्यु के समय स्टालिन की बेटी स्वेतलाना केवल साढ़े छह साल की थी। उससे कहा गया कि उसकी मां अपेंडिक्स के एक ऑपरेशन के समय चल बसी। स्टालिन ने उस रात क्या किया? घर पर नहीं था तो कहां था? यह सब आज तक एक रहस्य है। तीन संभावनाओं की अटकलें लगाई जाती हैं, स्टालिन ने ही नदेज़्दा को गोली मारी, या फिर किसी को कहकर उसकी हत्या करवाई। उस हत्यारे को भी संभवतः मरवा डाला, ताकि वह कभी कुछ बता न सके। तीसरी संभावना यही हो सकती है कि रात वाले जश्न में अपने अपमान से आहत नदेज़्दा ने आत्महत्या कर ली। अधिकतर लोग यही मानते हैं।

जीवन-मरण स्टालिन के हाथ में
नदेज़्दा की मृत्यु के बाद स्टालिन का हिंसक स्वभाव बद से बदतर होता गया। स्वेतलाना तथा उसके सगे भाई वसिली और सौतेले भाई याकोव सहित स्टालिन के तीनों बच्चे अपनी माताएं खो चुके थे। अनस्तास मिकोयान सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो सदस्य और स्टालिन से लेकर ख्रुश्चोव की सरकार तक में अलग-अलग मंत्री रह चुके हैं। उन्होंने अपने बेटे स्तेफ़ान से एक बार कहा कि कोई नहीं जान सकता था कि स्टालिन कब, किस के साथ अचानक क्या कर बैठेगा। कोई घर पहुंचेगा, या सीधे जेल!

1930 वाले दशक के मध्य में स्टालिन ने एक ऐसा अभियान शुरू किया, जिससे वे लोग भी सुरक्षित नहीं थे, जो सत्ता के केंद्र में थे या अपने आप को स्टालिन का विश्वासपात्र समझते थे। बेटी स्वेतलाना और उसके सगे भाई वसिली को भी इसका भुक्तभोगी बनना पड़ा।

दोनों अपनी इच्छानुसार स्टालिन के पास नहीं जा सकते थे। पहले फ़ोन करके समय लेना पड़ता था। स्टालिन अधिकतर समय 'दाचा' कहलाने वाले मॉस्को से 31 किलोमीटर दूर स्थित एक बंगले में बिताने लगा था। स्वेतलाना एक दाई और पहरेदार की छाया में मॉस्को में अकेले रहती थी। पिता स्टालिन के साथ उसका संपर्क चिट्ठियों तक ही सीमित हो गया था।

आतंक अपनी पराकाष्ठा पर पहुंचा
1937 के सफ़ाई अभियान के साथ स्टालिन का आतंक अपनी पराकाष्ठा पर पहुंचने लगा। दसियों लाख लोगों को कड़ी मेहनत करते हुए मरने के लिए साइबेरिया के श्रम शिविरों में ठूंस दिया गया या सीधे मार ही डाला गया। इतिहास में जिन दुष्टताओं और जघन्यताओं के लिए जर्मनी के हिटलर के नाम पर थूका जाता है, स्टालिन भी उन सब कुकर्मों में हिटलर से कतई पीछे नहीं था।

हिटलर फ़ासिस्ट था। उसके निशाने पर यहूदी, कम्युनिस्ट, भारतवंशी रोमा और सिन्ती बंजारे तथा उसके राजनीतिक विरोधी थे, जबकि स्टालिन कम्युनिस्ट था। उसके निशाने पर सभी लोग थे- मज़दूर, किसान और पूंजीवीदी ही नहीं, उसकी अपनी ही पार्टी के अपने ही मंत्री, सहयोगी व सगे-संबंधी भी। वह कब किसके लिए यमराज बन जाएगा, कोई नहीं जान सकता था।

