इज्तिमा यानी धार्मिक जमावड़ा

Webdunia
- जावेद आलम

ND
इज्तिमा अरबी भाषा का शब्द है और इसके साधारण से अर्थ हैं इकट्ठा होना, जमा होना। परंतु अब इसका इस्तेमाल ऐसे मजमे के लिए होने लगा है, जहाँ मजहब की, भलाई की और उनके प्रचार-प्रसार की बात हो। इज्तिमा को यह अर्थ देने में अहम भूमिका निभाई है तब्लीगी जमात ने।

तब्लीगी इज्तिमा दरअसल तब्लीगी जमात के लोगों का जमावड़ा है। शब्द तब्लीग के मायने प्रचार के हैं और यहाँ इस शब्द को "धर्म प्रचार" के मायने में इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह तब्लीगी इज्तिमा ऐसे लोगों का जमावड़ा हुआ जो धर्म प्रचार के लिए निकले हैं। सो इज्तिमा में तब्लीगी जमात की जमातों के साथ आम मुसलमान भी शामिल होते हैं।

तीन बड़े इज्तिमा : - वैसे इस जमात के जमावड़े पूरे साल और जगह-जगह होते रहते हैं, लेकिन तीन इज्तिमा ऐसे हैं जो हर साल एक ही जगह पर आयोजित किए जा रहे हैं। ये हैं भारत में मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल का इज्तिमा। पाकिस्तान में लाहौर के निकट होने वाला 'रायविंड इज्तिम ा' और बांग्लादेश की राजधानी ढाका के करीब 'टोंग ी' में होने वाला सालाना इज्तिमा। उक्त तीनों जमावड़ों को सालाना इज्तिमा इसलिए कहा जाता है कि ये हर साल आयोजित किए जाते हैं। बांग्लादेश में होने वाला इज्तिमा तो इसी माह यानी फरवरी में संपन्न हुआ है। मीडिया के अनुसार वहाँ 30 लाख लोग जमा हुए थे।

इनके अलावा दुनिया के विभिन्ना देशों में सालभर इज्तिमा होते रहते हैं। स्थानीय स्तर पर तो जिलेवार इज्तिमा किए जाते हैं। इनमें दो, तीन या चार जिले मिलाकर इस धार्मिक समागम का आयोजन किया जाता है। तब्लीगी जमात की भाषा में इन्हें "इलाकाई जोड़" कहा जाता है। इसके बाद साल में एक बार हर प्रदेश में पूरे प्रदेश का इज्तिमा किया जाता है। भारत सहित दुनिया के अनेक देशों में विभिन्ना स्तर के इज्तिमा आयोजित होते ही रहते हैं।

बदल जाती है दिनचर्या :- इज्तिमा में जाकर इंसान की दिनचर्या बिलकुल बदल जाती है। जिस स्थान पर इज्तिमा होता है उसे 'इज्तिमागा ह' यानी सम्मेलन स्थल कहा जाता है। आमतौर से तीन दिन के इज्तिमा किए जाते हैं, तब तक तमाम लोगों का खाना-पीना, सोना सब यहीं होता है। सो इज्तिमागाह में दाखिल होने के बाद इंसान बाहर की दुनिया से कटकर सिर्फ अपने रब की ओर उन्मुख हो जाता है। यहाँ पाँचों समय की नमाजें जमात के साथ यानी सामूहिक रूप से अदा की जाती हैं। इसके बाद बयानात तथा सीखने-सिखाने का दौर सतत चलता रहता है।

