भगवान उस दिन जापान पर जैसे कुपित थे- 11 मार्च 2011 के दिन। जापानी समय के अनुसार दिन के दो बज कर 47 मिनट हुए थे। देश के मुख्य द्वीप होन्शू के पूर्वी तट से परे समुद्र में जोरदार भूकंप आया। धरती डोलने लगी। 23 सेकंड के भीतर फुकूशिमा का परमाणु बिजलीघर भी थरथराने लगा। भूकंप के तीव्र झटके करीब दो मिनट चलते रहे। बिजलीघर के छह रिएक्टर-ब्लॉकों में से चार बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए। प्रशीतन प्रणाली ठप्प पड़ गई। तीन रिएक्टरों के भीतर गर्मी इतनी बढ़ गई कि वे परमाणु ईंधन वाली अपनी छड़ों सहित पिघलने लगे।
रेक्टर पैमाने पर नौ अंकों वाला यह महाशक्तिशाली भूकंप ही जैसे पर्याप्त नहीं था। ठीक पौन घंटे बाद, 13 से 15 मीटर तक ऊंची, सुनामी कहलाने वाली उत्ताल समुद्री लहरें भी फुकूशिमाबिजलीघर पर टूट पड़ीं। भूकंप की विध्वंस लीला से बची-खुची कमी इन लहरों ने पूरी कर दी। चार रिएक्टर पांच-पांच मीटर तक और दो एक से डेढ़ मीटर तक पानी में डूब गए। सारे बिजलीघर की बत्ती गुल हो गई। सारी संचालन और नियंत्रण प्रणालियां ठप्प पड़ गईं। पिघलते रिएक्टरों और ईंधन की छड़ों से जो रेडियोधर्मी कण मुक्त हो रहे थे, वे हवा और समुद्री लहरों के साथ दूर-दूर तक पहुंचने लगे। संसार भर में रेडियोधर्मी विकिरण का भय छाने लगा।
दुर्घटना जापान में, रिएक्टर बंद जर्मनी में : जिस दिन रिएक्टर में पैदा हो रही हाइड्रोजन गैस में विस्फोट से फुकूशिमा के रिएक्टर-ब्लॉक नंबर1 के भवन की धज्जियां उड़ गईं, उसी दिन जापान से हजारों किलोमीटर दूर जर्मनी की चांसलर (प्रधानमंत्री) अंगेला मेर्कल की भी समझ में आ गया कि उनकी परमाणु ऊर्जा नीति की भी धज्जियां उड़ गई हैं। उन्होंने घोषणा की कि कुछ ही महीने पहले जर्मनी के 17 में से जिन आठ परमाणु बिजलीघरों का जीवनकाल बढ़ाने का निर्णय किया गया था, उन्हें अस्थायी तौर पर तुरंत बंद किया जा रहा है। तीन महीने बाद इन बिजलीघरों को सदा के लिए बंद कर दिया गया। यह भी घोषणा की गई कि जर्मनी 2022 तक अपने बाकी 9 परमाणु बिजलीघर भी सदा के लिए बंद कर परमाणु ऊर्जा से मुंह मोड़ लेगा।
जर्मनी के पड़ोसी देश पहले तो उसके इस निर्णय से भौचक्के रह गए। उसकी खिल्ली उड़ाने लगे। लेकिन, हवा का रुख इस बीच कई पड़ोसी देशों में भी बदल चुका है। स्विट्जरलैंड और बेल्जियम ने भी तय कर लिया है कि वे परमाणु ऊर्जा को तिलांजलि दे देंगे। इटली, जो बहुत पहले ही परमाणु ऊर्जा को त्याग चुका था, लेकिन उसे दुबारा अपनाने की सोच रहा था, अपना परमाणु-परहेज जारी रखेगा। फ्रांस परमाणु ऊर्जा के प्रति अपने मोह को अब भी पाले हुए है, हालांकि वहां भी जनता के बीच विरोध मुखर होता जा रहा है।