उड़ा दो गोली से
स्टालिन के लिए हर आदमी संभावित जासूस और ग़द्दार था, इसलिए उसने भी हिटलर की तरह ही सबके पीछे जासूस लगा रखे थे। उसके पुराने दोस्त भी संदेह से परे नहीं थे। उसका ऐसा ही एक दोस्त था व्याचेस्लाव मोलोतोव। स्टालिन के शासनकाल में 1930 से 1941 तक वह सरकार प्रमुख (प्रधानमंत्री) और बाद में विदेश मंत्री रहा।

1941 में स्टालिन स्वयं ही सरकार प्रमुख भी बन गया था। उसे मोलोतोव की पत्नी की निष्ठा पर कहीं से शक हो गया और उसे तुरंत साइबेरिया के एक श्रम शिविर में सड़ने के लिए भिजवा दिया। यही नहीं, उसे कई प्रमुख लोगों की कथित रूप से संदेहास्पद पत्नियों की एक लिस्ट दी गई और उस लिस्ट पर उसने सबकी आंखों के सामने लिखा, उड़ा दो गोली से!

1941 में जर्मनी के हिटलर ने सोवियत संघ पर हमला कर दिया। जर्मनों ने युद्ध छिड़ते ही स्टालिन के सबसे बड़ा बेटे याकोव को बंदी बना लिया। स्टालिनग्राद (आज के वोल्गोग्राद) वाले 1943 के घनघोर युद्ध के बाद, जिसमें जर्मन सेना को नीचा देखना पड़ा था, जर्मनों ने प्रस्ताव रखा कि रूसी यदि बंदी बना लिए गए उनके फ़ील्ड मार्शल फ़्रीड्रिश पाउलुस को रिहा कर दें, तो वे भी स्टालिन के बेटे याकोव को रिहा कर देंगे। स्टालिन का दो टूक उत्तर था, मैं एक (मामूली) सैनिक के बदले एक फ़ील्ड मार्शल को रिहा नहीं करता!

बेटे की पत्नी को गिरफ्तार करवाया
इतना ही नहीं, स्टालिन को जैसे ही य़ह ख़बर मिली कि जर्मन सेना ने याकोव को बंदी बना लिया है, उसने याकोव की पत्नी यूलिया को गिरफ्तार करवा दिया और उसकी बेटी गलीना को एक सुधार गृह में भिजवा दिया। उसने मान लिया था कि उसका बेटा बंदी नहीं बनाया गया है, बल्कि जर्मनों के साथ मिल गया है।

याकोव बर्लिन के पास के एक यातना शिविर में बंदी था।  वहां उसने 14 अप्रैल 1943 के दिन, शिविर की बिजली के करंट वाली बाड़ से टकराकर आत्महत्या कर ली। जर्मन फ़ील्ड मार्शल फ़्रीड्रिश पाउलुस, 1943 से 1953 तक तत्कालीन सोवियत संघ में युद्धबंदी रहने के बाद रिहा होते ही उस समय के पूर्वी जर्मनी में वापस लौटा। इस तरह स्टालिन ने शत्रु को तो जीने दिया, पर अपने बेटे को मरने से नहीं बचाया।

हर रात गिरफ्तारी अभियान
उन दिनों मॉस्को में हर रात गिरफ्तारी अभियान चला करते थे। स्टालिन के आदेश पर उसकी गुप्तचर पुलिस वसिली और स्वेतलाना की मौसियों तथा रिश्ते की बहनों को भी पकड़कर ले गई। उनके मामा को तो अपनी जान भी गंवानी पड़ी। स्टालिन के बच्चे इसे अनदेखा नहीं कर पा रहे थे, पर कुछ कर भी नहीं सकते थे। बेटी स्वेतलाना से टेलीफ़ोन पर स्टालिन ने एक बार कहा, हम इन्हें दुर्घटनाएं कहते हैं। वह एक ऐसा पिता था, जो अपने परिवार तक को नहीं बख़्शता था।