बात अहम है, कहने वाला नहीं :- तब्लीगी इज्तिमा में हर नमाज के बाद नियम से बयानात यानी तकरीर होती है। इन बयानात से पहले किसी तरह का ऐलान वगैरा नहीं होता कि फलाँ साहब तकरीर करेंगे। स्टेज से सिर्फ सूचना भर दी जाती है कि नमाज के बाद दीन की बात होगी। इस तरह तब्लीगी जमात व्यक्ति विशेष को महत्व नहीं देती। इस जमात के जिम्मेदारों का कहना है कि कौन कह रहा है यह देखने के बजाय यह देखें कि क्या कहा जा रहा है। वैसे जमात में बहुत सख्ती से इसका पालन नहीं हो पाता और श्रद्धालु बुजुर्गों से मुसाफा करने (हाथ मिलाना) की होड़ करते नजर आते हैं।

चुप्प-सी लगी रहती है :- कोई भी इज्तिमा कितना ही बड़ा क्यों न हो, वहाँ तकरीरों का मंजर देखने काबिल होता है। साल के इन तीन बड़े इज्तिमाआत के अलावा दुनिया के मुख्तलिफ देशों में इज्तिमाआत होते रहते हैं। इनमें शिरकत करने वाले जानते हैं कि तकरीर के दौरान वहाँ गिने-चुने लोगों के अलावा लाखों लोग खामोश बैठे "अल्लाह और रसूल की बात" सुनते नजर आते हैं। इतने बड़े जमावड़े में चुप-सी लगी रहती है, सिर्फ तकरीर की आवाज चहुँओर सुनाई देती है।

बाजार से दूर :- बाजारवाद के इस दौर में भी इन सम्मेलनों को बाजारों से दूर रखा जाता है। मजहबी किताबों की चंद दुकानों के अलावा बाकी किसी तरह का कारोबार इज्तिमा में नहीं होता। यहाँ तक कि चंद बड़े इज्तिमाआत को छोड़कर खाने-पीने का इंतजाम भी "साथियों" यानी स्वयंसेवकों द्वारा किया जाता है। लेकिन यह इंतजाम मुफ्त नहीं होता। 'तब्लीगी जमा त' के कामों में मुफ्त का तसव्वुर नहीं है।

जान, माल व वक्त लगाओ :- इस काम में आपको अपनी जान, माल व वक्त की कुर्बानी देना जरूरी है। यानी दीन पर चलना सीखना हो तो आप खुद आइए तथा अपना वक्त और पैसा लगाइए। जमात की सोच है कि बिना कुछ दिए, कुछ नहीं मिलता तो दीन यानी 'सीधा रास्ता' कैसे मिल सकता है। लेकिन इसके लिए आम चंदा नहीं होता। अलग-अलग कमेटियाँ बना दी जाती हैं, जो आपसी सहयोग से अपने-अपने काम अंजाम देती हैं। तब्लीगी जमात के अलावा जमाते इस्लामी और सुन्नी जमात के इज्तिमा भी होते हैं। तमाम जमातों के इज्तिमाआत का रंग-ढंग अपने-अपने मिजाज के मुताबिक होता है।
Show comments

परीक्षा में सफलता के लिए स्टडी का चयन करते समय इन टिप्स का रखें ध्यान

Shani Gochar 2025: शनि ग्रह मीन राशि में जाकर करेंगे चांदी का पाया धारण, ये 3 राशियां होंगी मालामाल

2025 predictions: वर्ष 2025 में आएगी सबसे बड़ी सुनामी या बड़ा भूकंप?

Saptahik Panchang : नवंबर 2024 के अंतिम सप्ताह के शुभ मुहूर्त, जानें 25-01 दिसंबर 2024 तक

Budh vakri 2024: बुध वृश्चिक में वक्री, 3 राशियों को रहना होगा सतर्क

29 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

29 नवंबर 2024, शुक्रवार के शुभ मुहूर्त

वृश्चिक राशि में बुध ने चली वक्री चाल, 2 राशियों की जिंदगी में होगा कमाल

मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा

उदयपुर सिटी पैलेस में जिस धूणी-दर्शन को लेकर मेवाड़ राजपरिवार के बीच विवाद हुआ, जानिए उसका इतिहास क्या है