परमाणु संयंत्रों की संख्या घट रही हैः इस समय की स्थिति यह है कि संसार भर के 30 देशों में कुल मिलाकर 436 परमाणु बिजलीघर काम कर रहे हैं। 2002 में, जब संसार में सबसे अधिक बिजलीघर चालू थे, उनकी संख्या 444 थी। रूस, चीन, भारत और दक्षिण कोरिया में बन रहे नए परमाणु बिजलीघरों के बावजूद विशेषज्ञों का अनुमान यही है कि परमाणु बिजलीघरों की कुल संख्या 2015 के बाद से और भी घटेगी। पुराने रिएक्टर लगातार बंद होंगे। सौर, पवन और जैव ऊर्जा संयंत्र उनकी जगह लेते जाएंगे।
जर्मनी के बिजली उत्पादन में इन वैकल्पिक स्रोतों का हिस्सा परमाणु बिजलीघरों के हिस्से के लगभग बराबर (20 प्रतिशत) है। इसी कारण 8 परमाणु बिजलीघर एकसाथ बंद कर देने पर भी देश में बिजली की आपूर्ति पर रत्ती भर भी प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है। स्वयं परमाणु ऊर्जा तकनीक के एक प्रमुख निर्यातक अमेरिका में भी, जहां 30 वर्षों के अंतराल के बाद पहली बार एक नए परमाणु बिजलीघर के निर्माण की अनुमति दी गई है, परमाणु ऊर्जा के प्रति जन और राजनैतिक समर्थन इतना घट गया है कि वहां भी परमाणु ऊर्जा का भविष्य बहुत सुरक्षित नहीं कहा जा सकता।
परमाणु ऊर्जा का लोभ ले डूबाः जापान संसार का अकेला देश है, जो द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अपने यहां दो अमेरिकी परमाणु बमों की प्रलयंकारी विभीषिका झेल चुका है। इससे शिक्षा लेते हुए उसने परमाणु अस्त्रों से परहेज करने का तो प्रण लिया, पर परमाणु ऊर्जा का लाभ उठाने का लोभ संवरण नहीं कर पाया। यह नहीं समझ पाया कि परमाणु रिएक्टर भी अपने आप में परमाणु बम ही होते हैं। नियंत्रण से बाहर होने पर बम जैसा ही कहर मचा सकते हैं।
फुकूशिमा की दुर्घटना के समय जापान में 54 परमाणु बिजलाघर काम कर रहे थे। दुर्घटना के बाद से 52 बंद हैं, केवल दो काम कर रहे हैं। अगले महीने, यानी अप्रैल में, सुरक्षा-जांच के लिए इन दोनों को भी बंद कर दिया जाएगा। फुकूशिमा वाली दुर्घटना से पहले जापान अपनी जरूरत की 30 प्रतिशत बिजली अपने परमाणु बिजलीघरों से ही पा रहा था। अप्रैल में वह परमाणु बिजली से पूरी तरह मुक्त हो जाएगा। संसार भर में चल रहे 436 परमाणु बिजलीघरों की सूची में से यदि इन 54 जापानी बिजलीघरों के नाम काट दिए जाएं, तो अगले महीने से कार्यरत बिजलीघरों की कुल संख्या घट कर 382 ही रह जाएगी।
जापान अब भी दुविधा में : फिलहाल यह निश्चित नहीं है कि जापान अपने बंद बिजलीघरों को बंद ही रहने देगा या धीरे-धीरे फिर से चालू करेगा। सरकार कथित 'स्ट्रेस टेस्ट' (सुरक्षा जांच) के बाद उन्हें दुबारा चालू करना चाहती है। लेकिन, इस बीच बढ़ रही जनचेतना के साथ-साथ 'प्रिफेक्चर' कहलाने वाले वहां के स्थानीय प्रशासनिक निकाय भी इन बिजलीघरों को दुबारा चालू करने का विरोध कर रहे हैं। फुकूशिमा दुर्घटना से पहले जापानी जनता का भारी बहुमत न केवल परमाणु ऊर्जा के पक्ष मे था, 2030 तक 14 नए रिएक्टरों के निर्माण का भी भरपूर समर्थन कर रहा था। दुर्घटना के बाद वहां जो कुछ हुआ है, तथ्यों को जिस तरह जानबूझ कर छिपाया और जनता को बहकाया गया है, उसे देखते हुए अब स्थिति काफी बदल गई है। जापान में नए परमाणु बिजलीघरों का निर्माण और परमाणु ऊर्जा का पुनरुत्थान अब बहुत कठिन हो गया है।