स्टालिन को अपनी बेटी स्वेतलाना से ज़रूर काफ़ी लगाव था, लेकिन एक सीमा के भीतर ही। यह लगाव तब तेज़ी से घटने लगा, जब स्वेतलाना सयानी हो गई और उसके प्रेम प्रसंग शुरू होने लगे। पहला प्रेमी स्वेतलाना से 20 साल बड़ा एक यहूदी फ़िल्म निर्माता था। वर्ष था 1943 और नाम था अलेक्सेई काप्लर।

यहूदी पसंद नहीं थे
स्वेतलाना उस समय 16 साल की थी। काप्लर एक प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता था। उसने लेनिन के बारे में भी एक फ़िल्म बनाई थी। स्टालिन को पता था कि स्वेतलाना उससे मिला करती है। लेकिन एक दिन जब काप्लर को लेकर वह अपने पिता के 'दाचा' वाले बंगले पर गई और उसे काप्लर का परिचय दिया, तो स्टालिन की प्रतिक्रिया से वह स्तब्ध रह गई। स्टालिन ने कहा, क्या तुझे कोई रूसी नहीं मिल रहा था?

स्टालिन ने काप्लर को गिरफ्तार करवाकर 10 साल के लिए साइबेरियाई श्रम शिविरों में भिजवा दिया। उसे यहूदी कतई पसंद नहीं थे। स्वेतलाना इससे विचलित हुए बिना एक ही साल में एक नए प्रेमी को दिल दे बैठी। वह भी यहूदी था। नाम था ग्रिगोरी मोरोसोव। वह मॉस्को विश्वविद्यालय में स्वेतलाना की पढ़ाई के समय का एक सहपाठी था। स्टालिन ने इस शर्त पर दोनों को विवाह करने की अनुमति दे दी कि वह अपने भावी दामाद से कभी नहीं मिलेगा।

नाती को नकारा
1945 में स्वेतलाना ने 19 साल की आयु में पुत्र को जन्म दिया। उसे लेकर स्वेतलाना जब पहली बार पिता स्टालिन से मिलने गई, तो वह अपने नाती को देखने के लिए कमरे से बाहर ही नहीं आया। मोरोसोव के साथ यह विवाह भी स्टालिन के हस्तक्षेप से दो ही वर्षों के भीतर ही 1947 में टूट गया। विवाह टूटते ही स्वेतलाना का पति अपनी नौकरी भी खो बैठा और पति के पिता को गिरफ्तार कर लिया गया।

स्टालिन ने तय किया कि अब वह खुद ही स्वेतलाना के लिए कोई नया पति ढूंढेगा। नया पति कम्युनिस्ट पार्टी वाले पोलित ब्यूरो के एक सदस्य आंद्रेई श्दानोव का पुत्र था। विवाह 1949 में हुआ और 1952 में तलाक़ भी हो गया। इस विवाह से स्वेतलाना की एक बेटी हुई, येकातरीना। स्वेतलाना के दोनों बच्चों ने अपने नाना को शायद ही कभी देखा।

स्टालिन का भगवान जैसा यशगान
स्टालिन का आतंक ऐसा था कि लोग उसके भय से किसी अमर्त्य देवता की तरह उसे पूजते थे। सोवियत मीडिया में उसका इस तरह यशगान होता था, मानो वह अजर-अमर है। उसके बिना सोवियत संघ का कोई भविष्य हो ही नहीं सकता। उसकी इच्छा के बिना कोई पत्ता तक नहीं हिल सकता था। लेकिन मृत्यु के समय उसकी दशा ऐसी थी, जिसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी।

1952 आने तक स्टालिन का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा था। आयु 74 साल की हो चली थी। स्मरणशक्ति जवाब देने लगी थी। बार-बार चक्कर आने लगे थे। गठिया रोग और धमनी- काठिन्य (आर्टेरियोस्क्लेरोसिस) की भी शिकायत थी। कानाफूसी होने लगी थी कि उसका उत्तराधिकारी कौन बनेगा? स्टालिन तब भी यही मानता था कि उसकी जगह लेने लायक दूसरा कोई पैदा ही नहीं हुआ है। सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के 1952 वाले अधिवेशन में उसने अपने उन सभी सहयोगियों को निरस्त कर दिया, जो उसके उत्तराधिकारी बनने लायक हो सकते थे।

नया आतंकवादी दौर
सबको चकमा देकर पार्टी के अध्यक्ष मंडल में स्टालिन ने ऐसे-ऐसे युवाओं को बिठा दिया, जिन्हें कोई जानता ही नहीं था। मॉस्को के उन यहूदी डॉक्टरों पर अपनी हत्या के षड्यंत्र का आरोप लगाया, जो अन्य नेताओं के चहेते चिकित्सक हुआ करते थे। जनवरी 1953 में गिरफ्तारियों और यातनाओं का एक नया आतंकवादी दौर शुरू कर दिया।

28 फरवरी के दिन स्टालिन ख्रुश्चोव, मालेन्कोव, बुल्गानिन और बेरिया जैसे अपने कॉमरेडों के साथ मॉस्को से 31 किलोमीटर दूर केन्सेवो के अपने दाचा (बंगले) पर पहुंचा। वहां सुबह 4 बजे तक खूब खानपान हुआ। इसके बाद सारे मेहमान चले गए, केवल स्टालिन रह गया और सोने के लिए बिस्तर में लेट गया। उसके अंगरक्षक सोच रहे थे कि दोपहर 12 बजे तक वह उठ जाएगा।

लेकिन 12 बजे के काफ़ी बाद भी स्टालिन उठा नहीं। उसका आतंक इतना था कि अंगरक्षक और पहरेदार देखने-जानने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे कि बात क्या है। देखते-देखते रात के 10 बज गए। तब उन्होंने हिम्मत जुटाकर स्टालिन का कमरा खोला और पाया कि वह तो अपने अंतःवस्त्रों में अपने ही पेशाब के बीच फ़र्श पर पड़ा है। वह ज़िंदा था, होश में था, पर बोल नहीं पा रहा था।

अपने नाम के आतंक का खुद बना शिकार
स्टालिन वास्तव में अपने नाम के आतंक का शिकार बन गया था। उसके अंगरक्षक और पहरेदार यदि उसके आतंक से पीड़ित नहीं रहे होते, उसके कमरे में झांकते तो डॉक्टर को बुलाते। उसकी ऐसी दुर्दशा नहीं हुई होती। पिछली रात वाले चारों मेहमानों को ख़बर दी गई। वे तुरंत आए, पर सुनिश्चित नहीं हो पा रहे थे कि स्टालिन के उत्तराधिकारी के चयन का समय आ गया है या नहीं। डॉक्टरों को भी बुलाया गया। डॉक्टरों ने पाया कि स्टालिन को लकवा मार गया है। उसकी जान बचाने के उपाय होने लगे।

अटकलें लगने लगीं कि 'अमर्त्य' मरेगा या बचेगा। 5 मार्च 1953 की रात 9 बज कर 50 मिनट पर डॉक्‍टरों ने स्टालिन को मृत घोषित किया। पर जनता को यह ख़बर 6 मार्च की सुबह दी गई। लोगों ने राहत की सांस ली। असंभव संभव हो गया था। करोड़ों की जान लेने वाला योसेफ़ स्टालिन अंततः इस दुनिया से जा चुका था।

प्रसिद्ध रूसी पत्रकार और साहित्यकार इल्या एअरेनबुर्ग ने लिखा, हम तो भूल ही गए थे कि स्टालिन भी एक आदमी ही था। उसने अपने आप को एक रहस्यमय सर्वशक्तिमान भगवान में रूपांतरित कर दिया था। अब यही भगवान मस्तिष्क में रक्तस्राव से मर गया है। हमें तो यह असंभव ही लगता है।

हमें भी यह असंभव ही लगता था कि दुनिया में दुबारा कोई व्यक्ति स्टालिन नाम अपनाएगा, लेकिन यह असंभव भी संभव हुआ है, भारत में। भारत में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री का नाम है मुथुवल करुणानिधि स्टालिन, संक्षेप में एमके स्टालिन।

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