परमाणु लॉबी के लंबे-चौड़े आंकड़ें : नए परमाणु बिजलाघरों के निर्माण का जोखिम उठाने का साहस इस समय केवल रूस, चीन, भारत और दक्षिण कोरिया जैसे देशों की सरकारें ही दिखा रही हैं। वे अपनी जनता को यही पट्टी पढ़ा रही हैं कि नए परमाणु बिजलीघरों के तेजी से निर्माण के बिना बिजली की तेजी से बढ़ती हुई मांग को पूरा नहीं किया जा सकता। परमाणु ऊर्जा की पैरोकार संस्था 'वर्ल्ड न्यूक्लियर एसोसिएशन' का कहना है कि इस समय दुनिया भर में 63 नए परमाणु बिजलीघर बन रहे हैं या बनाए जाने वाले हैं। लेकिन, इस आंकड़े को संदेह की दृष्टि से देखने वाले फ्रांसीसी परमाणु विशेषज्ञ माइकल श्नाइडर का कहना है कि इन में से करीब एक दर्जन पिछले 20 वर्षों से निर्माणाधीन हैं और कोई नहीं जानता कि वे कभी बन कर तैयार भी होंगे या नहीं। अमेरिका के टेनेसी राज्य में बन रहा 'वॉट्स बार' परमाणु बिजलीघर तो 1972 से- यानी 40 वर्षों से- बन रहा है और अभी तक नहीं बन पाया!
श्नाइडर ने अपनी पुस्तक 'वर्ल्ड न्यूक्लियर स्टैटस रिपोर्ट' में लिखा है कि इस समय चीन अकेला ऐसा देश है, जो अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता को तेजी से बढ़ा रहा है। वहां 26 नए परमाणु संयंत्र बन रहे हैं, हालांकि फुकूशिमा दुर्घटना के बाद से वहां की जनता में भी परमाणु ऊर्जा के प्रति बेचैनी बढ़ी है। चीन के बाद रूस है, जहां 10 संयंत्र निर्माणाधीन हैं। तीसरे नंबर पर भारत है। भारत में 7 नए परमाणु संयंत्र निर्माणाधीन हैं। इसके अतिरिक्त दक्षिण कोरिया में तीन; जापान, ताइवान, पाकिस्तान, यूक्रेन, बुल्गारिया और स्लोवाकिया में दो-दो तथा फ्रांस, पोलैंड, अमेरिका, ब्राज़ील और अर्जेन्टीना में एक-एक संयंत्र निर्माणाधीन है।
जिस के पास बम, उसी के पास दमः जो देश फ्रांस, चीन, भारत या पाकिस्तान की तरह परमाणु अस्त्र (बम) संपन्न देश नहीं हैं, उनकी परमाणु ऊर्जा संबंधी अपनी क्षमता बढ़ाने में भी बहुत दिलचस्पी नहीं है। नए परमाणु बिजलीघरों के निर्माण और परमाणु बिजली की वकालत करने में उनकी इसलिए भी विशेष रुचि नहीं है, क्योंकि इन बिजलीघरों का निर्माण इतना खर्चीला और उनकी बिजली इतनी मंहगी पड़ती है कि बिना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष अनुदानों, वित्तीय सहायताओं या कर राहतों के उनका न तो निर्माण हो सकता है और न उनकी कथित 'साफ सुथरी, सस्ती' बिजली ही बिक सकती है।
परमाणु बिजलीघरों से निकलने वाला रेडियोधर्मी कचरा जान का एक और ऐसा जंजाल है, जिसके स्थायी निपटारे का संसार में किसी देश के पास अभी तक कोई उपाय नहीं है। आज की परमाणु बिजली का उजाला कल या परसों कब, कैसे जानलेवा बन जाए, कोई नहीं जानता। इस कारण भी इस उजाले का भविष्य अंततः अंधकारमय ही सिद्ध होगा।